GWALIOR के गणेश जिन्हें मोदक नहीं राजस्थान के लड्डू पसंद है, IAS-IPS अर्जी लगाते हैं

मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में MLB रोड फूलबाग गुरुद्वारा के सामने सड़क किनारे स्वयंभू श्री गणेश विराजमान है। भगवान श्री गणेश यहां कैसे आए किसी को नहीं पता पर कहते हैं कि इस स्थान पर हमेशा से एक मोटा सा पत्थर रखा रहता था। जो कोई दुखी व्यक्ति इस पत्थर के पास जाता, उसका दुख दूर हो जाता था। इसलिए लोग पत्थर की पूजा करने लगे थे।
 
सन 1980 में अचानक पत्थर ने चोला छोड़ दिया। करीब एक क्विंटल वजन का चोला निकला था। उसके बाद गणेश प्रतिमा अस्तित्व में आई। यहां गणेशजी के साथ दोनों तरफ रिद्धि-सिद्धि विराजमान हैं। धर्म ग्रंथों में लिखा है कि भगवान श्री गणेश को मोदक सबसे प्रिय है। उनके प्रसाद में दूसरे नंबर पर मोतीचूर के लड्डू आते हैं परंतु ग्वालियर के अर्जी वाले श्री गणेश को राजस्थान में बनने वाली मोटी बूंदी के लड्डू पसंद है। इसलिए उनका भोग लगाने के लिए राजस्थान से लड्डू आते हैं।

ग्वालियर के सबसे प्राचीन स्वयंभू श्री गणेश की कथा

यह मंदिर बीच शहर में फूलबाग गुरुद्वारा के सामने MLB रोड़ किनारे बना है। श्रद्धालु अपनी मनोकामना और दर्शन के अनुसार इन्हें कांच वाले गणेश, अर्जी वाले गणेश व कुंआरों के गणेश नाम से पुकारते हैं। यह मंदिर सन 1980 में बनाया गया था परंतु श्री गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। उसे किसी कारीगर ने नहीं बनाया है। यह प्रतिमा अपनी निर्धारित विधि के अनुसार प्रकट हुई है। ब्राह्मणों का कहना है कि यह प्रतिमा सिद्धियोग वाले श्री गणेश की प्रतिमा है।

हाई प्रोफाइल नेता, व्यापारी और अफसर अर्जी लगाने आते हैं 

यहां अर्जी लगाने की परंपरा है। इसकी एक विशेष विधि है। मंदिर का संचालन करने वाली समिति के लोग कहते हैं कि यहां पर कई बड़े नेता, व्यापारी और आईएएस आईपीएस अफसर अर्जी लगाने के लिए आते हैं। किसी का कर्ज उतर जाता है। किसी को न्याय मिलता है किसी को नौकरी, और किसी का विवाह हो जाता है। जिसकी मनोकामना पूरी होती है वह 11 बुधवार परिक्रमा लगाता है। 

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