20 मार्च- मध्य प्रदेश की राजनीति में बॉसिज़्म के नुकसान याद करने का दिन - MP politics history

भोपाल
। मध्य प्रदेश की राजनीति के इतिहास में 20 मार्च 2020 का दिन कभी नहीं भुलाया जा सकता। इस दिन मध्यप्रदेश में ऐसा हुआ, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। जो मध्य प्रदेश की राजनीतिक संस्कृति की पहचान के विरुद्ध था, परंतु फिर भी जनता ने इसे स्वीकार किया और उपचुनाव में मोहर लगाई। मध्यप्रदेश में राजनीति करने वालों और राजनीति के विद्यार्थियों के लिए 'कमलनाथ का तख्तापलट' सबसे महत्वपूर्ण केस स्टडी है, क्योंकि यह मध्य प्रदेश की राजनीति में लोकतंत्र के अपहरण का नहीं बल्कि बॉसिस्म के नुकसान का मामला है। 

मध्यप्रदेश में कांग्रेस नहीं कमलनाथ का तख्तापलट हुआ था

सभी नेता अपनी-अपनी पार्टी की गाइडलाइन के अनुसार बयान दे रहे हैं। टीवी चैनल पर डिबेट के लिए तटस्थ विशेषज्ञों को आमंत्रित ही नहीं किया जाता। इसलिए राजनीति के युवा कार्यकर्ताओं एवं विद्यार्थियों को खुद समझना होगा। यहां ध्यान देना होगा कि सन 2018 में मध्य प्रदेश की जनता ने कांग्रेस पार्टी को जनादेश दिया था लेकिन 20 मार्च 2020 को कांग्रेस की सरकार का नहीं बल्कि कमलनाथ का तख्तापलट हुआ। जनता की तो भूमिका ही नहीं थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित जितने भी विधायकों ने इस्तीफा दिया। वह सभी कमलनाथ से नाराज थे। इस घटनाक्रम के बाद भी, कांग्रेस पार्टी में जितने इस्तीफे हुए। उनमें से ज्यादातर कमलनाथ से नाराज थे। 

मध्यप्रदेश में किसी भी प्रकार के वाद और अहंकार की राजनीति नहीं चलती

किसी भी प्रकार का अध्ययन, परिणामों के आधार पर किया जाना चाहिए, अनुमानों के आधार पर नहीं। सन 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जातिवाद की राजनीति की थी। उनका कॉन्फिडेंस लेवल 100% पर था। चुनाव प्रचार के दौरान भी दिग्विजय की विजय सुनिश्चित लग रही थी लेकिन जनता ने प्रमाणित किया कि जातिवाद की राजनीति से चुनाव में जीत की रणनीति, कॉन्फिडेंस नहीं ओवरकॉन्फिडेंस होती है। 

भाजपा ने उमा भारती को अपना चेहरा बनाया था। दस्तावेज गवाह हैं, लोगों ने लोधी समाज की महिला नेता को वोट नहीं दिया। उमा भारती को भी वोट नहीं दिया। दिग्विजय सिंह के खिलाफ वोट किया था, लेकिन उमा भारती को जीत का अहंकार हो गया। पार्टी ने समझाने की कोशिश की लेकिन नहीं मानी। अलग पार्टी बना ली। क्या हुआ सबको पता है। 

2018 के चुनाव प्रचार के दौरान शिवराज सिंह के बयान भी अहंकारी थे। मेरी सरकार। मैं करूंगा। मैंने किया। इस तरह के बयान दे रहे थे जैसे मध्य प्रदेश में विकास सरकारी खजाने से नहीं शिवराज सिंह चौहान के फार्म हाउस की कमाई से हो रहा हो। कमलनाथ ने राउंड टेबल पर भले ही जाति और संप्रदाय के आधार पर रणनीति बनाई हो लेकिन जनता ने व्यापम घोटाला, अस्पतालों में घटिया इंतजाम, बड़े अस्पतालों में जूनियर डॉक्टरों की बदतमीजी और सरकारी स्कूलों की फेल हो चुकी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ वोट किया था, लेकिन कमलनाथ को लगा कि उनके मैनेजमेंट से चुनाव जीत गए हैं। 

मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ साहब हो गए। जनता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित नहीं की। प्रचार अभियानों, बयानों और भाषणों में विनम्रता के बजाय खुद को 40 साल का अनुभवी महान नेता बताने की कोशिश की गई। जनता के बीच प्रचार किया गया कि मध्य प्रदेश की जनता भाग्यशाली है जो कमलनाथ जैसा नेता उनका नेतृत्व करने के लिए आया है। चलो-चलो, वाक्य सीएम हाउस में चारों तरफ गूंजता रहता था। यही कारण रहा कि 2020 में तख्तापलट के बाद जब उपचुनाव हुए तो कमलनाथ के उम्मीदवार उन सीटों पर चुनाव हार गए जहां से 2018 में कांग्रेस पार्टी चुनाव जीती थी। 

स्पष्ट दिखाई देता है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी और कमल नाथ पार्टी दोनों अलग-अलग हैं। यह भी सब जानते हैं कि कमलनाथ के पास कांग्रेस पार्टी के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। फिर भी ग्राउंड जीरो पर कांग्रेस का अस्तित्व दिखाई दे रहा है। 

मध्यप्रदेश में तख्तापलट के बाद उपचुनाव से क्या सीखा 

एक बात फिर से स्पष्ट हो गई है। मध्य प्रदेश की जनता किसी भी प्रकार के वाद का समर्थन नहीं करती। फिर चाहे वाद की राजनीति सत्ता पक्ष की ओर से हो रही हो या फिर विपक्ष की ओर से। मध्य प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री के पद पर एक विनम्र व्यक्ति को देखना चाहती है। जो जनता की आवाज सुने और यदि गलत तरीके से सही बात कही जा रही हो तो उसे भी स्वीकार करें। मध्यप्रदेश के सर्वोच्च शिखर पर जनता के प्रति अहंकार अस्वीकार कर दिया गया है। मध्य प्रदेश की जनता अच्छी निशुल्क शिक्षा, अच्छी निशुल्क चिकित्सा और सरकारी नौकरी चाहती है। 

कमलनाथ की बड़ी गलतियां 

  • जनता से किए गए वादे नहीं निभाए। संविदा कर्मचारी, अतिथि शिक्षक और अतिथि विद्वानों को नियमित नहीं किया। 
  • व्यापम घोटाले की जांच नहीं कराई। माफिया को सब जानते हैं लेकिन कमलनाथ ने उसे सलाखों के पीछे नहीं भेजा। उल्टा व्यापम माफिया के प्रति नरम रुख अपनाया। 
  • मिलावट और अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाने का निर्णय गलत साबित हुआ। फील्ड में बड़े पैमाने पर अवैध वसूली हुई। यह भी कहा गया कि सबकुछ सीएम हाउस के निर्देशन में हो रहा है। गलती और अपराध करने वाले व्यापारियों को माफिया का नाम लेकर भी ठीक नहीं किया। 
  • अस्पताल और स्कूलों की व्यवस्था सुधारने में कोई रुचि नहीं ली। जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया। 
  • मध्य प्रदेश शासन के रिक्त पदों पर भर्ती के लिए कोई अभियान शुरू नहीं हुआ। 
  • घोषणापत्र के समय टाइम बॉउंडेशन की बात की गई थी। सत्ता में आने के बाद कहने लगे कि घोषणापत्र 5 साल के लिए होता है। 
  • उन गैर राजनीतिक व्यक्तियों को कोई महत्व नहीं दिया गया जिन्होंने 2018 में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ✒ उपदेश अवस्थी
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