भारत के प्रत्येक मतदाता को ₹15000 अतिरिक्त टैक्स भरना होगा, The Lancet Report - HINDI NEWS

Bhopal Samachar
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यदि आप किसी सार्वजनिक स्थान पर कचरा फैलाते हैं तो आपको जुर्माना भरना होगा। भारत में यही कानून है और यह न्याय भी है परंतु इसी भारत में यदि कोई पृथ्वी के स्थान पर पर्यावरण में प्रदूषण फैलाता है तो उसके ऊपर कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता बल्कि उससे होने वाले नुकसान को भारत की पूरी जनता में बराबर भाग में बांट दिया जाता है और फिर टैक्स के रूप में वसूला जाता है। 2023 में इतना प्रदूषण फैलाया गया कि, आने वाले सालों में भारत के प्रत्येक मतदाता को लगभग 15000 रुपए अतिरिक्त टैक्स भरना होगा। 

सबसे पहले The Lancet Countdown 2024 Report पढ़िए

द लैंसेट काउंटडाउन 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की विशाल आबादी गर्मी, सूखा, बाढ़ और वायु प्रदूषण जैसी जलवायु-जनित समस्याओं का सामना कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत में हर व्यक्ति औसतन 2,400 घंटों तक ऐसे तापमान में रहा जो हल्की बाहरी गतिविधियों के दौरान भी मध्यम या उससे अधिक गर्मी का जोखिम उत्पन्न कर सकता है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव उन मजदूरों पर पड़ा जो खेतों, निर्माण स्थलों, और अन्य बाहरी क्षेत्रों में काम करते हैं। अनुमान है कि सिर्फ 2023 में ही 181 बिलियन कामकाजी घंटे इस गर्मी के कारण बर्बाद हुए, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 141 अरब डॉलर का संभावित नुकसान हुआ। 

The Lancet Countdown 2024 Report का अर्थ 

सरल हिंदी में सिर्फ इतना है कि, सरकारी प्रोजेक्ट में जो काम 1 घंटे में हो जाना चाहिए था, जलवायु परिवर्तन के कारण व काम 1 घंटे से अधिक समय में पूरा हुआ। या फिर निर्धारित समय पर प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए निर्धारित से ज्यादा मजदूरों का उपयोग करना पड़ा। इस प्रकार पूरे साल में 18,100 करोड़ घंटे के लिए अतिरिक्त मजदूरों को मजदूरी पर रखना पड़ा। ऐसा करने से सरकारी प्रोजेक्ट की कीमत 11560 करोड़ रुपए अधिक बढ़ गई। 

यह तो सरकार को नुकसान हुआ, जनता को क्या नुकसान हुआ 

इस प्रकार सरकार को टोटल 11560 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। अब सरकार के पास तो कोई काम धंधा है नहीं, प्रधानमंत्री, और सांसद आदि देश हित में इस नुकसान की भरपाई व्यक्ति का जिस स्तर पर तो करेंगे नहीं। इसलिए पूरा पैसा पब्लिक से वसूल किया जाएगा। उन्हीं मतदाताओं से जिन्होंने सरकार को चुना है।भारत में कुल मतदाताओं की संख्या 97 करोड़ है। इनमें से सरकारी प्रोजेक्ट से लाभ पाने वाले ठेकेदार, उसके कर्मचारी और सभी को मजदूर की संख्या लगभग 17 करोड़ काम कर दी जाए तो 80 करोड़ लोगों को 11560 करोड़ रुपए चुकाने होंगे। यह पैसा उनके ऊपर विभिन्न प्रकार के टैक्स लगाकर वसूला जाएगा।

चलो ठीक है, और तो कोई नुकसान नहीं हुआ ना 

रुको, ज्यादा सब्र करो। जलवायु परिवर्तन से मलेरिया और डेंगू जैसी संक्रामक बीमारियां पहले से ज्यादा फैलने लगी है। तापमान और नमी में बदलाव से मलेरिया, जो पहले केवल मैदानी क्षेत्रों में सीमित था, अब हिमालयी क्षेत्रों में भी फैलने लगा है। डेंगू, जो एडीज मच्छरों के कारण होता है, ने तटीय इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। सिर्फ इतना ही नहीं, रिपोर्ट के अनुसार, 1950 के दशक से अब तक डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की प्रजनन क्षमता में 85% की वृद्धि हुई है, जिससे अब यह बीमारी लगभग पूरे वर्ष फैल रही है। इन बीमारियों की दवाइयां में जो पैसा खर्च होगा वह भी जनता का होगा और बीमार होने के कारण जो कमाई प्रभावित होगी उसका नुकसान भी जनता का ही होगा। सरकार योगदान नहीं करेगी।

भारत के समुद्री तट, जिन्हें अंग्रेज भी नहीं मिटा पाए, श्मशान बन जाएंगे 

भारत के समुद्री तट हमेशा समृद्धि का प्रतीक रहे हैं। पुर्तगालियों से लेकर अंग्रेजों तक सब ने कोशिश की लेकिन भारत के समुद्री तट पर भारतीय नागरिकों का कब्जा नहीं हटा पाए परंतु अब ऐसा नहीं होगा। क्लाइमेट चेंज के कारण भारत के समुद्री तट शमशान बन जाएंगे। भारत का विस्तृत तटीय इलाका, जो लगभग 7,500 किलोमीटर में फैला है, समुद्र के बढ़ते स्तर और बाढ़ के जोखिम में है। समुद्र स्तर में वृद्धि से तटीय क्षेत्र जैसे कि मुम्बई, तमिलनाडु, ओडिशा और गुजरात में तटीय कटाव, भूमि के नीचे जल का खारापन और बाढ़ जैसी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। इस कारण न केवल लोगों के घर और संपत्ति खतरे में हैं, बल्कि जल-जनित बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 1.81 करोड़ लोग समुद्र तल से केवल एक मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जो उन्हें इस खतरे का अधिक शिकार बनाता है। 

सिर्फ वायरस नहीं इसके कारण भी हार्ट फेल हो रहे हैं

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत में कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधनों के उपयोग से वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा है। साल 2022 में, देश की बिजली का 71% हिस्सा कोयला-आधारित संयंत्रों से आया, जबकि स्वच्छ ऊर्जा का हिस्सा केवल 11% था। यह प्रदूषण फेफड़ों और हृदय रोगों जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। अनुमान है कि अगर भारत जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम कर स्वच्छ ऊर्जा की ओर अग्रसर होता है, तो यह न केवल प्रदूषण में कमी लाएगा बल्कि स्वास्थ्य में भी सुधार करेगा। 

इस समस्या का समाधान क्या है 

सिंपल सा समाधान है। जैसे मेट्रो ट्रेन की प्लेटफार्म पर कचरा फेंकते ही आपको पकड़ लिया जाता है और जुर्माना वसूल किया जाता है। वैसे ही प्रदूषण फैलाने वालों पकड़ लिया जाए और जुर्माना वसूल किया जाए। वसूले गए जमाने से पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने का काम किया जाए। जो जितना ज्यादा प्रदूषण फैलाएगा। उसे उतना ज्यादा जुर्माना अदा करना होगा, और सरकार को उतना ही ज्यादा प्रदूषण मुक्ति का उपक्रम करना होगा।

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