गुरु शिष्य परंपरा भारत की पहचान है। सदियों से भारत में गुरु पूर्णिमा की तिथि श्रद्धा पूर्वक मनाई जाती रही है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पृथ्वी पर गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत कब और किसने की थी। इसके पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा है। कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ें:-
कहा जाता है कि करीब 15000 साल पहले भगवान शिव ने सिद्धि प्राप्त की और इस सफलता के बाद उन्होंने पवित्र हिमालय पर्वत पर अद्भुत नृत्य किया। शिव अपने आनंद में थे, उन्होंने ध्यान नहीं दिया परंतु कुछ प्राणी उन्हें देख रहे थे। इनमें से 7 मनुष्य ऐसे थे, जो शिव पर मोहित हो गए। वह भगवान शिव के इस अद्भुत नृत्य का रहस्य जानना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव आनंद के बाद फिर से ध्यान में लीन हो गए।
कुछ वर्षों के बाद जब शिव ने नेत्र खोले तो बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज उनके समक्ष थे। भगवान शिव ने कारण पूछा। सातों ने अपनी जिज्ञासा बता दी। भगवान शिव ने कहा कि मेरा आनंद किसी जिज्ञासा या कौतूहल का विषय नहीं है। तुम लाखों साल इसी प्रकार गुजार दोगे परंतु रहस्य नहीं जान पाओगे। यह कहकर भगवान शिव फिर ध्यान मग्न हो गए।
सातों ऋषि उनके समक्ष बैठे रहे। 84 वर्ष बाद शरद संक्रांति के अवसर पर जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन हुए भगवान शिव समाधि से बाहर निकले। सभी का संकल्प देखकर प्रभावित हो गए और अगली पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने सातों को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार भगवान शिव आदि गुरु के रूप में स्थापित हो गए। सप्त ऋषि उनके शिष्य बन गए और इसी दिन प्रकृति में गुरु शिष्य परंपरा का प्रारंभ हुआ। यही दिन गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।