जबलपुर। नैतिकता की दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी मामले में राजीनामा का मतलब आरोपी का निर्दोष साबित हो जाना नहीं होता। ऐसी स्थिति में आपराधिक मामले में राजीनामा के बाद क्या किसी आरोपी को सरकारी नौकरी मिल सकती है। क्या सरकारी नौकरी की प्रक्रिया में राजीनामा को दोष मुक्ति माना जाएगा। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का ताजा डिसीजन पढ़िए:-
मध्यप्रदेश पुलिस आरक्षक भर्ती 2020-21 परीक्षा में चयनित उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह को पुलिस अधीक्षक देवास द्वारा इस आधार पर वंचित कर दिया गया था कि संबंधित के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज हुआ था तथा उसमें राजीनामा हुआ है। अतः निर्दोष नहीं है।
एसपी देवास के आदेश को उम्मीदवार द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कैंडिडेट भूपेंद्र सिंह की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने प्रकरण क्रमांक 7300/2023 में पक्ष प्रस्तुत किया। सुनवाई जस्टिस आनंद पाठक द्वारा की गई। अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने विद्वान न्यायाधीश को बताया कि उम्मीदवार ने उपरोक्त आपराधिक मामले की जानकारी स्वयं नियुक्ति प्राधिकारियों को दी थी जोकि नैतिक अधोपतन की श्रेणी में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच द्वारा अवतार सिंह के मामले में अहम मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं, जिन्हें पुलिस के नियुक्ति प्राधिकारियों द्वारा नजरअंदाज किया गया।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होते हुए पुलिस अधीक्षक देवास के आदेश दिनांक 28 फरवरी 2023 को निरस्त कर दिया तथा डीजीपी मध्य प्रदेश पुलिस एवं एसपी देवास को निर्देशित किया कि सुप्रीम कोर्ट के उक्त मार्गदर्शी सिद्धांत के अनुसार इस प्रकरण का पुनः परीक्षण करके याचिकाकर्ता की नियुक्ति का आदेश 45 दिन के भीतर जारी करें।