ग्वालियर। 16 साल पहले यानी आज ही के दिन 22 दिसम्बर 2004 को राजकुमार भागचंदानी का सनसनीखेज हत्याकांड हुआ था। इन 16 सालों में ग्वालियर जिले के 15 एसपी बदल गए लेकिन भागचंदानी हत्याकांड का खुलासा कोई नहीं कर पाया।
लंबे समय तक मीडिया की सुर्खियां बना रहा राजकुमार भागचंदानी हत्याकांड
ग्वालियर-शिवपुरी लिंक रोड पर स्कूल चलाने वाले राजकुमार भागचंदानी की बदमाशों ने घर में दिनदहाड़े घुसकर हत्या कर दी थी। यह मामला झांसी रोड थाने में दर्ज हुआ। घटना 22 दिसंबर 2004 की सुबह की है और आज पूरे सोलह साल इस घटना को हो गए।
कुछ अधिकारियों ने रुचि दिखाई, बयान दिए लेकिन खुलासा नहीं किया
जब कत्ल हुआ था तब आदर्श कटियार ग्वालियर के पुलिस कप्तान थे। इसके बाद कई पुलिस कप्तान आए और गए। कुछ ने मामले को सुलझाने में काफी रुचि ली तो कुछ ने यह सोचकर राजकुमार भागचंदानी के कत्ल की फाइल के पन्ने नहीं पलटे कि जब हमसे पहले वाले पुलिस कप्तान इसमें कुछ नहीं कर पाए तो हम क्या कर लेंगे।
चश्मदीद की लाश फांसी पर लटकी मिली थी
पुलिस ने कई बार सीन रिक्रिएशन भी किया। घटना का जो चश्मदीद था, उसने भी इस दौरान फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली और इसके साथ ही इस पूरे मामले पर और भी धूल चढ़ गई।
इतने एसपी आए-गए
आदर्श कटियार के बाद जयदीप प्रसाद, मनमीत नारंग, संजीव शमी, वीके सूर्यवंशी, ए साईं मनोहर, मकरंद देऊस्कर, डॉ. जीके पाठक, संतोष कुमार सिंह, प्रमोद वर्मा, संतोष कुमार सिंह, हरिनाराणचारी मिश्रा, डॉ. आशीष, नवनीत भसीन ग्वालियर में पुलिस कप्तान रहे। अब अमित सांघी के हाथों में ग्वालियर पुलिस की कमान है।
पुलिस जांच में कैसे खत्म किया गया हत्या का मामला
पुलिस ने इस मामले में गवाही के लिए 38 लोगों की सूची बनाई थी, जिसमें शहर के व्यवसायी और स्कूल स्टाफ भी शामिल था। इतना ही नहीं, घर पर काम करने वालों को भी इस सूची में शामिल किया गया था, लेकिन घटना के समय मृतक राजकुमार का परिचित जो घर पहुंचा था और गेट पर मौजूद था, पुलिस ने उसे गवाहों की सूची में शामिल नहीं किया।
उस व्यक्ति का जिक्र चौकीदार के बयान में है। यह व्यक्ति राजकुमार के लिए कुछ खाने का सामान लेकर आया था। पुलिस ने उससे भी आरोपियों का स्केच नहीं बनवाया गया।
घर में काम करने वाली बाई जो घटना के समय चाय लेकर आई थी, उससे स्केच न बनवाकर दूसरी बाई से स्केच बनवाया गया।
इस घर का चौकीदार जो हत्याकांड का प्रत्यक्षदर्शी था, बार बार कहता रहा कि उसकी हत्या होने वाली है लेकिन पुलिस ने उसे सुरक्षा प्रदान नहीं की। बाद में उसकी लाश फांसी पर लटकी मिली और पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया।
प्रकरण में एफआईआर दर्ज कराने वाले मृतक के पिता मोहनदास का उचित इलाज नहीं होने के कारण निधन हो चुका है।
पुलिस ने स्केच के आधारा पर प्रमोद गुर्जर मुरैना को गिरफ्तार किया था परंतु न्यायिक रिमांड अवधि में चालान पेश नहीं किया। कोर्ट में इसका फायदा प्रमोद गुर्जर को मिला।
मृतक और परिचितों की कॉल डिटेल्स निकलवाई तो गई लेकिन उसकी जांच नहीं की गई।