भीलो का छोटा से गांव भोपाल को दोस्त खान ने ना केवल एक शहर बनाया बल्कि राज्य घोषित किया और खुद भोपाल का नवाब बना लेकिन दोस्त खान अपने भोपाल पर ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाया। हैदराबाद के निजाम ने भोपाल पर हमला कर दिया और भोपाल लंबे समय तक हैदराबाद के निजाम और मराठा साम्राज्य का हिस्सा बना रहा।
हैदराबाद के इतिहास में दर्ज है कि 23 मार्च 1723 को निजाम ने एक छोटी सी सेना भोपाल पर हमले के लिए भेज दी। दोस्त खान ने यहीं पर अपना नया किला बनाया था लेकिन दोस्त खान ज्यादा समय तक निजाम की सेना से लड़ नहीं पाया। 24 घंटे के भीतर उसने सरेंडर कर दिया। भोपाल जिले की जिस पहाड़ी को निजाम टेकरी कहा जाता है वहीं पर दोस्त खान की सेना ने निजाम की सेना के सामने घुटने टेक कर सरेंडर किया।
दरअसल मुगलों से वफादारी दिखाने के कारण दोस्त खान ने हैदराबाद के निजाम से दुश्मनी मोल ले ली थी। युद्ध में समर्पण करने के बाद अपनी जान बचाने के लिए दोस्त खान ने हैदराबाद के निजाम को 10 लाख रुपए जुर्माना दिया। यह मुगलों से वफादारी और हैदराबाद के निजाम के सामने सर उठाने का अर्थदंड था। निजाम को पता था कि दोस्त खान विश्वास के योग्य नहीं है। इसके कारण रानी कमलापति को आत्महत्या करनी पड़ी थी। उनके बेटे को इसने सैनिक भेजकर मरवा दिया था।
इसलिए हैदराबाद के निजाम ने दोस्त खान के उत्तराधिकारी एवं 14 वर्षीय बेटा यार मोहम्मद खान को अपने पास हैदराबाद बुला लिया। एक प्रकार से उसे नजर बंद कर दिया गया था। निजाम ने दोस्त खान को उसी के किले में किलेदार बना दिया। निजाम के बाद मराठा साम्राज्य ने भोपाल से लंबे समय तक चौथ वसूली की।
इस कहानी में एक खास बात यह भी है कि दोस्त खान के परिवार के लोगों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। जब भारत पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया और वह भारत में सबसे ज्यादा शक्तिशाली हो गए तब सन 1818 में दोस्त खान के परिवार वालों ने ब्रिटिश अधिकारियों से मुलाकात की और खुद को भोपाल राज्य का असली उत्तराधिकारी बताते हुए भोपाल को ब्रिटिश राज्य की रियासत घोषित करवा दिया। इस प्रकार दोस्त खान के परिवार वाले एक बार फिर भोपाल के नवाब बन गए। (भोपाल गांव से राज्य कब बना, पढ़िए रोचक इतिहास)