ब्राज़ील के बेलेम शहर में इस बार जलवायु सम्मेलन (COP30) हुआ। गर्मी-उमस बहुत थी, लेकिन वहाँ कुछ नया हुआ। 194 देशों ने मिलकर एक बड़ा पैकेज पास किया, जिसका नाम है "बेलेम पॉलिटिकल पैकेज"। सबने YES कहा, कोई NO नहीं बोला। ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है क्योंकि इस साल अमेरिका फिर से पेरिस एग्रीमेंट से बाहर हो गया था। फिर भी सब देश एक साथ आए।
COP30 मेन-मेन बातें जो हुईं:
1. अब जलवायु का काम तेज़ी से होगा : अगले 2 साल में हर देश अपनी प्लान को और सख्त करेगा ताकि धरती का तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा न बढ़े। कोयला-पेट्रोल से छुटकारा (fossil fuel transition) भी तेज़ होगा।
2. गरीब देशों को नुकसान न हो, इसके लिए नया सिस्टम बना : तकनीक, ट्रेनिंग, पैसा – सब मिलेगा ताकि बिजली-पेट्रोल छोड़ते वक्त किसी की नौकरी या अर्थव्यवस्था न डूबे। इसे "जस्ट ट्रांज़िशन" कहते हैं।
3. दो बड़े रोडमैप बने
• कोयला-पेट्रोल-गैस धीरे-धीरे पूरी तरह बंद करने का प्लान
• 2030 तक जंगलों की कटाई पूरी तरह रोकने का प्लान
दोनों को 80-90 देशों ने सपोर्ट किया, जो बहुत बड़ी बात है।
पैसे का हिसाब-किताब:
- जलवायु के लिए हर साल कम से कम 1.3 लाख करोड़ डॉलर (1.3 ट्रिलियन) जुटाने का टारगेट
- 2035 तक अनुकूलन (adaptation) के लिए पैसा तीन गुना करना
- अभी के लिए 300 बिलियन डॉलर का नया टारगेट रखा, उसकी 2 साल की प्लानिंग होगी
- कुछ छोटे-मोटे फंड भी बने – 135 मिलियन, 300 मिलियन वगैरह
ऊर्जा का मामला:
- दक्षिण कोरिया ने कहा – हम जल्दी कोयला छोड़ देंगे
- 80+ देश कोयला-पेट्रोल छोड़ने के रोडमैप में शामिल
- क्लीन एनर्जी, बैटरी, ग्रिड में 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा लगेगा
जंगल और आदिवासी:
ये इस बार की सबसे खूबसूरत बात थी। अमेज़न के बीच में सम्मेलन था तो आदिवासियों की आवाज़ बहुत ज़ोर से गूँजी।
- 900 से ज्यादा आदिवासी अंदर तक आए (अब तक का रिकॉर्ड)
- 6.5 बिलियन डॉलर का जंगल बचाने का नया फंड
- 10 आदिवासी इलाकों को आधिकारिक मान्यता
- 15 देशों ने 160 मिलियन हेक्टेयर जमीन आदिवासियों के नाम करने का वादा किया
फेक न्यूज़ पर भी लगाम लगी:
18 देशों ने साइन किया कि जलवायु पर झूठी खबरें नहीं फैलाएँगे। इसे "COP of Truth" भी बोल रहे हैं।
ट्रेड और कार्बन मार्केट भी शुरू हुआ। मतलब अब व्यापार और जलवायु को जोड़कर देखा जाएगा।
आखिर में:
दुनिया आज बहुत बँटी हुई है, लड़ाई-झगड़े चल रहे हैं, फिर भी जलवायु पर सबने एक साथ हाँ कहा। ये दिखाता है कि जब अपनी धरती बचानी हो तो सब भूलकर एक हो जाते हैं।
बेलेम से ये मैसेज गया – वादे तो बहुत अच्छे हुए, अब देखना ये है कि अगले 2-5 साल में ये वादे सच में ज़मीन पर उतरते हैं या नहीं।
बस इतनी सी बात है, उम्मीद की एक किरण दिखी है।
रिपोर्ट: निशांत सक्सेना।
COP30 से हमारे-आपके जीवन में क्या अच्छा होगा:
1. बिजली का बिल कम हो सकता है : कोयला-पेट्रोल कम होगा, सोलर-हवा से बिजली ज़्यादा बनेगी। वो सस्ती पड़ती है, इसलिए आने वाले 5-10 साल में बिजली सस्ती हो जाएगी।
2. मौसम की मार कम होगी : अब गर्मी, बाढ़, सूखा और तेज़ बारिश थोड़ी कम होगी क्योंकि सब देश मिलकर तापमान बढ़ने को रोकने की असली कोशिश करेंगे। खेतों को कम नुकसान, खाने की चीज़ें सस्ती रहेंगी।
3. नई नौकरियाँ आएंगी : सोलर पैनल लगाना, पवन चक्की बनाना, इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बनाना, जंगल बचाना – इन सब में लाखों-करोड़ों नई नौकरियाँ आएंगी। खासकर गाँव-कस्बों में।
4. पेट्रोल-डीज़ल का खर्चा कम : इलेक्ट्रिक बस, स्कूटी, कार ज़्यादा आएंगी। एक बार चार्ज करो, 300-400 किलोमीटर चलो – पेट्रोल के पैसे बचेंगे।
5. गाँव-जंगलों में रहने वालों को उनका हक मिलेगा : आदिवासी भाइयों को उनकी ज़मीन का पूरा अधिकार मिलेगा, जंगल कटने कम होंगे। इससे वहाँ के लोग भी पैसा कमा सकेंगे (जंगल से शहद, फल, दवाइयाँ बेचकर)।
6. बीमारी कम होगी : धुआँ-प्रदूषण कम होगा तो अस्थमा, दमा, दिल की बीमारियाँ कम होंगी। गर्मी से होने वाली हीट-स्ट्रोक जैसी बीमारियाँ भी कम होंगी।
7. भारत जैसे देशों को विदेश से सस्ता पैसा मिलेगा : सोलर प्लांट, जंगल बचाने, बाढ़ से बचने के प्रोजेक्ट के लिए विदेशी पैसा आसानी से और सस्ता मिलेगा।
आने वाले 10-15 साल में हमारी जेब में थोड़े ज़्यादा पैसे बचेंगे, मौसम थोड़ा ठीक रहेगा, और बच्चों को थोड़ी साफ हवा-स्वच्छ धरती मिलेगी।
COP30 और जलवायु से जुड़ा आसान जनरल नॉलेज (GK) जो हर भारतीय को पता होना चाहिए
1. COP क्या होता है?
COP = Conference of the Parties
हर साल दुनिया के सारे देश एक जगह मिलते हैं और धरती को गर्म होने से बचाने की बात करते हैं। ये UN का सबसे बड़ा जलवायु सम्मेलन है। इस बार 30वाँ था, इसलिए COP30.
2. पेरिस एग्रीमेंट क्या है?
2015 में हुआ समझौता। सबने वादा किया था कि “हम धरती का तापमान 1.5°C से ज़्यादा नहीं बढ़ने देंगे” (पूर्व-औद्योगिक समय के मुकाबले)
3. 1.5°C क्यों इतना ज़रूरी है?
अगर तापमान 1.5 से 2 डिग्री के बीच पहुँच गया तो:
- हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघलेंगे → गंगा-ब्रह्मपुत्र में पहले बाढ़, फिर सूखा पड़ जाएगा।
- समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा → मुंबई, कोलकाता, चेन्नई के कुछ इलाके डूब सकते हैं।
- भारत में गर्मी 50°C तक पहुँच सकती है।
4. NDC क्या है?
Nationally Determined Contribution
हर देश अपनी-अपनी जलवायु प्लान बताता है कि वो कितना कार्बन कम करेगा। भारत की NDC:
- 2030 तक 50% बिजली सोलर-हवा से।
- 2070 तक नेट-ज़ीरो (भारत का अपना टारगेट)।
5. कोयला भारत के लिए क्यों बड़ा मुद्दा है?
हमारी 70% बिजली अभी कोयला से बनती है। कोयला छोड़ने का मतलब लाखों मज़दूरों की नौकरी का सवाल है। इसलिए भारत कहता है: “हमें पैसा और तकनीक दो, तभी तेज़ी से छोड़ेंगे।”
6. लॉस एंड डैमेज फंड क्या है?
अमीर देशों ने 100 साल तक कारखाने चलाकर गर्मी बढ़ाई। अब गरीब देश (जैसे भारत, बांग्लादेश, मालदीव) को बाढ़-सूखे की मार पड़ रही है। इसलिए अमीर देशों से पैसा माँगा जाता है कि “तुमने नुकसान किया, तुम भरपाई करो”। COP27 में ये फंड बना, अभी पैसे भरने की लड़ाई चल रही है।
7. कार्बन मार्केट क्या है?
मान लो कोई फैक्ट्री कार्बन कम नहीं कर पा रही। वो जंगल बचाने वाले से “कार्बन क्रेडिट” खरीद लेगी। इस तरह पैसा जंगल बचाने में लगेगा। भारत में बहुत जंगल हैं, तो हमें इससे पैसा मिल सकता है।
8. भारत ने अब तक क्या-क्या अच्छा किया है (ताकि गर्व हो)
- दुनिया में सबसे ज़्यादा सोलर पावर बढ़ाने वाला तीसरा देश।
- इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) भारत ने शुरू किया।
- 2030 तक 500 GW रिन्युएबल एनर्जी का टारगेट (जर्मनी-फ्रांस से कहीं ज़्यादा)।
- उज्ज्वला योजना से गाँवों में LPG → लकड़ी का धुआँ कम हुआ।
9. अगला COP कहाँ होगा?
COP31 (2026) → ऑस्ट्रेलिया और तुर्की मिलकर करेंगे।
COP32 (2027) → अभी तय नहीं।
10. सबसे आसान लाइन याद रखने वाली
“अमीर देशों ने 100 साल प्रदूषण किया, अब गरीब देशों को बचाने का खर्चा भी वो ही उठाएँ – यही जलवायु न्याय है।”
बस, इतना जान लो तो न्यूज़ में कोई भी जलवायु वाली खबर आए, समझ में आ जाएगी।
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