पितृपक्ष में कौए को भोजन क्यों कराते हैं, संदेशवाहक कबूतर को क्यों नहीं- GK in Hindi

भारत की सनातन परंपराओं में से एक है पितृपक्ष में कौए को भोजन कराना। मान्यता है कि यदि कौवा भोजन कर लेता है तो पितृ भी तृप्त हो जाते हैं। इसके पीछे कुछ कथाएं भी हैं परंतु सवाल यह है कि क्या सिर्फ कथाओं के कारण एक परंपरा बन गई है या फिर इसके पीछे कोई लॉजिक भी है।

कौआ और कबूतर में अंतर 

कौआ को अशुभ माना जाता है जबकि कबूतर संदेशवाहक पक्षी है और उसकी प्रतीक्षा सभी करते हैं। सामान्य दिनों में कौआ पक्षी गंदगी खाता है। मांसाहारी होता है और मरे हुए जानवरों का मांस खा जाता है। कौआ पक्षी चोरी करने में माहिर होता है। कई बार वह मासूम बच्चों के हाथ से रोटी का टुकड़ा चुरा कर ले जाता है। जबकि इसके विपरीत कबूतर शाकाहारी होता है। अनाज, मेवे और दालें इसका मुख्य भोजन हैं। मनुष्यों से मित्रता रखता है। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर सकता है। सदियों से विश्वासपात्र संदेशवाहक रहा है।

श्राद्ध पक्ष में कौआ पक्षी को भोजन क्यों कराते हैं 

तमाम खामियों के बावजूद कौआ में कुछ ऐसी विशेष बातें होती हैं जो किसी भी पक्षी में नहीं। कौआ बुद्धिमान होता है। कोयल अपने अंडे उसके घोंसले में रख जाती है, लेकिन कौआ, कोयल के अंडों को नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि अपने अंडों की तरह कोयल के अंडों की भी देखभाल करता है। संवेदनशील होने के साथ-साथ जीवनसाथी के प्रति वफादार होता है। हमेशा अपने जीवन साथी के साथ रहता है। झुंड में परिवार और कुटुंब के साथ रहता है। यदि किसी एक कौआ की मृत्यु हो जाए तो उसका सारा कुटुंब शोक मनाता है। उस दिन कोई भी कौआ भोजन नहीं करता। प्रकृति में सभी प्रकार के नर और मादा के शरीर में अंतर स्पष्ट दिखाई देता है परंतु कौआ का नर और मादा बिल्कुल एक समान होते हैं। उनके आकार, रंग रूप और वजन में कोई अंतर नहीं होता। 

सबसे खास बात यह है कि कौआ कभी बीमार नहीं होता। उसकी कभी सामान्य मृत्यु नहीं होती। कौआ अमर होता है। इसीलिए श्राद्ध पक्ष में कौआ को भोजन कराने पर माना जाता है कि यदि कौआ तृप्त हो गया है तो पूर्वजों की अतृप्त आत्मा को तृप्ति प्राप्त होती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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