COVID-19: सर्दी-जुकाम ने भारतीयों की जान बचाई: NII और AIIMS की रिसर्च रिपोर्ट

नई दिल्ली।
भारत में कोविड-19 से पीड़ित नागरिकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है फिर भी भारत की मृत्यु दर अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम की मृत्यु दर के मुकाबले काफी कम है। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान (NII) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(AIIMS) के वैज्ञानिकों के एक नये अध्ययन में इस बात के संकेत मिले हैं कि सर्दी जुकाम के कारण भारतीय नागरिकों में कोरोनावायरस से लड़ने की पुरानी प्रैक्टिस है। यही कारण है कि कोविड-19 उनकी हत्या नहीं कर पाया। उल्लेखनीय है कि सर्दी जुकाम भी कोरोना वायरस से ही होता है लेकिन जिसने पूरी दुनिया में दहशत फैलाई वह कोरोना फैमिली का वायरस कोविड-19 है। अब पढ़िए विज्ञान की भाषा में पूरी रिपोर्ट:

66% प्लाज्मा एवं खून में सीडी4+ कोशिकाओं की प्रचुरता पायी गई

इस अध्ययन में, कोविड-19 के प्रकोप से पहले एकत्रित किए गए 66 प्रतिशत रक्त एवं प्लाज्मा नमूने, जो कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं थे, में सीडी4+ कोशिकाओं की प्रचुरता पायी गई है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है किकोरोना वायरस के गैर-स्पाइक क्षेत्रों के खिलाफ सीडी4+ कोशिकाओं की प्रभावी प्रतिक्रिया देखी गई है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी सामने आया है कि कम से कम 21 प्रतिशत स्वस्थ प्रतिभागियों के नमूनों को कोरोना वायरस (सार्स-कोव-2) के स्पाइक प्रोटीन के प्रति प्रभावी पाया गया है।

कोरोना के मामले में सीडी4 कोशिकाएं क्या करतीं हैं

यह अध्ययन 32 लोगों के प्रतिरक्षा प्रोफाइल (टी-कोशिकाओं) के विश्लेषण पर आधारित है, जो कोविड-19 से संक्रमित नहीं हुए थे। अध्ययन में 28 ऐसे प्रतिभागियों को भी शामिल किया गया है, जिनमें कोविड-19 के सामान्य लक्षण देखे गए थे, और वे इस बीमारी से उबर चुके थे। टी-कोशिकाएं सफेद रक्त कोशिकाओं का एक उप-वर्ग हैं, जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र में प्रभावी भूमिका निभाती हैं। सीडी4 कोशिकाएं, टी-कोशिकाओं की ‘सहायक’ होती हैं, और ये संक्रमण को बेअसर करने के बजाय उनके खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करने के लिए जानी जाती हैं।

सर्दी-जुकाम वाली कोशिकाएं कोविड-19 के खतरे को कम करतीं हैं

एनआईआई के वैक्सीन इम्यूनोलॉजी डिविजन के प्रमुख एवं इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ निमेष गुप्ता ने बताया कि “यह संभव है कि सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस की क्रॉस-रिएक्टिव कोशिकाएं कोविड-19 के संक्रमण से न बचा पाएं, पर सार्स-कोव-2 प्रोटीन के प्रति इन कोशिकाओं की प्रतिक्रिया कोविड की गंभीरता को कम कर सकती है।”

सीडी4+ टी कोशिकाएं संक्रमण को कम कर सकतीं हैं

शोधकर्ताओं का कहना है कि सार्स-कोव-2 के स्पाइक एवं गैर-स्पाइक प्रोटीन के प्रति प्रभावी टी-कोशिकाओं की ऐसे लोगों में मौजूदगी, जो कोविड का शिकार नहीं हुए थे, का एक कारण उनका सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस से संपर्क हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि क्रॉस-रिएक्टिव सीडी4+ टी कोशिकाएं वायरल संक्रमण को खत्म भले ही न कर सकें, पर वे वायरस के बोझ और लाक्षणिक संक्रमण को कम कर सकती हैं, जिससे गंभीर संक्रमण के मामलों में गिरावट हो सकती है। 

इस अध्ययन में, भारतीय समूह के करीब 70 प्रतिशत प्रतिभागियों में सार्स-कोव-2 रिएक्टिवCD4+ टी-कोशिकाओं का स्तर बहुत अधिक पाया गया है, जो कोविड-19 महामारी के प्रकोप के पहले से मौजूद है। अध्ययन में यह भी पता चला है कि हल्के कोविड-19 से उबरने वाले भारतीय रोगियों में सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा के सबसे महत्वपूर्ण हथियारों - टी-कोशिकाओं और बी-कोशिकाओं में टिकाऊ प्रतिरक्षात्मक मेमोरी है। 

शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसी इम्यूनोलॉजिकलमेमोरी से कम से कम कुछ वर्षों तक संरक्षण मिलना चाहिए।इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी से तात्पर्य प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा त्वरित रूप से ऐसे एंटीजन को पहचानने एवं उसी अनुरूप प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देने की क्षमता से है, जिसका शरीर पहले सामना कर चुका हो।  

उल्लेखनीय है कि भारत में कोविड-19 के कारण होने वाली मौतों की दर 1.5 प्रतिशत से भी कम है। जबकि, अमेरिका जैसे देशों में यह दर तीन प्रतिशत से अधिक है। मेक्सिको में तो कोविड के कारण होने वाली मृत्यु दर 10 प्रतिशत से अधिक है। 

यह अध्ययन कोविड-19 के खिलाफ भारतीय आबादी की प्रतिक्रिया को समझने, और भारत में वैक्सीन कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।इस अध्ययनको चिकित्सा क्षेत्र कीशोध पत्रिका फ्रंटियर इन इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।

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