भोपाल। प्रदेश के अफसरों को जुर्माना देना मंजूर है, लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देना मंजूर नहीं है। यह बात दस माह की अवधि के आंकड़ों में उभरकर आई है। इस अवधि में जानकारी नहीं देने वाले 175 अफसरों पर सूचना आयोग को जुर्माना लगाना पड़ा है। खास बात यह है कि जुर्माना लगने के बाद भी अफसर जानकारी देंगे या नहीं स्पष्ट नहीं है।
प्रदेश में यह हालत सूचना के अधिकार लागू होने के एक दशक बाद भी बने हुए हैं। शासकीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा आरटीआई की जानकारी देने से पहले तो बचने का प्रयास किया जाता है, अगर देनी ही पड़े तो आधी-अधूरी दी जाती है। ऐसे ही कई मामलों में सूचना आयुक्तों द्वारा जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ 25-25 हजार रुपए का जुर्माना तक लगाया है। ऐसे मामलों की जानकारी हासिल करने के लिए एक सेवानिवृत्त अधिकारी विजय आंबेकर ने मुख्य सूचना आयुक्त कार्यालय में आरटीआई लगाई, जिसके जवाब में बताया गया कि 14 फरवरी 2015 से 31 अक्टूबर 2015 तक 15 विभाग के 175 अधिकारियों पर जुर्माना लगाया गया है। इनमें सर्वाधिक 133 अधिकारी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के हैं। इन पर 11 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना लगाया गया है।
नहीं कराई जाती एफआईआर
सूचना का अधिकार कानून का कई विभागों में अधिकारी मखौल उड़ा रहे हैं। जानकारी देने के बजाय वे जुर्माना भरना ज्यादा बेहतर समझते हैं, लेकिन जुर्माना भरने के बाद भी जानकारी देने से बचा नहीं जा सकता है। केंद्रीय सूचना आयोग ने तो जानकारी उपलब्ध न कराने पर एफआईआर कराने के निर्देश दिए थे। उसके हफ्तेभर बाद ही आवेदक को चाही गई जानकारी उपलब्ध करा दी गई। सूचना का अधिकार नामक हथियार का इस्तेमाल करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक आयोग एफआईआर दर्ज कराने का फरमान नहीं देगा, तब तक जानकारी मुहैया कराने की गति तेज नहीं होगी।
30 दिन में देनी होती है जानकारी
सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के लिए संबंधित विभाग में 10 रुपए फीस देकर लिखित रूप में आवेदन किया जा सकता है। इस पर संबंधित लोक सूचना अधिकारी को आवेदन मिलने के 30 दिन के भीतर चाही गई जानकारी देना होती है। संबंधित अधिकारी द्वारा ऐसा न करने पर अपीलीय अधिकारी के पास जानकारी के लिए अपील की जा सकती है। इसमें भी आवेदन मिलने के 45 दिन के अंदर ही आवेदक को जानकारी मुहैया कराई जानी चाहिए।
उठ रहे सवाल
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि लोक सूचना अधिकारी आरटीआई के तहत जानकारी देने से बचते हैं। वे इसके बजाय आयोग द्वारा लगाई गई पेनल्टी जमा करना पसंद करते है। पेनल्टी को लेकर आयोग ने नियम बनाए हैं। इसके तहत जानकारी न देने पर संबंधित अधिकारी को 250 रुपए प्रतिदिन अथवा अधिकतम 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। अथवा द्वितीय अपील की जा सकती है।
मामलों में नहीं मिली सूचना
आरटीआई के संबंध में जब मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग से यह पूछा गया कि अब तक कितने लोक सूचना अधिकारियों ने आवेदकों को चाही गई जानकारी मुहैया नहीं कराई है? आयोग द्वारा ऐसे अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? आयोग ने बताया कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत इस तरह के सर्वाधिक 95 मामले इंदौर-नर्मदापुरम संभाग के हैं। ये आंकड़े 14 फरवरी से 31 अक्टूबर 2015 तक के हैं। इनमें संबंधित अफसर कर्मचारी सचिव पर आयोग ने जुर्माना लगाया गया है। मामले की पड़ताल में पता चला कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकांश अधिकारी व पंचायत सचिव आरटीआई में जानकारी देने से बचते हैं। इसके बजाय वे आयोग द्वारा लगाई गई पेनल्टी की राशि जमा कर देेते हैं। आयोग से मिले आंकड़ों के अनुसार लगभग 90 फीसदी मामलों में ऐसा ही हुआ है।