राकेश दुबे@प्रतिदिन। कभी कोई सरकार अपने किये पर फंसती है अब केंद्र सरकार, सत्ता में आने के पूर्व कहे वायदों पर फंसी है| यह फंसाव संसद तक तो ठीक है, पर जनता में उतरा तो ठीक नहीं| दरअसल, उसने अन्ना हजारे और रामदेव के उठाए मुद्दे को लपक कर इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बना दिया। तब जटिलता समझी नहीं और अब गले में फांस की तरह कालाधन अटक गया है|
संसद में कालेधन के मुद्दे पर विपक्ष ने एकजुट होकर सरकार पर हमला किया। सत्ता पक्ष ने मामले का तकनीकी जवाब देकर अपना बचाव करने की कोशिश जरूर की, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि आखिर मामले में वह कहाँ खड़ी है। भाजपा का जनता से वादा था कि एनडीए सरकार सौ दिनों के भीतर विदेशों में जमा काला धन वापस लाएगी और देश के हर व्यक्ति को 15 लाख रुपये देगी।
अब वित्त मंत्री ने संसद में सफाई दी है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए एसआईटी का गठन कर दिया। अभी 427 विदेशी खातों की जांच जारी है लेकिन खाताधारकों के नाम जाहिर नहीं किए जा सकते क्योंकि 92 देशों के साथ भारत के जानकारी साझा करने के समझौते हैं, जिनमें 91 के साथ गोपनीयता की शर्त जुड़ी हुई है। विदेशों से सबूत इकट्ठा करने में वक्त लगेगा। कितना वक्त लगेगा, वे नहीं बता सके।
साफ है कि मामला उलझा हुआ है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने इसे इस रूप में पेश किया था, जैसे विदेश से काला धन वापस लाना उसके लिए बाएं हाथ का खेल हो। कभी चीखचीख कर यह मुद्दा उठाने वाले बाबा रामदेव भी कह रहे हैं कि सरकार को थोड़ा वक्त दिया जाए। जेड प्लस सुरक्षा में चल रहे रामदेव आज कहां खड़े हैं, सबको मालूम है?
सरकार को लगता है कि वह अपनी मर्जी से इन वादों को ठंडे बस्ते में डाल सकती है, लेकिन लोगों की याददाश्त अब पहले जितनी कमजोर नहीं रह गई है। टालमटोल का रवैया ज्यादा दिन नहीं चलने वाला।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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