भोपाल। भारत के स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस केवल तिथियाँ नहीं हैं। ये उन बलिदानों का स्मरण हैं, जिनकी बदौलत हमें यह आज़ादी मिली। इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं, ध्वज फहराया जाता है और संविधान की गरिमा को नमन किया जाता है।
परंतु इसी देश में इन्हीं दिनों अतिथि विद्वान, जो देश के युवा मस्तिष्क को राष्ट्रप्रेम, संविधान और उसके मूल्यों की शिक्षा देते हैं, आर्थिक अपमान झेलते हैं। राष्ट्रीय पर्व पर उनकी मजदूरी काट ली जाती है। यह विडंबना की पराकाष्ठा है कि एक ओर हम स्कूलों और कॉलेजों में सिखाते हैं कि संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, दूसरी ओर अतिथि विद्वानों को वही समानता और स्वतंत्रता का अधिकार नहीं मिलता, जिसे वे अपने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं।
अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) केवल किताबों में सजावट बनकर रह गए हैं।
सवाल जो चुभते हैं:
- क्या अतिथि विद्वान भारत के नागरिक नहीं हैं?
- क्या राष्ट्रप्रेम दिखाने की कीमत मजदूरी कटौती है?
- क्या संविधान पढ़ाने वाले शिक्षकों को ही संविधान के अधिकारों से वंचित करना न्याय है?
डॉ. आशीष पाण्डेय, मीडिया प्रभारी, महासंघ का बयान
राष्ट्रीय पर्व पर अपेक्षा होती है कि हम कॉलेज में उपस्थित रहें, ध्वजारोहण करें, कार्यक्रमों में भाग लें और विद्यार्थियों को प्रेरित करें। हम यह सब निष्ठा और गर्व के साथ करते हैं। लेकिन इसके बदले हमें मिलती है मानदेय कटौती। यह न केवल आर्थिक क्षति है, बल्कि हमारे आत्मसम्मान और गरिमा को भी ठेस पहुँचाता है।
डॉ. अविनाश मिश्रा, उपाध्यक्ष, महासंघ का बयान
अतिथि विद्वान महासंघ सरकार और उच्च शिक्षा विभाग से माँग करता है कि:
1. राष्ट्रीय पर्व पर मानदेय कटौती की प्रथा तुरंत समाप्त की जाए।
2. इन दिनों की उपस्थिति को पूर्ण कार्य दिवस के रूप में मान्यता दी जाए।
3. अतिथि विद्वानों को संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप समान सम्मान और आर्थिक सुरक्षा दी जाए।
डॉ. जे.पी.एस. चौहान, महासचिव, अतिथि विद्वान महासंघ का बयान
यह केवल अतिथि विद्वानों की लड़ाई नहीं है, बल्कि उन मूल्यों की रक्षा की लड़ाई है, जिन पर हमारा राष्ट्र खड़ा है — समानता, स्वतंत्रता और न्याय। यदि हम, जो संविधान पढ़ाते हैं, उसके अधिकारों से वंचित रहेंगे, तो यह देश के लोकतांत्रिक ढाँचे पर धब्बा है।
राष्ट्रप्रेम को सजा न बनाइए।
शिक्षकों का सम्मान कीजिए, क्योंकि एक राष्ट्र की पहचान उसकी सेना और उसके शिक्षकों से होती है।
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