वो कौन सी उम्र है जब बच्चों की लाइफ का गोल सेट करना चाहिए - Age to talk to children about careers

जीन पियाजे (A Swiss psychologist) के अनुसार यह बाल विकास की सबसे आखरी अवस्था है, जिसे सामान्यतः किशोरावस्था भी कहा जाता है। जिसकी उम्र 11 साल और उससे ऊपर होती है। अलग-अलग साइकोलॉजिस्ट के अनुसार यह उम्र अलग-अलग भी होती है। कोई इसे 13 वर्ष से मानता है तो कोई 15 तक भी मानता है। यही वह उम्र है जब बच्चों की लाइफ का गोल सेट करना चाहिए। जबकि ज्यादातर लोग पूत के पांव पालने में ही देखने की कोशिश करते हैं और इस उम्र में बच्चों पर लगाम कसने की कोशिश करते रहते हैं। 

Stanley Hall के अनुसार यह संघर्ष एवं तूफान की अवस्था है। इस अवस्था में बच्चे अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं। ख्याली पुलाव पकाना, दिन में तारे देखना जैसी कहावत इस अवस्था में  चरितार्थ होती दिखती है। यदि इस अवस्था में सही दशा और दिशा मिल जाए तो बच्चे किसी भी क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं परंतु यदि सही गाइडेंस नहीं मिल पाता है तो नशे की लत, चोरी, अन्य अपराध करने जैसी घटनाएं करने में बच्चे लिप्त हो जाते हैं।

बौद्धिक विकास की दृष्टि से भी यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस अवस्था में बच्चों में अमूर्त चिंतन (एब्स्ट्रेक्ट थिंकिंग) अर्थात जो चीज आँखो के सामने नहीं है, उस पर भी सोचने की क्षमता का विकास हो जाता है। इस अवस्था में बच्चे मे हाइपोथेटिको डिडक्टिव रीजन परिकल्पनात्मक तर्कशक्ति ( Hypothetico deductive  Reasoning ) का भी विकास होने लगता है और बच्चा बड़े से बड़े काम भी कर जाता है। मुश्किल चीजों को समझने लगता है। 

टीनेजर्स को भी लगता है कि वो सारी दुनिया का आकर्षण केंद्र हैं 

H. E. Johns के अनुसार किशोरावस्था को शैशवावस्था की पुनरावृत्ति कहा जाता है। जिस प्रकार से शिशु चंचल स्वभाव के होते हैं और अपने आप को ही दुनिया का केंद्र मानते हैं। उसी प्रकार से किशोर भी चंचल स्वभाव के होते हैं, उन्हें भी ऐसा लगता है कि वही सारी दुनिया का आकर्षण केंद्र है। 

किशोरावस्था को Age of  problems भी कहते हैं

इसी कारण किशोरावस्था को समस्याओं की आयु (Age of  problems), सपनों की आयु  (Age of dreams) भी कहा जाता है। जिसमें विभिन्न प्रकार की समस्याएं जैसे -शिक्षा, स्वास्थ्य,  नैतिक, मानसिक एवं सामाजिक समायोजन, सेक्सुअल प्रॉब्लम्स आदि समस्याएं आती है। 

इस उम्र में असफलता डिप्रेशन लाती है

यदि वे अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते हैं तो उनमें हीन भावना भी उत्पन्न हो सकती है और यदि सही दशा व दिशा मिल जाती है तो बालक शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकसित होकर एक परिपक्व प्रौढ़ (Mature Adult) में विकसित होता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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