BNS 15, IPC 77 - जज किसी को मृत्युदंड दे दे, फांसी के बाद पता चले, वह तो निर्दोष था...

Legal general knowledge and law study notes 

पिछले लेख में हमने आपको बताया था कि अगर किसी तथ्यों की भूल से किसी व्यक्ति से कोई अपराध हो जाता है तब उसे IPC की धारा 76 एवं नए कानून BNS की धारा 12 के अंतर्गत क्षमा कर दिया जाता है। अगर कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी आरोपी को मृत्यु दण्ड का आदेश दे देता है एवं फांसी होने के बाद पता चले कि व्यक्ति निर्दोष था तब क्या उसकी मृत्यु का जिम्मेदार न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट होगा या नहीं, आज की धारा-77 एवं नए कानून BNS की धारा 15 में जानिये।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 15, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 77 की परिभाषा 

अगर कोई न्यायिक कार्यवाही करते हुए मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश विधि को ध्यान में रखते हुए या पालन करते हुए कोई ऐसा निर्णय देता है जिससे की व्यक्ति निर्दोष हो, लेकिन सबूतों या साक्ष्यो के आधार पर दोषी पाया जाता है, तब मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश का निर्णय जो लिखित या मौखिक हो किसी भी प्रकार से अपराध नहीं होगा। नोट:- लेकिन सिविल न्यायालय के मजिस्ट्रेट को इस धारा के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त नहीं है उनको न्यायिक अधिकारी संरक्षण अधिनियम,1850 के अंतर्गत इस प्रकार का संरक्षण प्राप्त होगा।

एम.एल. जैन बनाम भारत सरकार 1974 - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इसमें सुप्रीम कोर्ट ने धारा 77 के दायरे को स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि धारा 77 का उद्देश्य न्यायिक कार्यवाही की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करना है। इसलिए, धारा 77 के तहत अपराधीकरण से छूट केवल तभी प्राप्त होगी जब न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में हो और वह कार्यवाही न्यायाधीश द्वारा सद्भावपूर्वक की गई हो।

एम.सी. मेहता बनाम भारत सरकार 1984 - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 77 के तहत अपराधीकरण से छूट केवल तभी प्राप्त होगी जब न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही विधि द्वारा दी गई शक्तियों के प्रयोग में की गई हो। यदि न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही विधि द्वारा दी गई शक्तियों के बाहर है, तो वह धारा 77 के तहत अपराधीकरण से छूट प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होगा।

एस.पी. गुप्ता बनाम भारत सरकार 2005 - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 77 के तहत अपराधीकरण से छूट केवल तभी प्राप्त होगी जब न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में हो और वह कार्यवाही न्यायाधीश द्वारा सद्भावपूर्वक की गई हो। यदि न्यायाधीश द्वारा की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में नहीं है या वह कार्यवाही न्यायाधीश द्वारा सद्भावपूर्वक नहीं की गई है, तो वह धारा 77 के तहत अपराधीकरण से छूट प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होगा।

निष्कर्ष
आईपीसी की धारा 77 न्यायिक कार्यवाही की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह प्रावधान न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वे अपने कार्यों के लिए भय या पक्षपात के बिना कार्य कर सकें।

The Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 section 15, Indian Penal Code, 1860 section 77 Punishment 

भारतीय न्याय संहिता की धारा 15 अथवा भारतीय दंड संहिता की धारा 77 के तहत किसी भी प्रकार के दंड का प्रावधान नहीं है बल्कि, इस धारा का संरक्षण नहीं मिलने पर, अपराध के अनुसार दूसरी किसी धारा के तहत मुकदमा चलेगा, और दंडित किया जा सकेगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 , इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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