मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की परीक्षा सेल द्वारा आयोजित सिविल जज भर्ती परीक्षा में आरक्षण के फार्मूले को लेकर उपस्थित हुए विवाद से संबंधित सभी याचिकाओं की सुनवाई पूरी हो गई है। हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश के चीफ जस्टिस की डबल बेंच ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। यह फैसला निर्धारित करेगा कि एक से अधिक चरण वाली भर्ती परीक्षाओं में आरक्षण का फार्मूला क्या होना चाहिए। क्या प्रत्येक चरण में आरक्षण लागू किया जाना चाहिए अथवा परीक्षा के सभी चरण पूरे हो जाने के बाद रिजल्ट के समय आरक्षण लागू किया जाना चाहिए।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा 16 फरवरी से लगातार सुनवाई की जा रही थी
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम 1994 मे हाईकोर्ट की अनुशंसा पर दिनांक 23.6.23 को मध्य प्रदेश राज्य द्वारा किए गए संशोधन को अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा कुमारी वर्षा पटेल की ओर से जनहित याचिका क्रमांक WP/17387/2023 दाखिल करके चुनोती दी गई थी। उक्त याचिका से लिंक अन्य याचिकाओ की त्वरित सुनवाई किए जाने का सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश दिया गया था। दिनांक 17/01/2024 को सिविल जज की प्रारम्भिक परीक्षा हो चुकी है, लेकिन उक्त याचिकाओ के लंबित रहने के कारण अभी प्रारम्भिक परीक्षा परिणाम जारी नही हो सके है, इसलिए हाईकोर्ट द्वारा उक्त याचिकाओ की सुनवाई दिनांक 16 फरवरी 2024 से प्रतिदिन 2:15 से मुख्य न्यायमूर्ति श्री रवि मलिमठ तथा जस्टिस श्री, विशाल मिश्रा की खंड पीठ द्वारा आज दिनांक 21/02/2024 को सम्पन्न की जा चुकी है। आज की कार्यवाही में विशेष रूप से याचिका क्रमांक 17387/2023 मे हाईकोर्ट द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर सुनवाई की गई।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा परीक्षा के हर चरण में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट को बताया की हाईकोर्ट विगत कई वर्षो से सिविल जज भर्ती तथा अन्य भर्तियों मे अपनाई जाने वाली प्रक्रिया असंवैधानिक है। यदि यही प्रक्रिया इस भर्ती मे अपनाई जाती है तो एक भी आरक्षित वर्ग का प्रतिभावान अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग मे शामिल नही हो सकेगा। हाईकोर्ट के चयन परीक्षा का आयोजन करने वाले विभाग द्वारा अपने जबाब मे स्पष्ट किया गया है कि प्रारम्भिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा मे केटेगीरी वाइज़ रिजल्ट बनाया जाता है, तथा अनारक्षित पदों पर केवल सामान्य वर्ग के ही अभ्यर्थियो से भरा जाता है तथा एक भी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी को प्रारम्भिक तथा मुख्य परीक्षा मे अनारक्षित पदों के विरूद्ध चयनित नही किया जाता है। हाईकोर्ट के उक्त जबाब के समर्थन मे पूर्व की प्रारम्भिक परीक्षा का रिजल्ट बताया गया जिसमे ओबीसी की कट आफ 88 अंक तथा सामान्य वर्ग की 73 अंक दर्शित की गई।
सिविल भर्ती परीक्षा का आयोजन MPPSC के माध्यम से होना चाहिए
हाईकोर्ट द्वारा उक्त तथ्य को बेहद गंभीरता से लेते हुए, हाईकोर्ट की परीक्षा सेल से तत्काल पूर्व की भर्तियों का रिकाड तलब किया गया एवं उक्त तथ्य प्रमाणित पाया गया। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट द्वारा आज दिनांक तक परीक्षा का रिजल्ट तैयार किए जाने हेतु कोई नियम नाही बनाया गया है इसलिए परीक्षा सेल द्वारा मनमाने रूप से रिजल्ट बनाया जाता रहा है। जबकी राज्य की प्रत्येक भर्ती एजेंसी द्वारा आरक्षण के नियमों को दृष्टिगत रखते हुए परीक्षा के नियम बनाये गए है। इसलिए हाईकोर्ट को भर्ती एजेंसी से मुक्त किया जाकर सिविल जज भर्ती की ज़िम्मेदारी पूर्व की भांति लोक सेवा आयोग से कराई जाना चाहिए ताकि समस्त भर्तिया पारदर्शी हो सके। अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन मे मध्य प्रदेश, राजस्थान, आदि राज्यो के भर्ती नियमो से कोर्ट को अवगत कराया गया।
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा कोर्ट को राज्य शासन द्वारा प्रस्तुत जातिगत आकड़ों से भी अवगत कराया गया कि मध्य प्रदेश मे ओबीसी की 51% आबादी है, लेकिन न्यायिक सेवा मे मात्र 13% ही भागीदारी है। दूसरी ओर सामान्य वर्ग की आबादी प्रदेश मे मात्र 12.6% जिसे हाईकोर्ट द्वारा प्रारम्भिक तथा मुख्य परीक्षा मे 50% सामान्य वर्ग को आरक्षण लागू करके घोर संविधान विरोधी कार्य किया जाता रहा है उक्त तथ्य की प्रामाणिकता के संबंध मे हाईकोर्ट का जबाब तथा पूर्व की परीक्षाओ के रिजल्ट से स्पष्ट रूप से प्रमाणित है।
याचिकाकर्ता के वकील ने पांच जजों की विशेष बेंच की मांग की
हाईकोर्ट परीक्षा सेल ने अपने जबाब मे हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच क्रमांक दो द्वारा याचिका क्रमांक WP/8750/2022 का हवाला दिया जा रहा है, जबकी हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच क्रमांक तीन द्वारा याचिका क्रमांक WP807/2021 मे पारित फैसले को दरकिनार करके आरक्षित वर्ग को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जा रहा है। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट से अनुरोध किया कि हाईकोर्ट की दो खंडपीठों के एक ही बिन्दु पर दो परस्पर विरोधाभाषी फैसलो की विसंगति को दूर करने उक्त तीन या पाँच जजो की विशेष बैंच का गठन किया जाना आवश्यक है। हाईकोर्ट द्वारा आगामी फैसले के लिए उक्त समस्त प्रकरण रिजर्व कर लिए गए है। याचिका कर्ताओ की ओर से पैरवी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, परमानंद साहू तथा पुष्पेंद्र शाह ने की।
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