HOLI STORY: होलिका बुरी थी तो फिर उसकी पूजा क्यों की जाती है, पढ़िए होलिका और इलोजी की प्रेमकथा

मुस्ताअली बोहरा।
महज होली का नाम या शब्द आते ही जहन में उल्लास, उमंग और रंगों की अनुभूति होने लगती है। रंगों का ये पर्व भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। होली का नाम लेते ही रगों में उन्मादित खुशी दौड जाती है। होली पर प्रहलाद और होलिका से जुडा प्रसंग भी बरबस याद आ जाता है। ये तो सभी जानते हैं कि होलिका दहन के दूसरे दिन रंग पर्व मनाया जाता है। होलिका का दहन बुराई के प्रतीक के तौर पर किया जाता है लेकिन दहन से पहले होलिका की पूजा भी की जाती है। लेकिन क्या आपके मन में ये सवाल आया है कि यदि होलिका बुरी थी तो फिर उसकी पूजा क्यों की जाती है। 

होलिका ने अपने प्रेम के लिए बलिदान दिया

होलिका को यूं तो बुराई का प्रतीक माना जाता है और होलिका दहन किया जाता है लेकिन सच यह भी है कि होलिका को जलाने से पहले उसकी पूजा की जाती है। होलिका अगर वास्तव में बुराई की प्रतीक होती तो उसकी पूजा नहीं की जाती। हिमाचल के लोककथाओं में होलिका को ऐसे रूप में जाना जाता है जिसने प्यार की खातिर अपने जीवन का बलिदान दे दिया। 

होलिका और इलोजी की प्रेमकथा

होलिका और प्रहलाद के बारे में तो सब जानते हैं लेकिन इलोजी के बारे में हर कोई नहीं जानता। हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में इलोजी को अजर-अमर माना जाता है। मारवाड़ के कई गांवों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित हैं और लोग उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार असुर राज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और पडोसी राज्य के राजकुमार इलोजी एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों का विवाह होना भी तय हो चुका था। 

इधर, हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु भक्ति से परेशान था। दरअसल भगवान विष्णु ने ही वामन अवतार धारण कर हिरण्यकश्यप के बड़े भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने राज्य में ये घोषणा करवा दी थी कि यदि कोई विष्णु का नाम लेता पाया गया तो उसके प्राण ले लिए जाएंगे। 

हिरण्यकश्यप जितना अत्याचारी था उतना ही प्रहलाद साधु स्वभाव का था। हिरण्यकश्यप चाहता था कि प्रह्लाद का वध एक दुर्घटना की तरह लगे। इसी बीच उसे अपनी बहन होलिका को मिले वरदान की याद आ गई। होलिका अग्नि की भक्त थी और उसे अग्नि देव से वर प्राप्त था की उसे अग्नि से कोई नुकसान नहीं होगा। हिरण्यकश्यप ने होलिका को अपनी योजना बताई कि उसे प्रह्लाद को अपनी गोद मे लेकर आग में बैठना होगा। होलिका ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया। हिरण्यकश्यप भी होलिका की कमजोरी जानता था, उसने भी होलिका को धमकी दी कि यदि उसने उसका कहा नही माना तो वह भी उसका विवाह इलोजी से नहीं होने देगा। होलिका धर्मसंकट मे पड गई और आखिरकार उसने कठिन फ़ैसला लेते हुए अपने भाई की बात मान ली, क्योंकि उसे डर था कि कहीं हिरण्यकश्यप इलोजी को कोई नुकसान ना पहुंचा दे। 

होलिका कौन थी उसे क्यों जलाया जाता है?

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका, प्रहलाद को अपनी गोद मे ले आग में बैठ गई। हालांकि होलिका तो जल गई और प्रहलाद बच गया। यही दिन होलिका और इलोजी के विवाह के लिए भी तय किया गया था। इलोजी इन सब बातों से अंजान अपनी बारात ले नियत समय पर राजमहल आ पहुंचे। वहां आने पर जब उन्हें सारी बातें पता चलीं तो उन पर तो मानो पहाड टूट पडा। इसके बाद उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। वन-प्रातों मे भटकते-भटकते सारी जिंदगी गुजार दी। आज भी हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में उन्हें सम्मान की दृष्टी से याद किया जाता है। 

मशहूर है मप्र का भगौरिया पर्व

मालवा में होली के दिन लोग एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। ये लोग ऐसा मानते हैं कि इससे होलिका नामक राक्षसी का अंत हो जाता है। राजस्थान में होली पर नुक्कड़ नाटक या तमाशे होते हैं। मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली के मेले में भील युवक मांदर की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुँह पर गुलाल लगाता है और वह भी बदले में गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह सूत्र में बँधने के लिए सहमत हैं। 

राजस्थान में इलोजी देवता पूजे जाते हैं 

इलोजी उस समय के श्रेष्ठ योद्धा और रंग रूप के धनी थी। उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा सकता था। राजस्थान के कई इलाकों में इलोजी को देवता के रूप में पूजा जाता है। इलोजी राजकुमार और वीर-गुणशील थे। राजस्थान में इन्हें पूजने की परम्परा है। राजस्थान में मारवाड़ में मान्यता है कि जिन महिलाओं के कोई संतान नहीं होती वो इलोजी की पूजा करती हैं। शादी वाले जोड़े यहां जाते हैं। पुरुष अपने लिए पौरूष शक्ति मांगते हैं तो महिला पुत्र मांगती है।

मुगल बादशाह भी होली खेलते थे 

मुगल काल में भी धूमधाम से होली जाती थी। बादशाह अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुर शाह ज़फर होली के तैयारियाँ प्रारंभ करवा देते थे। बादशाह अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे। शाम को महल में उम्दा ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं।
जहाँगीर के समय में महफ़िल-ए-होली का भव्य कार्यक्रम होता था। शाहजहाँ तो होली को ईद गुलाबी के रूप में धूमधाम से मनाते थे। बहादुरशाह ज़फर भी होली खेलने के शौकीन थे। जफर शायर भी थे, होली को लेकर उनकी काव्य रचनाएँ आज तक सराही जाती हैं। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पीछे यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। 

बरसाने की लठमार होली

बरसाने की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और बरसती लाठियों के साए में होली खेली जाती है। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। मथुरा से कुछ दूर कोसी शेरगढ़ मार्ग पर फालैन गाँव है जहाँ एक अनूठी होली होती है। गाँव का एक पंडा होली की धधकती आग में से निकल कर प्रह्लाद की याद को ताज़ा कर देता है।

बिहार में कुर्ता फाड़ होली

बिहार में होली खेलते समय सामान्य रूप से पुराने कपड़े पहने जाते हैं। मिथिला प्रदेश में होली खेलते समय लड़कों के झुंड में एक दूसरे का कुर्ता फाड़ देने की परंपरा है। रंग पंचमी के दिन मालवा और गोवा की शिमगो के साथ होली का समापन होता है।

दुनिया भर में होली हुडदंग

नेपाल में होली के अवसर पर काठमांडू में एक सप्ताह के लिए प्राचीन दरबार और नारायणहिटी दरबार में बाँस का स्तम्भ गाड़ कर आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और मारीशस में भारतीय परंपरा के अनुरूप ही होली मनाई जाती है। कैरिबियाई देशों में बड़े धूमधाम और मौज-मस्ती के साथ होली का त्यौहार मनाया जाता है। यहाँ होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है। गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। गुआना के गाँवों में इस अवसर पर विशेष तरह के समारोहों का आयोजन किया जाता है। कैरिबियाई देशों में सांस्कृतिक संगठन नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के ज़रिए फगुआ मनाते हैं। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो में होली को काफ़ी कुछ उसी तरह से मनाया जाता है, जैसे भारत में मनाया जाता है। विलबर फ़ोर्ड के स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी कैंपस रिचमंड हिल्स में होली उत्साह से मनाई जाती है।

होली से मिलते जुलते विदेशी त्यौहार

- थाईलैंड में नव वर्ष सौंगकरन नामक पर्व से प्रारंभ होता है इसमें बुजुर्गों को इत्र मिश्रित जल डालकर आशीर्वाद लिया जाता है।
- लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है। लोग एक दूसरे पर पानी डालते हैं। 
- म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है। तिजान, मेकांग या थिंगयान नामक त्यौहार चार दिनों तक चलता है। इस दौरान सब एक दूसरे को पानी से भिगोते है, इसमें कोई रंग नहीं होता।
- पेरू में इरकान उत्सव पांच दिन तक चलता है। ज्यादातर लोग रंगीन कपडों में नाचते गाते घूमते हैं।
- जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं।

- हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है। 

- अफ्रीका में ओमेना वोंगा मनाया जाता है। इस अन्यायी राजा को लोगों ने ज़िंदा जला डाला था। उसका पुतला जलाकर और नाच गाकर खुशी जाहिर की जाती है।
- पोलैंड में आर्सिना पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं। यह रंग फूलों से बना होने के कारण काफ़ी सुगंधित होता है। 
- कंबोडिया में चाउन चानम थेमी और लाओस में पियामी के नाम से पर्व मनाया जाता है जिसमें लोग एक दूसरे पर पानी डालते हैं।

- अमरीका में मेडफो नामक पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोले एक दूसरे पर फेंकते हैं। अमरीका में सूर्य पूजा की जाती है। इसे होबो कहते हैं। इसे होली की तरह मनाया जाता है। 

- चेक और स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं। 

- हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है। 
- बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है। 
- इटली में रेडिका त्योहार फरवरी के महीने में एक सप्ताह तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लकड़ियों के ढेर चैराहों पर जलाए जाते हैं। लोग अग्नि की परिक्रमा करके आतिशबाजी करते हैं। एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं। 
- रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल। रोम में रेडिका नामक पर्व मनाया जाता है। लकडिया इक्टठी कर जलाई जाताी है और फिर नाच गाना होता है। 
- ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है। 
- स्पेन में टमाटर से होली खेली जाती है। स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। ला टोमाटीना नामक त्यौहार को दुनिया का सबसे बडा टमाटर उत्सव माना जाता है। लोग एक दूसरे पर टमाटर फेंकते हैं। 

-स्पेन के वैलेशिया शहर में मार्च में आग की रात के नाम से पर्व मनाया जाता है जिसमें आतिशबाजी होती है। इसके अलावा सांडों की लडाई भी होती है।

-जापान में टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर कई स्थानों पर तेज़ आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है। 
-जापान में चैरी ब्लासम उत्सव मनाया जाता है जिसमें लोग चेरी के बागों में बैठकर एक दूसरे को बधाई देते हैं और पेड से गिरने वाले फूलों से स्वागत करते हैं।

-साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परिपाटी देखने में आती है। 

-नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह से मनाया जाता है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भाँति लकड़ी जलाई जाती है और लोग आग के चारों ओर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं।

-मारीशस में बसंत पंचमी से शुरू होकर 40 दिन तक होली का आयोजन चलता रहता है। यहां भी कई जगह होलिका दहन होता है।

-इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में लोग अपने मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ताकि उनके जीवन में रंगों की बहार आए।

-न्यूजीलैंड में कई शहरों में रंगीला त्यौहार मनाया जाता है। यहां एक दूसरे के शरीर पर पेंटिंग की प्रतियोगिता होती है। इसके बाद नाच गाने के कार्यक्रम होते हैं। ये उत्सव 6 दिन तक चलता है।

-आस्टेलिया में चिनचिला मेलन फेस्टिवल आयोजित होता है। इस दौरान हर ओर तरबूज ही तरबूज दिखते हैं। इस दौरान कई पारंपरिक कार्यक्रम होते हैं।

-पापुआ न्यूगिनिया में लोग माउंट हेगन की तलहटी में एकत्र होते हैं और पारंपरिक आदिवासी नृत्य करते हैं। वो अपने शरीर पर पंछियों के पर श्रंगार करते हैं।

- नेपाल में लोला उत्सव आयोजित होता है। रंगीन पानी से भरे गुब्बारे को लोला कहा जाता है, जिसे लोग एक दूसरे पर फेकतें हैं।
-चीन में होली की शैली का त्योहार च्वेजे कहलाता है। यह पंद्रह दिन तक मनाया जाता है। लोग आग से खेलते हैं और सज धज कर परस्पर गले मिलते हैं। चीन के युवान प्रांत में मार्च-अप्रैल में पानी फेंकने का उत्सव मनाया जाता है। यह महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है। इस त्योहार को बुद्ध का स्नान के नाम से भी जाना जाता है। त्योहार के दौरान सभी लोग एक-दूसरे पर पानी फेंकते हैं।

-तिब्बती इस पर्व को रोमांचक अंदाज में मनाते हैं। जुलाई माह के पहले दस दिन में तिब्बतियों का स्नान पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को गामारीजी नाम से जाना जाता है। तिब्बतियों की मान्यता है कि इस दौरान नदी या तालाब का पानी मीठा, ठंडा और हानिरहित होता है। तिब्बती लोग इस दौरान नदी और झील के किनारे टेंट डालते हैं और स्नान को पर्व के रूप में मनाते हैं। ✒ मुस्ताअली बोहरा, लेखक एवं अधिवक्ता, भोपाल, मप्र

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