भोपाल। लोग दूध से जलते हैं, कमलनाथ की तो पूरी सरकारी स्वाहा हो गई थी। छाछ को फूंक-फूंक कर पीने के बजाय मशीन से पाश्चुरीकरण करवा रहे हैं। नगर निगम के चुनाव में कमलनाथ, टिकट के सभी दावेदारों से शपथ पत्र भरवा रहे हैं। जिसमें लिखा है कि टिकट मिले ना मिले, बगावत नहीं करूंगा।
कमलनाथ को डर है कि भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, सतना सहित सभी बड़े शहरों में नगर निगम चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर बगावत हो सकती है। इस बगावत का नुकसान नगर निगम के चुनाव में तो होगा ही, अगले साल विधानसभा के चुनाव में भी हो सकता है। इतिहास गवाह है, सन 2018 में अशोकनगर में विधानसभा टिकट के दावेदार डॉक्टर केपी यादव ने बगावत की थी। 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे श्रीमंत महाराजा को धूल चटा कर सांसद बन गया।
सिर्फ इतना ही नहीं, बगावत के नुकसान का कमलनाथ को व्यक्तिगत तौर पर भी काफी बड़ा अनुभव है। बड़ी जुगत लगाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर दी। पूरी की पूरी सरकार ही गिर गई थी। कुल मिलाकर कमलनाथ को पता है कि हर एक बागी हानिकारक होता है। 2023 का विधानसभा चुनाव, कमलनाथ की जिंदगी का आखरी चुनाव है।
वह नहीं चाहते कि 40 साल तक लगातार जीत और भारतीय राजनीति के रेड कार्पेट पर चलने के बाद उन्हें एक हारे हुआ नेता के रूप में याद किया जाए।