नई दिल्ली। पेंशन के रूप में दी जाने वाली राशि, सरकार की कृपा नहीं बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार भी है। इसलिए किसी भी जांच के नाम पर कर्मचारी की पेंशन को रोक नहीं जा सकता है। यह आदेश पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को दिए। रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन रोकने के लिए हाई कोर्ट ने सरकार पर ₹50000 का जुर्माना भी लगाया। जो सरकार द्वारा रिटायर कर्मचारियों को दिया जाएगा।
रिटायर्ड कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है या नहीं
मामला एक सीनियर इंजीनियर का है। वह 29 फरवरी 2024 को रिटायर हुए। 28 अप्रैल 2025 को उनके खिलाफ एक चार्ज शीट जारी की गई। इसमें 14 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी। इसी के साथ उनकी पेंशन रोक दी गई। अपनी पेंशन प्राप्त करने के लिए इंजीनियर ने हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने बताया कि पेंशन के बिना उनका और उनके परिवार का जीवन यापन संभव नहीं है। इंजीनियर एवं पंजाब सरकार दोनों पक्षों को सुनने के बाद विद्वान न्यायाधीश श्री हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि, डिपार्टमेंट ने कर्मचारी के रिटायर हो जाने की 1 साल से अधिक समय के बाद चार्ट शीट जारी की। जबकि नियम के अनुसार कर्मचारी के रिटायर हो जाने के बाद, सिर्फ 4 साल पुराने मामलों पर ही अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है जबकि यह मामला 14 साल पुराना है।
पेंशन कर्मचारी का संवैधानिक अधिकार
हाई कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों को दिए जाने वाले सेवानिवृत्ति लाभ, सरकार की कर्मचारी के ऊपर कृपा नहीं बल्कि कर्मचारी का वैधानिक अधिकार है जो उसने वर्षों की सेवा से अर्जित किया है। अक्सर ऐसा होता है की पेंशन के कारण ही कर्मचारियों के परिवार का पालन पोषण होता है। इसलिए राज्य द्वारा उन्हें रोक देना, किसी व्यक्ति के लिए जीवन यापन का संकट उत्पन्न करना और उसके अस्तित्व को समाप्त कर देने का प्रयास है। यह भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत भारतीय नागरिक को प्राप्त "जीवन के अधिकार: का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने कहा कि:-
एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व है, वह सेवानिवृत्त कर्मचारियों और उनके परिजनों को सम्मानजनक जीवन यापन हेतु समय पर पेंशन और लाभ उपलब्ध कराए।
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