Rajiv Gandhi praudyogiki Vishwavidyalay, Bhopal में 256 करोड़ का बैंक का एफडी घोटाला सामने आया है। स्टूडेंट्स की फीस के 256 करोड रुपए एफडी के नाम पर प्राइवेट बैंकों को दे दिए गए जबकि इस प्रकार का कोई प्रावधान ही नहीं है। आरोप लगाने के लिए पर्याप्त कारण है कि, आरजीपीवी मैनेजमेंट ने किसी व्यक्तिगत फायदे के लिए इस प्रकार का निर्णय लिया है।
RDPV 256 करोड़ बैंक एफडी घोटाला- पॉइंट नंबर 1
खबर मिली है कि, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मैनेजमेंट द्वारा सब कुछ बड़े ही सोचे समझे तरीके से किया गया। निजी बैंकों में विनिवेश करने के लिए 29 सितंबर 2022 की कार्यपरिषद की बैठक में प्रस्ताव रखा लेकिन सदस्यों को भी इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव की जानकारी मुख्य एजेंडे में नहीं दी गई। इस प्रस्ताव को सप्लीमेंट्री एजेंडा में रखा गया। अक्सर ऐसा तब किया जाता है जब एजेंडा जारी हो जाने के बाद कोई महत्वपूर्ण विषय कार्यपरिषद में रखना अनिवार्य हो जाए। इस प्रावधान का फायदा उठाया जाता है। प्रशासन सप्लीमेंट्री एजेंडा में ऐसे विषय शामिल कर देता है, जिसे बिना बहस के पास कराना चाहता हो और प्रशासन ना चाहता हूं कि कार्य परिषद के सदस्य उस विषय में कोई होमवर्क करके आएं।
RDPV 256 करोड़ बैंक एफडी घोटाला- पॉइंट नंबर 2
कार्यपरिषद मीटिंग के मिनिट्स में राज्य सरकार के वित्त विभाग की गाइडलाइन का जिक्र भी नहीं है। राज्य सरकार के वित्त विभाग ( संस्थागत वित्त संचालनालय) की 7 नवंबर 2015 को जारी सर्कुलर में प्राइवेट बैंक में एफडी कराने की छूट नहीं है।
RDPV 256 करोड़ बैंक एफडी घोटाला- पॉइंट नंबर 3
यूनिवर्सिटी द्वारा जब राष्ट्रीय कृत बैंक में फिक्स डिपाजिट की जाती है तो वह अक्सर 1 साल के लिए होते हैं क्योंकि अगले शिक्षा सत्र में उनकी जरूरत पड़ने की संभावना हो सकती है। नियम तो नहीं है परंतु यही परंपरा है। आरजीपीवी मैनेजमेंट ने प्राइवेट बैंकों के प्यार में इस परंपरा को भी तोड़ दिया। तीन बैंकों में अलग-अलग राशि की एफडी कराई गई। एक बैंक में 81.99 करोड़ की करीब छह एफडी, दूसरी बैंक में 75 करोड़ की तीन एफडी व एक अन्य बैंक में 100 करोड़ की चार एफडी कराई गई हैं। सभी 2 साल के लिए हैं।
अब RGPV की दलील पढ़िए
प्रो. आरएस राजपूत, रजिस्ट्रार, आरजीपीवी का कहना है कि, वित्त विभाग के निर्णय की जानकारी नहीं है लेकिन ईसी में वित्त विभाग के सचिव के नॉमिनी बैठक में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा था कि विवि स्वायत्त संस्थान हैं, इसलिए आरबीआई की शेड्यूल्ड प्राइवेट बैंक में एफडी कराई सकती है। आजकल सबकुछ बैंकों की पूरी डिटेल वेबसाइट पर है। बैंकों से ईमेल के जरिए भी ब्याज दर की जानकारी मांगी। जिनकी ज्यादा ब्याज दर थी,उनमें एफडी कराई।
RDPV से कुछ खुले सवाल
- आरबीआई के शेड्यूल प्राइवेट बैंकों में, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई,एक्सिस बैंक के अलावा और भी कई बैंक हैं जिन की ब्याज दर इन तीनों से ज्यादा है। ज्यादा ही ब्याज कमाना था तो फिर ओपन टेंडर जारी क्यों नहीं किया।
- रजिस्ट्रार कहते हैं कि, वित्त विभाग के निर्णय की जानकारी नहीं है। यदि नहीं है तो जानकारी लेनी चाहिए थी। एफडी कराने की इतनी क्या जल्दबाजी थी।
- जब जानकारी नहीं है तो प्राइवेट बैंकों से संपर्क ही क्यों किया। जो परंपरा चली आ रही थी उसका पालन करना चाहिए था।
- रजिस्ट्रार के बयान से यह भी प्रमाणित होता है कि, वित्त विभाग के सचिव के नॉमिनी इसमें शामिल हैं।
- सबसे बड़ा सवाल, यूनिवर्सिटी की प्राथमिकता क्या है। जमा धन की सुरक्षा या फिर ज्यादा ब्याज का लालच। आरबीआई के अनुसार प्राइवेट बैंक यदि दिवालिया हो जाता है तो किसी भी खाताधारक को ₹500000 से ज्यादा नहीं मिलेंगे फिर चाहे उसके खाते में 5 करोड़ की बैंक एफडी क्यों ना हो।
जो होना था हो गया, अब क्या कर सकते हैं
विद्यार्थियों के 256 करोड रुपए की सुरक्षा का सवाल है। प्राइवेट बैंक एफडी तोड़कर राष्ट्रीय कृत बैंकों में लगाना जरूरी है। यदि कार्यपरिषद को लगता है कि उसके पास खर्चे से ज्यादा पैसे जमा हो गए हैं तो पोस्ट ऑफिस में निवेश करें। तीनों प्राइवेट बैंकों से ज्यादा ब्याज मिलता है। सरकार की इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं में निवेश करें और गोल्ड बॉन्ड खरीदें। देश के लिए इतना भी नहीं कर सकते क्या।
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