MADHURASHTAKAM - गर्भवती स्त्रियों को परामर्श क्यों, क्या सचमुच संतान के लिए लाभदायक है

Bhopal Samachar
कृष्ण भक्ति शाखा का स्तोत्र मधुराष्टकं कृष्ण भक्तों के मध्य ही नहीं वरन् समस्त सनातन धर्मावलम्बियों के मध्य एक प्रसिद्ध गीत है जिसके प्रत्येक शब्द माधुर्य से ओत-प्रोत है। इसके रचयिता श्रीवल्लभाचार्यजी हैं। यह अष्टक श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला की सुन्दर झाँकी प्रस्तुत करता है। भक्त इसका पाठ करते समय श्रीकृष्ण के विभिन्न स्वरूपों, उनकी विभिन्न छबियों में लीन हो जाता है। भक्त कृष्णमय होकर उसका मन मयूर नृत्य करने लगता है। कृष्ण भक्ति का यह मधुर पावन गीत संस्कृत भक्ति साहित्य की अनोखी धरोहर है। इस अष्टक को वैष्णव सम्प्रदाय के भक्त ही नहीं अपितु सभी सम्प्रदाय के भक्त बड़ी श्रद्धा के साथ गाते हैं। भक्त समुदाय के नयनों के सामने श्रीकृष्ण की अनेकानेक छबि उपस्थित होने लगती है। 

भगवान के प्रत्येक क्रिया कलाप में भक्त को माधुर्य का वर्णन परिलक्षित होता है। श्रीकृष्ण का प्रत्येक अंग माधुर्य से सराबोर है। प्रतिदिन इसका सस्वर पाठ करने से श्रीकृष्ण के प्रति प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त होती है। जीवन में आनंदानुभूति और इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए इसका नियमित रूप से पाठ करना चाहिए। श्रीकृष्ण की कृपा से हर कार्य निर्विघ्र सम्पन्न होता है। श्रीकृष्ण के प्रत्येक अंक, वस्तु एवं क्रियाकलाप मधुर है। उनके सखा मधुर हैं (संख्यं मधुरं) उनकी अंग यष्टि मधुर है। उनके प्रयोग में आने वाली वेणु मधुर है (वेणु मधुरा) रेणु मधुर है (गोपी मधुरा) गोपी मधुर है। इस प्रकार मधुराष्टक उसके नाम के अनुसार अत्यधिक मधुर है। जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण अपनी लीलाएँ करते हैं वे भी मधुर हैं- (लीला मधुरा, अधरं मधुरं-अधर मधुर है, नयन मधुरं, हसितं मधुरं, गोपी मधुरा, सृष्टि मधुरा) इस प्रकार श्रीकृष्ण की प्रत्येक क्रिया कलाप, उनकी प्रत्येक वस्तु, उनके मित्रगण, उनकी गोपियाँ सभी कुछ माधुर्य से ओतप्रोत हैं। 

मधुराष्टक के पाठ लिए वल्लभ सम्प्रदाय ने कुछ नियम प्रस्तुत किए हैं, जिनका पालन भक्तगणों को इसके पाठ के समय करना चाहिए। पवित्रता, एकाग्रचित्तता, स्वच्छता, सोला, धोती आदि स्वच्छ वस्त्रों के धारण करना। पाठ के समय दीप प्रज्वलन, धूप पुष्प, फल आदि श्रीकृष्ण को समर्पित करना। पाठ सम्पूर्ण होने पर श्री कृष्णजी की आरती करना। 

संस्कृत साहित्य का यह सबसे सरल तथ सरस श्रीकृष्ण भक्तिगीत है। बालकों को बाल्यावस्था से ही इसका वाचन करवाया जाए तो वे इसे कंठस्थ कर लेंगे। उन्हें इससे भविष्य में मानसिक शान्ति प्राप्त होगी। जहाँ भी इस भक्ति गीत की आवश्यकता होगी वे इसका वाचन श्रद्धापूर्वक कर सकेंगे। 

इस भक्तिगीत में विशेषण और विशेष्य का संयोजन अति सुन्दर है। साहित्य रसिक इस संयोजन से आनन्दानुभूति का रसास्वादन कर सकेंगे। स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसकलिंग के विशेषण और विशेष्य का प्रयोग करना सीख लेंगे। इस अष्टक में अनुप्रास अलंकार की छटा भी मनमोहक है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण मधुराधिपति हैं।

सनातन धर्मावलम्बी परिवारों में प्राचीन समय में वृद्ध माताएँ गर्भवती युवतियों को यह सलाह देती थीं कि गर्भावस्था में मधुराष्टक का पाठ करना चाहिए, जिसमें उनकी होने वाली संतान श्रीकृष्ण के समान नयनाभिराम छबि वाली उत्पन्न हों। श्रीकृष्ण का चातुर्य, उनकी बुद्धिमत्ता और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने की क्षमता के विकास के बीजों का प्रस्फुरण भी गर्भस्थ शिशु में होगा। इस बात का ज्ञान हमें महाभारत के चक्रव्यूह युद्ध में अभिमन्यु के युद्ध कौशल से प्राप्त होता है।

मधुराष्टक संस्कृत स्तोत्र रत्नावली, श्रीकृष्ण भजन संग्रह तथा वैष्णव संप्रदाय के वे मुक्तक भजनों में सुलभता से उपलब्ध है। टी.वी. पर यूट्यूब में इसे आसानी से श्रवणगत किया जा सकता है। एक बार सुनने के बाद इसे बारम्बार सुनने की इच्छा होने लगती है। मैंने इस स्तोत्र को लेख में विस्तारभय से नहीं दिया है। पाठकों को इससे असुविधा अवश्य होगी- विद्वत्सु किं बहूना? क्षमस्व इति प्रार्थयामहे। डॉ. शारदा मेहता, उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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