FIFA, ICC और Formula 1, कठघरे में, 10 प्रमुख मानवाधिकार और जलवायु संगठनों ने चिट्ठी लिखी

Bhopal Samachar
दुनिया के सबसे बड़े खेल संगठन, जो लाखों-करोड़ों लोगों की धड़कनों से जुड़े हैं, FIFA, ICC और Formula 1, आज कठघरे में खड़े हैं। वजह है उनकी अरबों डॉलर की डील्स सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के साथ। लंदन से आई खबर बताती है कि दस प्रमुख मानवाधिकार और जलवायु संगठनों ने इन स्पोर्ट्स बॉडीज़ को चिट्ठी लिखकर पूछा है: क्या आपने कभी सोचा कि अरामको जैसे प्रदूषण फैलाने वाले दिग्गज को खेल की मासूमियत का चेहरा बनाना, कहीं अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन तो नहीं?

UN की चेतावनी, संगठनों की चुप्पी

ये सवाल अचानक नहीं उठे। 2023 में संयुक्त राष्ट्र ने बारह वित्तीय संस्थानों और पाँच सरकारों को चेताया था कि अरामको के साथ साझेदारी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के खिलाफ हो सकती है। अब, 15 सितंबर 2025 को FIFA, ICC, Formula 1, Concacaf, Aston Martin और Dakar Rally के आयोजकों को चिट्ठी भेजी गई। जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया गया। लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।

तेल की ताकत और खेल की चमक

अरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी है। उसका सीधा बयान है, तेल और गैस का दौर खत्म नहीं होगा। पिछले साल उसके सीईओ ने कहा था: “तेल-गैस से बाहर निकलने का ख्वाब छोड़ देना चाहिए।”

कंपनी अपनी छवि चमकाने के लिए खेल का सहारा ले रही है। सिर्फ 2021 से 2023 के बीच उसने विज्ञापनों पर करीब 200 मिलियन डॉलर खर्च किए। आज उसका स्पॉन्सरशिप पोर्टफोलियो 1.3 बिलियन डॉलर से ऊपर पहुँच चुका है। इस हफ्ते का सिंगापुर ग्रां प्री और महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप, दोनों जगह उसकी ब्रांडिंग साफ़ दिखेगी। अगले दो सालों में तो FIFA World Cup और ICC T20 World Cup जैसे मेगा टूर्नामेंट में अरामको “Major Worldwide Partner” के तौर पर चमकेगा।

खिलाड़ियों और प्रशंसकों की बेचैनी

जिन खेलों के नेता खुद कहते हैं कि “सस्टेनेबिलिटी हमारी पहली प्राथमिकता है”, उन्हीं संगठनों के मंच पर तेल कंपनी का लोगो देखकर खिलाड़ी और प्रशंसक गुस्से में हैं।

135 प्रोफेशनल फुटबॉलर्स- जिनमें डच स्टार विवियाने मीडेमा और कैनेडियन कप्तान जेसी फ्लेमिंग जैसे नाम शामिल हैं, खुलेआम कह चुके हैं कि FIFA को अरामको से रिश्ता तोड़ना चाहिए।
डेनमार्क की सोफी जुंगे पेडर्सन बोलीं: “खेल अरामको के साथ खड़े होकर महिलाओं और धरती दोनों के खिलाफ अन्याय को छुपा नहीं सकता।”
न्यूज़ीलैंड की कैटी रूड ने कहा: “कोई भी खेल इतना बड़ा नहीं कि उसके नाम पर मानवाधिकार उल्लंघन और जलवायु विनाश को नजरअंदाज किया जाए।”

खेल के मंच से ग्रीनवॉशिंग

आलोचकों का कहना है कि अरामको खेलों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी छवि सुधारने के लिए कर रहा है। जबकि असलियत ये है कि जीवाश्म ईंधन जलवायु संकट की 80% कार्बन उत्सर्जन का कारण हैं। सवाल साफ़ है: क्या खेल संगठनों की जिम्मेदारी सिर्फ मैदान पर है, या फिर उस धरती तक भी है जिस पर ये खेल खेले जाते हैं?

मानवाधिकार का काला सच

मुद्दा सिर्फ क्लाइमेट का नहीं है। NGOs याद दिला रहे हैं कि अरामको का पैसा सऊदी अरब के पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड तक जाता है, जिसे लेकर जमाल खशोगी की हत्या जैसे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप लगे हैं। मार्च 2025 में तो एक पाकिस्तानी मज़दूर की मौत भी अरामको स्टेडियम के निर्माण में काम करते हुए हो गई थी।

दोहरी ज़ुबान का खेल

FIFA के अध्यक्ष जियानी इंफैन्टिनो खुद कहते हैं, “क्लाइमेट चेंज हमारी सबसे बड़ी चुनौती है।” F1 के Stefano Domenicali भी दावा करते हैं, “सस्टेनेबिलिटी हमारे खेल और बिज़नेस दोनों के लिए अहम है।” लेकिन ये वही संगठन हैं जिन्होंने अरामको को हाथोंहाथ स्पॉन्सर बना लिया।

सीधी बात
खेल हमें जोड़ते हैं, उम्मीद देते हैं, लेकिन जब वही खेल सबसे बड़े प्रदूषक की ब्रांडिंग का जरिया बन जाएँ, तो सवाल उठना लाज़मी है।

कहानी का संदेश साफ़ है: FIFA और ICC जैसी संस्थाएँ एक साथ दो चेहरों के साथ नहीं चल सकतीं, एक जो कहता है “हम जलवायु और मानवाधिकार की परवाह करते हैं”, और दूसरा जो दुनिया के सबसे बड़े तेल व्यापारी का हाथ थामे खड़ा है। रिपोर्ट: निशांत सक्सेना
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