Criminal law - जज किसी को मृत्युदंड दे दे, फांसी के बाद पता चले, वह तो निर्दोष था, तब क्या होगा

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पिछले लेख में हमने आपको बताया था कि अगर किसी तथ्यों की भूल से किसी व्यक्ति से कोई अपराध हो जाता है तब उसे BNS की धारा 12 के अंतर्गत क्षमा (Forgiveness) कर दिया जाता है। अगर कोई judge या Magistrate किसी accused को Death penalty का Order दे देता है एवं फांसी (Execute) होने के बाद पता चले कि व्यक्ति निर्दोष (Innocent) था तब क्या उसकी मृत्यु (Death) का जिम्मेदार judge या Magistrate होगा या नहीं, आज की BNS की धारा 15 में जानिये।

Bharatiya Nyaya Sanhita,2023 की धारा 15 की परिभाषा

अगर कोई Judicial कार्यवाही करते हुए Magistrate या judge विधि को ध्यान में रखते हुए या पालन (Compliance) करते हुए कोई ऐसा निर्णय (Decision) देता है जिससे की व्यक्ति निर्दोष हो, लेकिन Proofs या Evidences के Base पर दोषी पाया जाता है, तब Magistrate या judge का Decision जो written या Oral हो किसी भी प्रकार से Crime नहीं होगा। 

नोट:- लेकिन Civil Courts के Magistrate को इस धारा के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त नहीं है उनको न्यायिक अधिकारी संरक्षण अधिनियम,1850 के अंतर्गत इस प्रकार का संरक्षण प्राप्त होगा।

Important Decisions

एम.एल. जैन बनाम भारत सरकार 1974 - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय- 

इसमें सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 77(अब BNS की धारा 15) के दायरे को स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 77(अब BNS की धारा 15) का उद्देश्य न्यायिक कार्यवाही की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करना है। इसलिए, IPC की धारा 77 (अब BNS की धारा 15) के तहत अपराधीकरण से छूट केवल तभी प्राप्त होगी जब न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में हो और वह कार्यवाही न्यायाधीश द्वारा सद्भावपूर्वक की गई हो।

एम.सी. मेहता बनाम भारत सरकार 1984 - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 77(अब BNS की धारा 15) के तहत अपराधीकरण से छूट केवल तभी प्राप्त होगी जब न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही विधि द्वारा दी गई शक्तियों के प्रयोग में की गई हो। यदि न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही विधि द्वारा दी गई शक्तियों के बाहर है, तो वह IPC की धारा 77(अब BNS की धारा 15) के तहत अपराधीकरण से छूट प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होगा।

एस.पी. गुप्ता बनाम भारत सरकार 2005 - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 77 (अब BNS की धारा 15) के तहत अपराधीकरण से छूट केवल तभी प्राप्त होगी जब न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में हो और वह कार्यवाही न्यायाधीश द्वारा सद्भावपूर्वक की गई हो। यदि न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में नहीं है या वह कार्यवाही न्यायाधीश द्वारा सद्भावपूर्वक नहीं की गई है, तो वह BNS की धारा 15 के तहत अपराधीकरण से छूट प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होगा।

conclusion

BNS की धारा 15 न्यायिक कार्यवाही की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह प्रावधान न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वे अपने कार्यों के लिए भय या पक्षपात के बिना कार्य कर सकें।

The Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 section, 15 Punishment

भारतीय न्याय संहिता की धारा 15 के तहत किसी भी प्रकार के दंड का प्रावधान नहीं है बल्कि, इस धारा का संरक्षण नहीं मिलने पर, अपराध के अनुसार दूसरी किसी धारा के तहत मुकदमा चलेगा, और दंडित किया जा सकेगा।

✍️लेखक: बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार, होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
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