what came first – lighter or matchstick - माचिस या लाइटर, किसका आविष्कार पहले हुआ

WHICH WAS INVENTED FIRST MATCHBOX OR LIGHTER 

Bhopal Samachar GK - माचिस और लाइटर दोनों का ही उपयोग हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करते ही रहते हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि दोनों में से किसका आविष्कार पहले हुआ। तो चलिए आज 1 मिनट से भी कम समय में यही पता लगाने की कोशिश करते हैं। 

माचिस और लाइटर का आविष्कार कब और किसने किया

आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि लाइटर का आविष्कार माचिस से लगभग 3 साल पहले हुआ यानी कि लाइटर उम्र में भी बड़ा और साइज और पैसों में भी बड़ा है। लाइटर का आविष्कार 1823 में जर्मन रसायनज्ञ जोहान वोल्फगैंग डोबेरिनर ने किया था। इसमें ज्वाला उत्पन्न करने के लिए प्लैटिनम उत्प्रेरक और हाइड्रोजन गैस का प्रयोग किया गया। जबकि माचिस का आविष्कार 31 दिसंबर 1827 में हुआ था। आविष्कार करने वाले वैज्ञानिक का नाम जॉन वॉकर है जो ब्रिटेन में वैज्ञानिक थे जॉन वॉकर जिन्होंने एक ऐसी माचिस की तीली बनाई थी जिसे किसी भी खुरदरी जगह पर रगड़ने से वह जल जाती थी। यह काफी खतरनाक था और कई लोग दुर्घटना का शिकार हुए।

लाइटर क्या है - WHAT IS LIGHTER

लाइटर एक पोर्टेबल डिवाइस है जिसे आप कहीं भी ले जा सकते हैं और जो यांत्रिक और विद्युत साधनों (MECHANICAL & ELECTRICAL MEANS) का उपयोग करते हुए ज्वाला उत्पन्न करने का काम करती है। एक सामान्य लाइटर में एक धातु या प्लास्टिक का कंटेनर होता है, जिसमें ज्वलनशील तरल पदार्थ भरा होता है एवं एक पीजो-इलेक्ट्रिक क्रिस्टल (PIEZOELECTRIC CRISTAL) पर एक हथोड़ा तेज गति से टकराता है। जिससे लगभग 800 वोल्ट पैदा होता है इसके कारण ही, एक चिंगारी या SPARK पैदा होता है, यही चिंगारी जलाने के काम आती है। 

लाइटर के अंदर कौन सी गैस भरी होती है - WHICH GAS IS IN LIGHTER

लाइटर में ज्वलनशील पदार्थ पदार्थ के रूप में ज्यादातर BUTANE का इस्तेमाल किया जाता है, BUTANE एक प्रकार का हाइड्रोकार्बन है जो की अत्यधिक ज्वलनशील, रंगहीन, गंधहीन और आसानी से तरलीकृत होने वाली गैस है। उसके अतिरिक्त अलग-अलग आवश्यकता वाले लाइटर में अलग-अलग ज्वलनशील पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है। आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि यही BUTANE GAS, रसोई गैस सिलेंडर में भी 50% होती है परंतु रसोई गैस में BUTANE के साथ-साथ PROPANE & PENTANE भी भी मिली होती है और इसकी विशेष गंध के लिए इसमें ETHYL MERCAPTAN GAS भी मिलाई जाती है जिसमें सल्फर के कारण बहुत तीखी गंध होती है और हमें तुरंत पता लग जाता है कि गैस लीक हो रही है।

माचिस की तीली में किस पेड़ की लकड़ी का उपयोग किया जाता है - What kind of wood are matchsticks made from

ज्यादातर लोगों को इसके बारे में नहीं पता लेकिन वह यह जरूर जानते हैं कि किस कंपनी की माचिस की तीली अच्छी होती है और ज्यादा देर तक जलती है। दरअसल, माचिस की तीली कई प्रकार की लकड़ियों से बनाई जाती है। सबसे अच्छी माचिस की तीली अफ्रीकन ब्लैकवुड से बनती है। पाप्लर नाम के पेड़ की लकड़ी भी माचिस की तीली बनाने के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कुछ कंपनियां जलाऊ लकड़ी से माचिस की तीली तैयार करती हैं। इस प्रकार की तीली ज्यादा देर तक नहीं जलती बल्कि कई बार जल्दी से बुझ जाती है। 

माचिस की तीली के सिरे पर कौन सा केमिकल लगा होता है - What is the chemical coating on a matchstick

माचिस की तीली की सिरे पर फास्फोरस का मसाला (Phosphorus seasoning) लगाया जाता है। फास्फोरस अत्यंत ही ज्वलनशील रासायनिक तत्व है। हवा के संपर्क में आते ही अपने आप जल जाता है इसलिए माचिस की तीली पर मिलावटी फास्फोरस लगाया जाता है। इसमें पोटैशियम क्लोरेट, लाल फॉस्फोरस, ग्लू, पिसा हुआ कांच, सल्फर और स्टार्च की मिलावट की जाती है। यदि सामान्य जलाऊ लकड़ी से माचिस की तीली बनाई गई है तो कई बार उस पर ऐमोनियम फॉस्फेट अम्ल से लेप करते हैं। 

जो आज इस्तेमाल होती है वह माचिस की तीली किसने बनाई

सन 1827 में जॉन वॉकर ने माचिस की तीली पर एंटिमनी सल्फाइड, पोटासियम क्लोरेट और स्टार्च लगाया था। रगड़ने के लिए रेगमाल का उपयोग किया जाता था। नतीजा यह था कि कई बार माचिस की तीली छोटा सा विस्फोट कर देती थी। जब यह जलती थी तो काफी बदबू आती थी। 1832 में फ्रांस में एंटिमनी सल्फाइड की जगह फॉस्फोरस का इस्तेमाल किया गया जिससे गंधक की गंध की समस्या का तो समाधान हो गया लेकिन जलते वक़्त निकले वाला धुँआ भी काफी विषैला होता था। इसके बाद 1855 में स्वीडन ट्यूबकर ने दूसरे रासायनिक पदार्थों के मिश्रण का इस्तेमाल कर एक सुरक्षित माचिस बनाई जिनका आज तक इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले 170 सालों में फिर किसी वैज्ञानिक ने माचिस की तीली में कोई बदलाव नहीं किया। 

भारत की पहली स्वदेशी माचिस - India's first homegrown match

भारत में सन 1927 में शिवाकाशी में नाडार बंधुओं ने माचिस का उत्पादन शुरू किया। इससे पहले तक भारत में माचिस या तो विदेश से आती थी या फिर विदेशी कंपनियों ने भारत में माचिस के प्लांट लगाए हुए थे।
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