Amazing facts in Hindi- भारत में चीते पालतू पशु थे, आखरी चीते का शिकार किसने किया, सही Ans पढ़िए

भारतवर्ष में मुगलों के शासन काल से पहले चीतों की घनी आबादी हुआ करती थी। अकबर के पास 2000 से अधिक चीते थे। जिनका राज महल द्वारा पालन पोषण किया जाता था लेकिन सन 1948 में भारत में एशियाटिक चीतों की प्रजाति खत्म हो गई। आइए जानते हैं भारत में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले चीतों की प्रजाति को किसने खत्म किया। 

भारत में चीते पालतू पशु थे, किसान पालते थे

चीता तेज गति से दौड़ने वाला एक मांसाहारी और शिकारी जानवर है परंतु इंसानों के साथ रहना पसंद करता है। चीता कभी इंसानों पर हमला नहीं करता। शायद यही कारण है कि इंसानों ने उस पर हमला किया और भारतवर्ष में उसकी पूरी प्रजाति ही नष्ट कर दी। कुछ पुराने प्रसंगों में उल्लेख मिलता है कि भारत के किसान चीते पालते थे। जैसे आजकल कुत्ते पाले जाते हैं। जब कोई जंगली जानवर उनके खेत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता था तो चीते की मदद से उसे भगा देते थे। 

किसान और चीतों की दोस्ती में दोनों का फायदा होता था। किसान के खेत की रक्षा हो जाती थी और चीते को शिकार की तलाश में भटकना नहीं पड़ता था। इतिहास की किताबों में दर्ज है कि मुगल राजाओं ने चीतों को एक हथियार की तरह उपयोग किया। हजारों चीते उनकी सेना में शामिल होते थे और दुश्मन पर हमला करते थे। मुगल शासकों में सबसे महान राजा अकबर की सेना में भी 2000 से ज्यादा चीते थे। 

भारत में बचे आखरी 3 चीतों का शिकार किसने किया 

यहां बहुत सारे माध्यमों से आपको जानकारी मिल सकती है कि भारत में बच्चे आखरी 3 चीतों का शिकार सरगुजा के महाराज रामानुज शरण सिंहदेव ने किया लेकिन यह सही जानकारी नहीं है। यह शिकार कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने किया था। दोनों राजाओं के नाम लगभग मिलते जुलते हैं और कोरिया की तुलना में सरगुजा के राजा ज्यादा लोकप्रिय थे इसलिए कुछ विद्वानों द्वारा रामानुज प्रताप की जगह रामानुज शरण बताया गया है। 

भारत में चीते कब विलुप्त हुए 

कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने सन 1948 में 3 चीतों का शिकार किया था। इससे पहले सन 1945 में यह कहा जाने लगा था कि भारत में एशियाटिक चीते की प्रजाति खत्म हो गई है। राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने सन 1948 में 3 चीतों का शिकार करके अपना फोटो जारी किया था। यह बताने के लिए कि भारत में चीते अभी भी मौजूद है, लेकिन इसके बाद ना तो चीतों का कोई शिकार हुआ और ना ही उनके पगमार्क मिले। जब वन विभाग के सभी अधिकारियों ने इसकी पुष्टि कर दी तो सन 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से यह घोषित किया कि भारत में चीते विलुप्त हो गए हैं। 

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