नई दिल्ली। भारत सरकार ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ इंडिया की निजीकरण की तैयारी कर ली है। जल्द ही इसकी प्रक्रिया शुरू की जाएगी और सूत्रों का कहना है कि अधिकतम 6 महीने में सभी चारों बैंकों का निजीकरण हो जाएगा।
भारत सरकार सिर्फ 4 बैंकों को चलाने के पक्ष में
बता दें कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने बजट में दो बैंकों में हिस्सा बेचने की बात कही थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार देश में कुछ बड़े सरकारी बैंक को ही चलाने के पक्ष में है। देश में बड़े सरकारी बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB), बैंक ऑफ बड़ौदा और कैनरा बैंक हैं।
बैंकों के निजीकरण से कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी
कुल 23 सरकारी बैंकों में से कई बैंकों को बड़े बैंकों में मिला दिया गया है। इसमें देना बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक, अलाहाबाद बैंक, सिंडीकेट बैंक आदि हैं। हालांकि सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने में हमेशा राजनीतिक दल इससे बचते रहे हैं। क्योंकि इसमें लाखों कर्मचारियों की नौकरियों का भी खतरा रहता है लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने या पहले ही घोषित कर दिया है कि कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी।
एक-एक करके बैंकों का निजीकरण किया जाएगा
जानकारी के मुताबिक, इसमें से दो सरकारी बैंकों को 2021-22 के वित्त वर्ष यानी अप्रैल से प्राइवेट बैंक बनाया जाएगा। जबकि बाकी के दो बैकों को आगे समय आने पर देखा जाएगा। सरकार पहले चरण में मिड साइज वाले बैंकों को प्राइवेट बनाएगी। यानी वह इसके कारोबार से निकल जाएगी। आने वाले सालों में सरकार देश में कुछ ही बड़े बैंकों को रखेगी।
टॉप फाइव को छोड़कर सभी सरकारी बैंक, प्राइवेट कर दिए जाएंगे
देश में बैंक ऑफ इंडिया 6ठें नंबर का बैंक है। जबकि सातवें पर सेंट्रल बैंक है। बाकी इंडियन ओवरसीज और बैंक ऑफ महाराष्ट्र उसके बाद आते हैं। बैंक ऑफ इंडिया का मार्केट कैपिटलाइजेशन 19 हजार 268 करोड़ रुपए है। जबकि इंडियन ओवरसीज बैंक का मार्केट कैप 18 हजार करोड़, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 10 हजार 443 करोड़ और सेंट्रल बैंक का 8 हजार 190 करोड़ रुपए मार्केट कैप है।
बड़े बैंकों में सरकार ही रहेगी मालिक
हालांकि सरकार बड़े बैंकों में अपनी ज्यादातर हिस्सेदारी रखेगी, ताकि उसका नियंत्रण उस पर बना रहे। सरकार इस समय कोरोना के बाद काफी बड़े पैमाने पर सुधार करने की योजना बना रही है। सरकार इन बैंकों को बुरे फंसे कर्ज से भी पार करना चाहती है। अगले वित्त वर्ष में इन बैंकों में 20 हजार करोड़ रुपए डाले जाएंगे ताकि ये बैंक रेगुलेटर के नियमों को पूरा कर सकें। कुछ ऐसे सरकारी बैंक हैं जो अभी भी पीसीए के दायरे में हैं।
रिजर्व बैंक किसी बैंक को पीसीए में तब लाता है जब बैंक की स्थिति खराब हो और नियमों को पूरा न करता हो। फिर जब बैंक नियमों को पूरा कर लेता है तो पीसीए से बाहर हो जाता है। पीसीए के दौरान बैंक नई शाखाएं या नया लोन नहीं दे पाता है।
कौन सा सरकारी बैंक कितना पुराना है
इंडियन ओवरसीज बैंक की स्थापना 10 फरवरी 1937 को हुई थी। इसकी कुल 3800 शाखाएं हैं। बैंक ऑफ इंडिया 7 सितंबर 1906 को बना था। यह एक प्राइवेट बैंक था। 1969 में 13 अन्य बैंकों को इसके साथ मिलाकर सरकारी बैंक इसे बनाया गया। 50 कर्मचारियों के साथ यह बैंक शुरू हुआ था। इसकी कुल 5,089 शाखाएं हैं। बैंक ऑफ महाराष्ट्र 1840 में शुरू हुआ था। उस समय इसका नाम बैंक ऑफ बॉम्बे था। यह महाराष्ट्र का पहला कमर्शियल बैंक था। इसकी 1874 शाखाएं और 1.5 करोड़ ग्राहक हैं। सेंट्रल बैंक 1911 में बना था। इसकी कुल 4,969 शाखाएं हैं।
कुल 120000 कर्मचारी प्रभावित होंगे
सरकार को डर है कि बैंकों को बेचने की स्थिति में इसकी यूनियन भी विरोध पर उतर जाएंगी। इसलिए वह बारी-बारी इसे बेचने की कोशिश करेगी। बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं। इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों बैंकों में हैं। बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कम कर्मचारी हैं, इसलिए इसे प्राइवेट बनाने में आसानी है।
इस दौरान जो इसमें फैक्टर हैं उसमें कर्मचारी, ट्रेड यूनियन का दबाव, राजनीतिक मामला आदि हैं। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि सरकार बड़े बैंकों को भी प्राइवेट बना सकती है।