अंशुल मित्तल ग्वालियर: नगर निगम में तकरीबन हर तरह का भ्रष्टाचार करने वाले कारीगर उपलब्ध हैं। इनमें से कई तो उच्च पदों पर आसीन रहते हुए कारनामों को अंजाम देते रहे हैं। निगम में वाजिब कामों के लिए रिश्वत लेना तो आम बात है लेकिन यहां बैठे कुछ कारिंदों पर रुपए का लालच इस कदर हावी है कि यह लोग अपने पदों और पावर का दुरुपयोग करते हुए, संपत्तिकर की फर्जी आईडी बनाकर सरकारी जमीनों को ठिकाने लगाने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
निगम ने फिर उगली, संपत्तिकर की फर्जी आईडी
संपत्तिकर की एक फर्जी आईडी 10002214311 वार्ड क्रमांक 63 से सामने आई है जिसे वार्ड क्रमांक 58 के टीसी के पासवर्ड से संशोधित करके बनाया गया है। दूसरी फर्जी आईडी 1000254411 वार्ड 30 से सामने आई। जिसे वर्ष 2004 की एक संदिग्ध नोटरी के आधार पर बनाया गया और अनुपम नगर सिटी सेंटर क्षेत्र में 900 वर्गफुट की भूमि को ठिकाने लगा दिया गया। तीसरी फर्जी आईडी वार्ड 28 से सामने आई, जिसमें एक नोटरी के आधार पर आईडी नं. 1000255218 में संशोधन किया गया और सुल्तान सिंह के स्थान पर राजवीर सिंह का नाम 1250 वर्गफुट संपत्ति पर दर्ज कर दिया गया। इसके अलावा वार्ड 30 से रमेश यादव के नाम से बनी एक और फर्जी आईडी 1000245910 सामने आई।
फर्जी आईडी बनते ही हो गई रजिस्ट्री, ठिकाने लग गई जमीन
भोपाल समाचार के पिछ्ले अंक में बताई गई वार्ड 64 की एक फर्जी आईडी न. 1000253294 को वार्ड 58 के टीसी ने बनाया था। यह खेल 15 जून 2025 को किया गया। इसके बाद इसी फर्जी आईडी के आधार पर 18 जून 2025 को इस संपत्ति की रजिस्ट्री भी करवा दी गई। इसी तरह का खेल शहर भर में जारी है, जिसमें नगर निगम के कारिंदे मुख्य सहयोगी हैं।
टीसी बोले- मास्टर पासवर्ड से होता है खेल
घोटाले की पड़ताल किए जाने पर कुछ जिम्मेदार बगलें झांकते नजर आए वहीं कुछ कर संग्रहकों ने सफाई देते हुए बताया कि संपत्तिकर आईडी में संशोधन का ट्रांसफर करने का पावर उनके पास होता ही नहीं। फर्जीवाड़ा करने के लिए टीसी और एपीटीओ के कंसोल पर उतने ही समय के लिए यह सुविधा कैसे चालू हो जाती है, ऊपर बैठा कौन व्यक्ति इसमें शामिल है ? यह जांच का विषय है। हालांकि ऊपर वालों की कार्यप्रणाली को देखते हुए यह बात कहीं ना कहीं सही भी मालूम होती है। लिहाजा साफ है कि ऊपरी मंजिल पर लगाम लगाने की जरूरत है।
संघ प्रिय, कमिश्नर नगर निगम ग्वालियर का बयान
संपत्तिकर की फर्जी आईडी बनाए जाने जैसे भ्रष्टाचार सामने आ रहे हैं। ऐसे मामले में कड़े निर्देश दिए गए हैं और जांच कराई जा रही है। दोषी अफसरों पर कड़ी कार्रवाई होगी।
पूर्व अपर आयुक्त दुबे लौट सकते हैं
संपत्तिकर की फर्जी आईडी का बनना हो या वैलिड नामांतरण प्रकरणों में आवेदक से मोटे पैसे ऐंठने की बात हो। इन मामलों में अभी हाल ही में रिटायर हुए अपर आयुक्त अनिल दुबे का नाम भी खासी चर्चाओं में रहा। यदि इनकी सहमति नहीं होती तो फर्जी आईडी के यह घोटाले संभव नहीं थे। इसके अलावा रिटायरमेंट से ठीक 1 दिन पहले, इनके द्वारा रिश्वत लेने का मामला भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि कमिश्नर इस मामले में कार्रवाई करने की तैयारी में है। बता दें कि अनिल दुबे डेपुटेशन पर नगर निगम में आए थे। प्रतिनियुक्ति वाले मामले की सुनवाई के दौरान अनिल दुबे द्वारा दिए गए झूठे शपथ पत्र भी सामने आए थे इसके बाद हाईकोर्ट से इन्हें कड़ी फटकार लगाई गई थी। बावजूद इसके चर्चा है कि अनिल दुबे संविदा नियुक्ति पर वापस आने की जुगाड़ में लगे हैं।