उपदेश अवस्थी/भोपाल। इसमें काई दो राय नहीं कि दिग्विजय सिंह की तुलना में शिवराज सिंह चौहान ने मप्र के हित में कई अच्छे काम किए हैं। कुछ उन्होंने किए, कुछ उनकी किस्मत से केन्द्र से स्वीकृत होकर आ गए, लेकिन ताजा विषय यह है कि जिस तरह से शिवराज सिंह नगरीय निकाय चुनावों में भाषण दे रहे हैं, समझना मुश्किल हो रहा है कि शिवराज सिंह सीएम हैं या सपनों के सौदागर।
नगरीय निकाय चुनावों के दौरान पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि शिवराज सिंह चौहान की सभा समाप्त होने के बाद एक वर्ग विशेष यह प्रतिक्रिया देता हुआ मिला कि अब हम उल्लू नहीं बनेंगे। हालांकि विजय भाजपा की ही होगी, क्योंकि कोई विकल्प ही उपलब्ध नहीं हैं परंतु सवाल यह है कि यदि विकल्प नहीं है तो क्या बेलगाम हो जाना चाहिए।
शिवपुरी में विधानसभा चुनावों में अपनी सभा के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि अगली बार जब भी शिवपुरी आउंगा सिंध का पानी साथ लेकर आउंगा। नगरीय निकाय चुनावों की सभा में फिर वही लाइनें दोहरा गए। प्रोजेक्ट पर काम रत्तीभर नहीं हुआ, लेकिन वही पुराना सपना नई पैकिंग में बेचकर निकल गए। जाते जाते यह भी जता गए कि आपकी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया को हमने मंत्री बना दिया है अब यहां के विकास का जिम्मा उनका।
सभा के बाद हालात यह बने कि वोटर्स खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे। पिछली बार तो एक ठोस वादा मिल भी गया था, इस बार तो वो भी नहीं मिला।
कल हुई बीना की सभा में शिवराज सिंह ने कहा कि अगले 5 साल में बीना महानगर बन जाएगा। वो बीना जो पिछले 20 साल में तमाम मांगों के बावजूद जिला नहीं बन पाया, रिफायनरी लगने के बाद भी बेरोजगारी जारी है। वो बीना अगले 5 साल में महानगर कैसे बन सकता है।
इस सभा में कुछ बेरोजगारों ने रिफायनरी के बाद भी बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर सीएम का ध्यान खींचने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
कुल मिलाकर इस बार फिर सपनों की सौदागरी का खेल खेला जा रहा है। सीएम के सलाहकारों को चाहिए कि वो उन्हें समझाएं, अगली बार फिर जनता के बीच जाना है। यह फाइनल और लास्ट नहीं है। यदि इस तरह के गोलगप्पे जनता को टिपाए गए तो अगली बार जनता उन्हें गप भी कर सकती है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि शिवराज सिंह चौहान एक अच्छे मुख्यमंत्री साबित हुए हैं परंतु यह बहुत जरूरी है कि वो आगे भी अच्छे सीएम ही बने रहें। प्रतिस्पर्धा की कमी अक्सर मुगालतों को जन्म देती है, जो बड़े होकर घमंड में बदल जाते हैं और फिर जनता को मजबूर होकर बोलना पड़ता है
'पुन: मूशक भव:'