When non bailable warrant can be issued, Supreme Court judgment
वारंट का अर्थ होता है दस्तक या इख्तियार, दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 2(भ) में बताया गया है कि कोई अपराध मृत्यु दण्ड, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक अविधि के कारावास से सम्बंधित है तब वह मामला वारंट मामला कहलाता है लेकिन दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 259 में मजिस्ट्रेट को शक्ति प्राप्त है कि वह ऐसे समन मामले जो छः माह से अधिक के कारावास से दण्डिनीय है उनको वारंट मामले में परिवर्तन कर विचारण कर सकता है। सवाल यह है कि वारंट मामलों में अजमानतीय वारंट कब जारी किया जा सकता है जानिए।
Non bailable warrant law cases- इंदर मोहन गोस्वामी बनाम उत्तरांचल राज्य (2007)
:- उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि गिरफ्तारी और कारावास का अर्थ है व्यक्ति को उसके बहुमूल्य अधिकार से वंचित करना। इसलिए अजमानतीय वारण्ट जारी करने से पहले न्यायालय को बेहद सावधानी बरतनी चाहिए।
किसी व्यक्ति को न्यायालय में लाने के लिए गैर-जमानती वारण्ट तब जारी किया जाना चाहिए जब समन या जमानतीय वारण्ट से प्रतिकूल परिणाम आ गए है अर्थात:-
1. व्यक्ति स्वेच्छा से या जानबूझकर न्यायालय में पेश नहीं हो रहा है।
2. पुलिस अधिकारी व्यक्ति को समन तामील करने के लिए उसे खोजने के असमर्थ है या व्यक्ति जानबूझकर समन को अनदेखा कर रहा है।
3. अगर व्यक्ति तो तुरंत हिरासत में नहीं लिया गया तो वह नुकसान कर सकता है या किसी अपराध को अन्जाम दे सकता है।
उपरोक्त शर्त के आधार ही न्यायालय अजमानतीय वारण्ट जारी कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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