धंधा चौपट हो गया तो कर्जदार को जेल नहीं भेज सकते, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट - MP NEWS

बिजनेस लोन एवं रिकवरी के मामले में हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। विद्वान न्यायमूर्ति श्री द्वारकाधीश बंसल की सिंगल बेंच ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति के पास कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त साधन, आय और संपत्ति नहीं है, तो उसे ऐसी स्थिति में लोन नहीं चुकाने के लिए जेल में बंद नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत मामले में एक दुकानदार का पूरा व्यापार चौपट हो गया था। वह अपने परिवार के भरण भूषण के लिए नौकरी कर रहा था। वह लोन चुकाने से इनकार नहीं कर रहा था परंतु शर्तों में परिस्थिति के अनुसार राहत चाहता था। इसके बावजूद लेनदार ने स्थानीय न्यायालय में मुकदमा कर दिया और कोर्ट ने कर्जदार को जेल भेजने की आदेश दे दिया। 

व्यवसाय बंद हो गया, नौकरी करके घर चला रहा है

याचिकाकर्ता कर्जदार ने टीकमगढ़ की एक कोर्ट द्वारा पारित आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसने याचिका में बताया कि उसका व्यवसाय बंद हो गया और उसके पास कर्ज चुकाने के लिए कोई संंपत्ति नहीं है। अब वह नौकरी कर रहा है और मिलने वाले मानदेय से भुगतान की कोशिश करेगा। प्रतिवादी ने आरोप लगाया था कि कर्जदार ने डिक्री पारित होने से पहले संंपत्ति पत्नी और बेटे के नाम स्थानांतरित कर दी थी। जिससे इनकार करते हुए याचिकाकर्ता ने बताया कि उसके पास कोई संंपत्ति थी ही नहीं तो वह स्थानांतरित कैसे कर सकता था। हाई कोर्ट ने रिकार्ड का विश्लेषण करने के बाद पाया कि निष्पादन अदालत ने जांच के माध्यम से यह निर्धारित करने की जहमत नहीं उठाई कि याचिकाकर्ता के पास कोई संंपत्ति है या उसने मुकदमा लंबित रहने के दौरान अपनी पत्नी और बेटों के नाम पर संंपत्ति ट्रांसफर की।

सुप्रीम कोर्ट का दरिद्र नारायण वाला न्यायदृष्टांत 

हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत का अंश दोहराया। जॉली वर्गीस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दरिद्र नारायण की इस भूमि (गरीबी की भूमि) में गरीब होना कोई अपराध नहीं है और किसी को जेल में डालने की प्रक्रिया द्वारा कर्ज वसूल करना कानून का बहुत बड़ा उल्लंघन है, जब तक कि उसके पर्याप्त साधनों के बावजूद भुगतान करने में उसकी जानबूझकर विफलता की न्यूनतम निष्पक्षता का सबूत न हो। 

कर्जदार को जेल भेजने के मजबूत कारण होने चाहिए

इस महत्वपूर्ण आदेश में हाई कोर्ट की जबलपुर एकलपीठ ने कानूनी सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए अभिनिर्धारित किया कि निष्पादन न्यायालय विहित प्रविधानों का पालन करने में विफल रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि नोटिस जारी करने के बाद निष्पादन न्यायालय से डिक्रीधारक और उसके निष्पादन आवेदन के समर्थन में प्रस्तुत सभी साक्ष्यों व कथनों को गंभीरता से देखने-सुनने की उम्मीद की जाती है। इसके बाद सुनवाई का अवसर देने की आवश्यकता होती है, जिससे वह अदालत को यह समझाने की अनुमति दे सके कि उसे सिविल जेल में क्यों भेजा जाना चाहिए। शर्तें या देनदार को सिविल जेल भेजने के लिए बनाए गए कारणों को दर्ज करना अदालत ने अनुपालन की आवश्यकता को भी नजरअंदाज किया। 

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