आपके रंडी और ग़द्दार कहने को मैं बुरा नहीं मानती

स्वाति मिश्रा। मुझे आप खुशी से देशद्रोही कह सकते हैं। यही मेरी प्रवृत्ति है। यही मेरा चरित्र है। आपकी देशभक्ति से इतनी घृणा हो गई है कि देशद्रोही का आरोप मुझे सुकून देता है। आपकी धर्मांधता और शून्यता से पैदा हुई खीझ से देशभक्ति शब्द की सकारात्मकता मेरी नज़र में ख़त्म हो चुकी है। देशभक्ति की आपकी परिभाषा इतनी खोखली लग रही है कि मुझे देशद्रोह लुभाने लगा है। आप मुझे देशद्रोही ही मानिएगा।

देशभक्तो, अपनी करनी पर थोड़ा गौर करिए। आपको लग रहा है कि आप ही इस देश के रक्षक और योद्धा हैं, लेकिन हमारी नज़रों से भी खुद को एक बार घूरिए और कुछ हो ना हो इससे, लेकिन इतना ज़रूर होगा कि देशभक्त होने की आपकी गलतफहमी कुछ बिलांग कम होगी। देश का हितैषी होने की खुशफहमी से गुब्बार बना आपका सीना कुछ इंच ज़रूर सिकुड़ेगा।

देश को धर्म और दलित-सवर्ण के पाटों में बांटकर जहर उगलना नई देशभक्ति है। गरीबों, वंचितों और हाशिये पर जी रहे लोगों की बात करनेवालों को पत्थर मारना नई देशभक्ति है। सरकार की नीतियों और योजनाओं से असंतुष्टि जताने वालों को धमकाना नई देशभक्ति है। संविधान और संवैधानिक मूल्यों की बात करने वालों की जूतमपैजार करना नई देशभक्ति है। लोकतांत्रिक पद्धत्ति से सरकार बनाने वालों को, लोकतंत्र की याद दिलाने वालों को मां-बहन की गाली देना (महिलाओं को रंडी कहना) नई देशभक्ति है। मुद्दों पर आधारित विरोध प्रकट करने में किसी राजनैतिक पार्टी या धर्म का ध्यान ना रख, बिना पक्षपात किए सवाल करने वालों को पाकिस्तान का दलाल कहना नई देशभक्ति है। सार्वजानिक और राजनैतिक जीवन से धर्म को दूर रखने की अपील करने वालों को देशद्रोही का तमगा देना, नई देशभक्ति है। वैचारिक मतभेद का जवाब शारीरिक और शाब्दिक हिंसा से देना नई देशभक्ति है। ऐसा देशभक्त बनना आपको मुबारक हो, मैं और मेरी जमात के लोग नहीं हैं ऐसे देशभक्त। इस देश से इतना प्यार है हमें कि हम कभी ऐसे देशभक्त नहीं हो सकेंगे।

लोग कह रहे हैं कि राष्ट्रवाद को पाठ्यक्रम में अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। सुनिए, जो मन करे वह पढ़ा लीजिए। सत्ता में रहकर आपको यह हक भी मिल जाएगा और समर्थक भी मिल जाएंगे, जो ताली बजाकर नाचेंगे, लेकिन आप मुझे यह शिक्षा अपने बच्चों को दिलाने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। जिस दिन दीनानाथ बत्रा मॉडल अनिवार्य हो गया, उस दिन मैं अपने घर के बच्चों को घर में रखकर खुद ही पढ़ाऊंगी। मैं उन्हें इतिहास और विज्ञान पढ़ाऊंगी। मैं उन्हें समाजशास्त्र और संविधान पढ़ाऊंगी। डिग्री ना हो तो ना सही। वे बिना डिग्री वाले शिक्षित समझदार नागरिक बनेंगे। डिग्रीवाले बेवकूफ़ों से बेहतर है यह विकल्प। उनको कोई सरकारी या ऑफिस वाली नौकरी नहीं मिलेगी, लेकिन पेशे के लिए लोहार, बढ़ई या किसान बनना और पेट पालना बुरा नहीं। ना मैं धर्मांध हूं और ना मेरे घर के बच्चे धर्मांध बनेंगे।

आपकी तरह हमने कभी धर्म और जाति देखकर वोट नहीं दिया। आपकी तरह हमारी विचारधारा स्वार्थजनित पक्षपात से नहीं बनती-बदलती। पैदायशी धर्म तो मेरा भी हिंदू है, फिर अपने हितों के खिलाफ जाने में मेरा क्या स्वार्थ? मैं अपवाद नहीं। कई ऐसे लोग हैं जो कट्टर हिंदू और ब्राह्मणवादी परिवार से होकर भी इस व्यवस्था का विरोध करते हैं। पता है क्यों, क्योंकि इस व्यवस्था का हिस्सा होने के कारण हम इसकी बुराइयों और अन्याय को अच्छी तरह समझते हैं। आपकी तरह अंधे राष्ट्रवादी हम नहीं हैं, लेकिन हमें इस मिट्टी और यहां के लोगों से इतना प्यार है कि आप सोच भी नहीं सकते। इसकी विविधता और इसकी लोकतांत्रिक परंपरा के हम दीवाने हैं। हमें किसानों, मजदूरों, शोषितों की और यहां के हर इंसान की परवाह होती है। जाति, धर्म, वर्ग, संप्रदाय, आस्तिक-नास्तिक इन सब भिन्नताओं से परे हमें इंसानों की तकलीफ रुलाती है। आपका दर्द फर्जी है। वह संवेदना ही क्या जो पक्षपात करके जागे। वह तर्क ही क्या जो अपनों का घेरा बनाकर जागे।

देश को खतरा हमसे नहीं, आपसे है। इस्लामिक स्टेट और ISI के खतरे के बीच आप देश को धर्म और समुदाय के आधार पर बांटकर खुश हो रहे हैं। लोगों को भरोसे में लेने की जगह डरा रहे हैं। युवाओं के वैचारिक विरोध को गालियां देकर हमले कर रहे हैं और उनको डरा रहे हैं। नक्सलियों से अब तक नहीं जीत सके और नए लड़ाके घर में ही पैदा कर रहे हैं। चीन, रूस, अमेरिका, फ्रांस की क्रांति को स्कूल-कॉलेज में पढ़ाते हैं, लेकिन उनपर विमर्श करने वाले छात्रों को देशद्रोही कहकर हाशिये पर धकेल रहे हैं। उन्हें भूमिगत होने का विकल्प दे रहे हैं। 

हमें भीड़तंत्र से आपत्ति है। हमें गाली नहीं देनी, लेकिन कोई हमें गाली दे, यह भी हमें अच्छा नहीं लगता। किसी देश से लड़ाई ना हो रही हो, तो उसके साथ हम दोस्ताना ताल्लुकात चाहते हैं। किसानों के लिए सब्सिडी चाहते हैं। आर्थिक स्थिति के हिसाब से आयकर का बंटवारा चाहते हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए काम के सीमित घंटे और बीमा-मेडिकल जैसी सुविधाएं चाहते हैं। महिलाओं के लिए बराबरी चाहते हैं। बुनियादी सुविधाओं की तरक्की चाहते हैं। पुलिस विभाग में सुधार चाहते हैं। ये सबकुछ आपके जैसे देशभक्त कभी नहीं चाहते। आप सिर्फ देश में भगवा झंडा लहराना चाहते हैं और हर प्रकार की विभिन्नता, हर प्रकार के विरोध को कुचल देना चाहते हैं।

ना आपकी भाषा संयत है और ना आपके इरादे सही हैं। भारत का नाम लेकर आप चीखते हैं, लेकिन भारत की आत्मा को ही नहीं समझते। इस बहुसंस्कृति वाले देश का लोकतंत्र आपको चिढ़ाता है। आपका विरोध मां-बहन की गाली पर ख़त्म होता है। आपका विरोध सबको देशद्रोही और पाकिस्तान का दलाल कहता है। रंडी और नपुंसक आपकी शब्दावली का अहम हिस्सा हैं। आपकी पार्टी और आपकी विचारधारा सही, बाकी सब अलग। 

मुझे खुशी है कि आपके जैसी नहीं हूं मैं और इसीलिए देशभक्त भी नहीं हूं। आपके लिए मैं देशद्रोही सही, लेकिन अपनी इंसानियत से बहुत खुश हूं मैं। नीचे कॉमेंट बॉक्स में जाकर आप जो गालियां देंगे, उसके लिए आपका अग्रिम शुक्रिया। आपके रंडी और ग़द्दार कहने को मैं बुरा नहीं मानती। आप ‘सौ-सौ फूलों को खिलने दो और सौ-सौ विचारों को पनपने दो’ में भरोसा नहीं रखते इसलिए आपके आसपास की हवा में अलग-अलग फूलों की महक नहीं है। आपके विचार सैकड़ों साल पुरानी सोच का पोखरा बन गए हैं जिसका पानी लगातार सड़ रहा है और इसी कारण वहां नफरत के कीड़े बिलबिला रहे हैं। ऐसे पोखर से तो दुर्गंध ही निकलेगी। वही फैला रहे हैं आप हर जगह, यहां भी फैलाइए।

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