यहां शनिदेव को हनुमानजी ने स्थापित किया था | भारत का सबसे प्राचीन शनि मंदिर

सूर्य पुत्र शनि देव का नाम सुनकर लोग सहम से जाते हैं। शनि की टेढ़ी चाल से किसे डर नहीं लगता, उनके क्रोध से देवता भी थर-थर कांपते हैं, कहते हैं शनि की कृपा राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है। ज्योतिष शास्त्र में शनि की साढेसाती के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए दान, पूजन, व्रत, मंत्र आदि उपाय किए जा सकते हैं। आज भारत के कोने-कोने में शनि मंदिर हैं पर कुछ शनि मंदिर अत्यन्त प्रभावशाली हैं वहां की गई पूजा-अर्चना का शुभ फल प्राप्त होता है। ऐसा ही एक मंदिर है शनिश्चरा मंदिर जो ऐंती में स्थित है। ये शनिश्चरा मंदिर त्रेतायुगीन होने के कारण पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध है।

कहते है प्राचीन शनीचरा धाम या शनि मंदिर मुरैना में शनिदेव जी की असली प्रतिमा स्थित है| शनि से पीडि़त हजारों लोग सम्‍पूर्ण भारत और विदेशों से यहाँ आकर शनि शान्ति व दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर हजारों साल पुराना है तथा शनि पर्वत पर बना हुआ है।

मुरैना जिले में स्थित इस मंदिर की ग्वालियर से मात्र 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पर अद्भुत परंपरा के चलते शनि देव को तेल अर्पित करने के बाद उनसे गले मिलने की प्रथा है। यहां आने वाले भक्त बड़े प्रेम और उत्साह से शनि देव से गले मिलते हैं और अपने सभी दुख-दर्द उनसे सांझा करते हैं। दशर्नों के उपरांत अपने घर को जाने से पूर्व भक्त अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, जूते आदि को मंदिर में ही छोड़ कर जाते हैं। भक्तों का मानना है की उनके ऐसा करने से पाप और दरिद्रता से छुटकारा मिलता है। लोगों की आस्था है कि मंदिर में शनि शक्तियों का वास है। इस अद्भुत परंपरा के चलते शनि अपने भक्तों के ऊपर आने वाले सभी संकटों को गले लगा ले लेते हैं। इस चमत्कारिक शनि पिण्ड की उपासना करने से शीघ्र ही मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

शनीचरा पर्वत और शनिदेव के मंदिर की कथा

कहा जाता है श्री शनिदेव को रावण ने कैद कर लिया था और लंका के दरवाजे पर उल्टा लटका दिया था। हनुमानजी जब लंका दहन करने पहुंचे तो तमाम प्रयासों के बावजूद वो सफल नहीं हो पाए। उन्होंने ध्यान लगाया तो पता चला कि शनिदेव की उपस्थिति के कारण रावण की हानि नहीं हो पा रही है। श्री हनुमानजी ने शनिदेव को रावण के बंधन से मुक्त कराया परंतु घायल शनिदेव अपनी कक्षा में स्थापित नहीं हो सकते थे, अत: शनिदेव ने श्री हनुमानजी से आग्रह किया कि वो किसी ऐसे स्थान पर उन्हे स्थापित कर दें जहां से लंका दिखाई देती हो, ताकि वो अपनी दृष्टि डाल सकें। तब हनुमानजी ने शनिदेव को इस पहाड़ी पर स्थापित किया। यहां से शनिदेव ने रावण पर दृष्टि डाली और तब श्री हनुमानजी रावण की लंका में आग लगा पाए।

कहा जाता है कि शनिदेव तबसे यहीं विराजमान हैं शनिश्चरा स्थित श्री शनि देव मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने शुरू करवाया था। मराठाओ के शासन काल में सिंधिया शासकों द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया। सन १८०८ ईसवी में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज दौलतराव सिंधिया ने यहाँ जागीर लगवाई। सन १९४५ में तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया द्वारा जागीर को जप्त कर यह देवस्थान औकाफ बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज ग्वालियर के प्रबंधन में सोंप दिया। मंदिर का स्थानीय प्रबंधन जिला प्रशासन मुरैना द्वारा किया जाता है ।


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