मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चिल्ड्रन होम्स मामले का खुलासा होने के बाद, एक नई जानकारी भी सामने आई है। पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान (जो स्वयं को मध्य प्रदेश के बच्चों का मामा कहते हैं) ने चाइल्ड हेल्पलाइन का काम NGO को सौंप दिया था। मासूम बच्चों को आपातकालीन मदद देने के लिए भी सरकार तैयार नहीं थी। NGO वालों ने क्या किया, इसका खुलासा भोपाल मामले में हो चुका है।
CHILD LINE केंद्र सरकार ने मना किया था लेकिन मुख्यमंत्री मामा ने फिर भी निजीकरण कर दिया
केंद्र सरकार ने चाइल्ड हेल्पलाइन को ‘वन नेशन-वन हेल्पलाइन के तहत आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (112) के साथ जोड़ने का निर्णय किया था। जुलाई 2023 में जब केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी भोपाल आई थी तब उन्होंने भी कहा था कि, चाइल्ड हेल्पलाइन NGO नहीं बल्कि सरकार चलाएगी। इसके बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से ठीक 5 दिन पहले दिनांक 4 अक्टूबर 2023 को आयोजित कैबिनेट की बैठक में चाइल्ड हेल्पलाइन चलाने की स्वीकृति अगले 1 साल के लिए अशासकीय अनुभवी संस्थाओं को देने का फैसला कर दिया।
मप्र में निजी संस्थाओं को लाभ पहुंचाने नियम तोड़-मरोड़ दिए गए, आयोग के सदस्य ने कहा
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि मप्र में चाइल्ड हेल्पलाइन की प्रक्रिया केंद्र के दिशानिर्देश के उलट है। ऑडिट में इस पर आपत्ति लग सकती है और केंद्र बाद में फंड भी रोक सकता है। चाइल्ड हेल्पलाइन में ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे संगीन मामले भी अब शामिल हैं। इसलिए एनजीओ के बस में ये चीजें नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कई बार उनका खुद ऐसे गिरोहों से सामना हुआ और पुलिस न होती तो उनकी जान भी जा सकती थी। केंद्र के निर्देशों के मुताबिक हेल्पलाइन डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन अफसर की निगरानी में आउटसोर्स स्टाफ के माध्यम से चलेंगी न कि एनजीओ द्वारा। वहीं राज्य बाल आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा कि मप्र में निजी संस्थाओं को लाभ पहुंचाने के लिए नियम तोड़-मरोड़ दिए गए हैं। अधिकारियों द्वारा गुपचुप तरीके से आचार संहिता से पहले कैबिनेट सहमति ले ली गई थी।
मामा, कलम चलाते समय रूप बदल लेते थे
मंच पर भाषण देते समय शिवराज मामा बड़े संवेदनशील और अपने से लगते थे लेकिन जब कलम चलाने की बारी आती थी तो अपना रूप बदल लिया करते थे। उन्होंने केवल वही फैसला किया, जिसका लाभ चुनाव में मिल सकता था। पीड़ित लावारिस मासूम बच्चे मतदाता नहीं होते, इसलिए उन्हें निजी संस्थाओं के हवाले छोड़ दिया। वोट के लिए भारी ठंड में रात के समय ठिठुरते हुए रेन बसेरों का निरीक्षण किया करते थे परंतु कभी चिल्ड्रंस होम नहीं गए। जहां पीड़ित और लावारिस बच्चों को रखा जाता है।
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