हिमाचल प्रदेश के हाई कोर्ट ने एक याचिका पर बहस पूरी होने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला कर्मचारी स्थाई हो अथवा अस्थाई, चाहे वह दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी ही क्यों ना हो, सभी को मातृत्व अवकाश का अधिकार है। इससे पहले प्रशासनिक प्राधिकरण ने भी यही फैसला दिया था परंतु हिमाचल प्रदेश की सरकार ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी। सरकार की अपील खारिज हो गई है।
नियोक्ता को सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश श्री तरलोक सिंह चौहान एवं श्री विजेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा कि, मां बनना एक महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है। इसलिए एक महिला, जो नौकरी में है, को अपने बच्चे के जन्म की सुविधा के लिए जो भी आवश्यक हो, नियोक्ता को उसके प्रति विचारशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। उन शारीरिक कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए, जो एक कामकाजी महिला को बच्चे को गर्भ में या उसके जन्म के बाद बच्चे के लालन-पालन के दौरान सामना करना पड़ता है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिला और उसके बच्चे को पूर्ण और स्वस्थ रखरखाव प्रदान करके मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिलाओं, मातृत्व और बचपन को सामाजिक न्याय प्रदान करना है। मां व बच्चे दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
मातृत्व अवकाश, महिला कर्मचारियों का मौलिक मानवाधिकार
हाईकोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश, महिला कर्मचारियों का मौलिक मानवाधिकार है, जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता था। इसलिए, स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता को मातृत्व का लाभ न देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 39डी का उल्लंघन है।
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