BHOPAL में दास्तान-ए-राम, उर्दू ज़ुबान में रामायण का आयोजन - NEWS TODAY

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यूँ बाली का एक वार में किस्सा हुआ तमाम, रावण से अब जटायु का लेना था इंतकाम। उर्दू ज़ुबान में रामायण की कथा, राम का बखान, राम का वनवास, सीता का हरण, अशोक वाटिका में जानकी की पीड़ा, जटायु से इंतकाम। उर्दू में राम कथा का हर पैगाम, ये दास्तान-ए-राम है। भारत की पहली महिला दास्तानगो फौजिया और फिरोज ने भोपाल में राम की दास्तान सुनाई। कथा वही थी, बदली तो बस ज़ुबान और अंदाज़। शायरी के अंदाज़ में पेश हुआ रामायण का एक-एक प्रसंग। 

जुल्म जब हद से बढ़ा तो राम की नज़र में आया

जब जुल्म हद से बढ़ा तो राम की नज़र में आया। दास्तानगोई आगे बढ़ती है, यूँ बाली का एक वार में किस्सा हुआ तमाम, रावण से अब जटायु को लेना था इंतकाम। जंगल में रहने वाले जटायु ने ये मंज़र कर दिया, अपने परों से रावण पर हमला कर दिया। फौजिया और फिरोज रामायण के एक-एक प्रसंग को इसी तरह शायरी में उतारते हुए आगे बढ़ाते हैं। शायरी के अंदाज़ में राम कथा सुनाते हैं। 

इस दास्तानगोई में श्रोता की हैसियत से मौजूद मंसूर अली कहते हैं, “यूँ रामायण के किस्से हम भी जानते हैं। भोपाल की गंगा-जमुनी तहज़ीब में जो रामलीलाएँ होती हैं, उनमें सुनते रहे हैं। लेकिन इस तरह दास्तानगोई में उन्हें सुनने का आनंद कुछ और है। जिस तरह से फौजिया और फिरोज ने शायरी के अंदाज़ में उर्दू अल्फ़ाज़ में इसे पेश किया, समाँ ही बंध गया।”

झुककर पाँव पर अदब से फ़रमाया

फौजिया दास्तान-ए-राम के उस खास वाकये पर भी आती हैं। सीता हरण की कहानी कुछ यूँ सुनाती हैं। चुनांचे इस तरह रावण ने जब सीता को राम से छुड़ाया, देहरा में चारों जानिब अंधियारा-सा छाया। लक्ष्मण के साथ राम जब लौटे, कुटिया को खाली पाया। पाई ना गर्द-ए-सीता, देखा ना उनका साया। फौजिया आगे कहती हैं, तो हाज़रीन, तभी पवन पुत्र ने पहले शीश नवाया, फिर झुककर पाँव पर अदब से बजरंग ने यूँ फ़रमाया, “माता, ना हो निढाल, बुरा वक्त टल गया, पुल बन रहा है, कूच का सामान हो चुका, अब आए राम, हाथ में लंकेश अब मिला।” किस्सा आगे बढ़ाते फिरोज कहते हैं, “दुनिया की फ़िक्र छोड़ के भगवत का नाम लें, अंगूठी ये उठाएँ, मेरी राम-राम लें।” 

दास्तानगो फौजिया ने कहा, “मैं चार साल से दास्तानगोई कर रही हूँ। हम चार साल से दास्तान-ए-राम सुना रहे हैं। मैं अयोध्या में भी परफॉर्म कर चुकी हूँ। हम गंगा-जमुनी तहज़ीब में बड़े हुए हैं। होली-दिवाली साझा तौर पर मनाते हैं।”

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