ग्वालियर। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आपातकाल को लेकर बयान जारी किया है। इसी के साथ उनका बयान सुर्खियों में आ गया है। इसका कारण यह है कि उनके परिवार में उनकी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने आपातकाल का दर्द भोगा है और उनके पिता माधवराव सिंधिया ने आपातकाल का फायदा उठाया। दरअसल सिंधिया परिवार का कोई भी व्यक्ति जब इतिहास की बात करता है तो दोनों पक्ष सामने आ ही जाते हैं।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का बयान
अपने पिता की कांग्रेस पार्टी से अपनी दादी की भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज अपने बयान में लिखा कि, 25 जून 1975, आज ही के दिन हमारे गौरवशाली लोकतंत्र की हत्या कर तत्कालीन सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जो भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन था। इसके विरोध में उठी हर आवाज को मेरा सादर नमन।
राजमाता को तिहाड़ जेल के गंदगी भरे कमरे में रखा था
ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा प्रिंसेस में बताया है कि उन्हें तिहाड़ जेल के एक गंदगी भरे कमरे में रखा गया था। टॉयलेट के नाम पर एक गड्ढा था जिसमें से हमेशा बदबू आती रहती थी। दिनभर मक्खियां भिनभिनातीं थी। रात में कीड़े मकोड़े सोने नहीं देते थे। पहरेदारी पर एक महिला थी जिसका नाम रानी था। वह सेविंग ब्लेड लेकर चलती थी। कहती थी कि यदि आवाज की तो चेहरा बिगाड़ देगी। निरंतर अपमान करती रहती थी। उनकी बेटियों को उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा था।
माधवराव सिंधिया गिरफ्तारी से बचने नेपाल भाग गए थे
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने राजनीति की शुरुआत अपनी मां के आशीर्वाद से की थी। 1971 में राजमाता ने अपनी गुना सीट अपने 26 वर्षीय बेटे माधवराव सिंधिया के लिए छोड़ दी थी। वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और राजमाता के आवाहन पर जनता ने उन्हें भारी वोटों से विजई बनाया। जब आपातकाल लगा तो गिरफ्तारी से बचने के लिए माधवराव सिंधिया नेपाल भाग गए। उसके बाद वापस लौट कर आए और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
राजमाता से इंदिरा गांधी नाराज क्यों थीं
राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारत की आजादी के बाद सन 1956 में जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिलने दिल्ली पहुंची। यहां उन्होंने इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की। फिर गोविंद बल्लभ पंत और लाल बहादुर शास्त्री जी से मिली। इसके बाद कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और पहली बार सांसद बनी। इस प्रकार सिंधिया राजपरिवार की लोकतांत्रिक राजनीति में शुरुआत हुई। जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र द्वारा उन्हें अपेक्षाकृत महत्व नहीं मिला तो उन्होंने ना केवल पार्टी छोड़ दी बल्कि सरकार गिरा दी। फिर जनसंघ में शामिल हुई और इंदिरा गांधी के पीछे पड़ गईं। इंदिरा गांधी इसी बात से नाराज थीं।