BHOPAL में RSS की शुरुआत कब हुई, नवाब के भोपाल में भगवा कैसे लहराया, पूरी कहानी पढ़िए

Bhopal Samachar
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हो गई थी लेकिन पूरे देश में इसका विस्तार एक बड़ी चुनौती थी और खास तौर पर भोपाल जैसे क्षेत्रों में जहां पर रानी कमलापति के गद्दार संविदा सेनापति दोस्त खान के परिवार का शासन था। भोपाल में मंदिरों से टैक्स लिया जाता था, शंख बजाने पर प्रतिबंध था, लेकिन फिर भी आजादी के 7 साल पहले 1940 में भोपाल में संघ की विधिवत शाखा का प्रारंभ हुआ और आज भोपाल एक ऐसा मुस्लिम शहर है जहां संघ का सर्वाधिक प्रभाव है। चलिए आज आपको भोपाल में RSS की शुरुआत की कहानी सुनाता हूं:- 

हमीदुल्लाह खान के राज में चुपके से भोपाल में आया संघ

भोपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत 1934 में हुई थी। संघ के पदाधिकारी मालवा से भोपाल आते थे। उस समय भोपाल नवाब हाजी सर मुहम्मद हमीदुल्लाह खान (Nawab Haji Sir Muhammad Hamidullah Khan) के कब्जे में था। द्वितीय विश्व युद्ध का समय चल रहा था और भोपाल का नवाब अंग्रेजों का साथ दे रहा था। हमीदुल्लाह खान ने मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (M.A.O. College), अलीगढ़ से ग्रेजुएशन और Allahabad University से कानून की पढ़ाई की थी। 1930-35 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के चांसलर भी रहे थे। 1930 और 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference) में भी शामिल हुए। 

भोपाल का नवाब पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनना चाहता था

हमीदुल्लाह खान को भोपाल से कोई खास प्रेम नहीं था। वह भारत के उन मुस्लिम राजाओं में से थे जो जिओ पॉलिटिक्स में इंटरेस्ट रखते थे और सिर्फ भोपाल का नवाब होने का फायदा उठाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ बड़ा प्राप्त करना चाहते थे। मोहम्मद अली जिन्ना से उन्होंने पक्की दोस्ती इसलिए की थी ताकि उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बना दिया जाए। एक बार तो वह पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए पाकिस्तान पहुंच भी गए थे। बाद में जब पता चला कि, पाकिस्तान की फौजी उनको फांसी पर लटका देगी तो चुपचाप भाग निकले। 

भोपाल के हिंदू और मुसलमान मिलकर नवाब के खिलाफ थे

कुल मिलाकर उस समय भोपाल नवाब के बिना नवाब के नौकरों (दरबारी और अधिकारी) के अधिकार में था। वह बड़ी मनमानी करते थे। मंदिरों में आरती के समय वाद्य यंत्र नहीं बजाने देते थे। मंदिरों से टैक्स वसूली की जाती थी। इसलिए संघ ने अपने आप को केवल संपर्क तक सीमित रखा। भोपाल की जनता जब नवाब के नौकरों से परेशान हो गई तो 1938 में भोपाल प्रजामंडल की स्थापना की गई। इसको ही भोपाल में आजादी का आंदोलन भी कहा जाता है। क्योंकि भोपाल एक प्रिंसली स्टेट थी इसलिए यहां पर अंग्रेजों से लड़ाई का तो सवाल ही नहीं था। भोपाल रियासत की जनता अंग्रेजों की नहीं नवाब की गुलाम थी। प्रजामंडल के प्रमुख नेताओं में चतुरनारायण मालवीय, डॉ. शंकर दयाल शर्मा (जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने), मौलाना तरज़ी मशरिकी और कमालुद्दीन जैसे लोग शामिल थे। यानी भोपाल के हिंदू और मुसलमान मिलकर नवाब के खिलाफ थे।

हमीदुल्लाह खान ने भोपाल के युवाओं को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया था

नवाब ने प्रजामंडल के आंदोलन को बलपूर्वक दबाने की कोशिश की, लेकिन जनता जाग चुकी थी। यह बिल्कुल सही समय था इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयं सेवकों ने व्यक्तिगत स्तर पर प्रजामंडल के आंदोलन में शामिल होना शुरू कर दिया। जब सभी पक्ष एकजुट हुए तो इसका असर भी दिखाई देने लगा। इधर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। नवाब मौके का फायदा उठाने के लिए एक्टिव हो गए। उन्होंने अपने सैनिक (इसमें मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी) अंग्रेजों की सेवा में भेज दिए, और विदेश से अपने रिश्तेदारों को बुलाकर भोपाल उनके हवाले कर दिया। नवाब हमीदुल्लाह खान चैंबर ऑफ प्रिंसेस (अंग्रेजों का समर्थन करने वाले राजाओं का संगठन) के सदस्य थे। वह अंग्रेजों के लिए भारतीय राजाओं की तरफ से मदद पहुंचाने में लग गए ताकि इनाम में कुछ बड़ा मिल जाए। 

भोपाल में RSS के पहले प्रचारक, शाखा संचालक और विस्तारक

इसके कारण भोपाल में नवाब कमजोर हो गया और इसका फायदा प्रजामंडल को मिला। इधर 1940 में बसंत पंचमी के दिन कमाली मंदिर परिसर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली नियमित शाखा का प्रारंभ किया गया। महादेव प्रसाद आचार्य शाखा का संचालन करते थे और भाई उद्धवदास मेहता भोपाल के लोगों से संपर्क करके उन्हें संघ के संपर्क में लाने के लिए काम करते थे। मेहता जी का प्रयास से भोपाल के अलावा सीहोर में भी संघ की शाखा प्रारंभ हो गई लेकिन यह जानकारी सीहोर से नवाब के पास पहुंच गई। नवाब हमीदुल्लाह खान ने भोपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में जब नवाब को पता चला कि भोपाल की जनता जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल है, उनके खिलाफ हो गई है तो उन्होंने हिंदुओं को धार्मिक आयोजन करने की छूट दे दी। 

1940 को बसंत पंचमी के दिन पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक दिगंबरराव तिजारे उज्जैन से भोपाल आए। इसके बाद भोपाल में संघ का काम कभी कम कभी ज्यादा चलता रहा लेकिन बंद कभी नहीं हुआ। लेखक: उपदेश अवस्थी
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289
Tags

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!