IPC 100-1-2, आत्मरक्षा के दौरान हुई हत्या के मामले में कब सजा मिलती है और कब क्षमा

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 100 के खंड 01 एवं 02 यह उपबन्ध करती है कि जब किसी व्यक्ति को मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने की आशंका हो तो वह अपनी रक्षा के लिए हमलावर की मृत्यु तक कर सकता है, लेकिन खतरे की आशंका तत्काल होना चाहिए धमकी के कारण है आशंका मान्य नहीं है।

इस संबंध में जानिए महत्वपूर्ण निर्णय:-

▪︎ देवनारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले मे सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिमत किया कि खतरे की आशंका तभी उचित मानी जाएगी जब खतरा तत्काल हो। न्यायालय ने आगे कहा कि सिर पर किए गए लाठी के वार के बदले भाले का वार धारा 100 के संदर्भ मे निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का अतिक्रमण नहीं होगा।

▪︎ घूरेलाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में न्यायालय ने कहा की अगर आक्रमणकारी सिर पर लाठी से वार कर रहा है और उसके पास हथियार भी है तब बचाव पक्ष अपनी रक्षा में गोली चला दे और हमलावर की मृत्यु हो जाए तो बचाव पक्ष को निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का लाभ मिला जाना उचित होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद), इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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