भगवान शिव आदिदेव है, उन्होंने पृथ्वी पर जीवन का प्रसार किया। उनके गले में नाग, कार्तिकेय का वाहन मोर, उनका गण नंदी, श्री गणेश का वाहन मूषक इन सब के माध्यम से सबको जीवन का अधिकार का सिद्धांत स्थापित किया। फिर क्या कारण है कि उन्होंने बाघ की खाल को अपना आसन बनाया। आइए जानते हैं कि इसके पीछे कोई साइंटिफिक लॉजिक भी है क्या।
महादेव ने बाघ की खाल को आसन बनाने की धार्मिक कथा
जब भगवान विष्णु ने हिरण्याकश्यिप का वध करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था तब वे आधे नर और आधे सिंह के रूप में में थे। जब नरसिंह अवतार का लक्ष्य पूर्ण हुआ तब उस प्रसंग को सदैव के लिए अमर कर देने हेतु भगवान विष्णु के सुझाव पर महादेव ने नरसिंह के चोले को धारण कर लिया। केवल आसन नहीं बनाया बल्कि अपने शरीर पर वस्त्र के समान धारण किया। यानी भगवान शिव का जो आसन है वह भगवान विष्णु के नर+सिंह का आवरण है। किसी जानवर की खाल नहीं है।
भगवान शिव की बाघ की खाल के आसन का साइंटिफिक लॉजिक
भगवान शिव का निवास हिमालय पर स्थित कैलाश पर्वत है और बाघ हिमालय को छोड़कर पूरे एशिया में पाया जाता है। जैसा कि आप जानते हैं कि भगवान शिव अंतरिक्ष के स्वामी हैं। हर चीज से विज्ञान जुड़ा है। ऐसा विज्ञान जिसका अनुसंधान नासा और इसरो भी नहीं कर पाए हैं। बाघ की खाल ऊर्जा की सबसे अच्छी कुचालक है। भगवान शिव ने इसे आसन बनाकर इंजीनियरिंग का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया।
ऊर्जा के प्रवाह को रोकने के लिए किसी अविष्कार की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति में ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बाघ की खाल का उपयोग करके बताया कि कैलाश पर्वत जैसी अत्यधिक ठंडी जगह पर भी इस प्रकार की तकनीक का उपयोग करके उस की हानि से बचा जा सकता है।