रसोई गैस की आग नीली क्यों होती है, क्या इससे खाना गर्म तो होता है लेकिन पकता नहीं / GK IN HINDI

यदि आपने लकड़ी के चूल्हे या तंदूर देखें हैं तो आप को ध्यान में आएगा कि उनकी अग्नि का रंग लाल होता है एवं तंदूर में पके भोजन का स्वाद कुछ और ही होता है। जबकि रसोई गैस की लपटों का रंग नीला होता है। सवाल यह है कि जब दोनों प्रकार की अग्नि भोजन पकाने के लिए उपयोग की जाती है तो फिर एलपीजी गैस की आग का रंग नीला क्यों होता है। क्या यह बात सही है कि एलपीजी गैस की आग से खाना गर्म तो होता है परंतु पकता नहीं है।

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रायपुर से इंजीनियर अनुपम श्रीवास्तव जो इन दिनों कुवैत पेट्रोलियम कंपनी में ऑपरेशन इंजीनियर हैं बताते हैं कि इस प्रश्न को समझने से पहले दहन यानि combustion की प्रक्रिया को समझना जरूरी है। ऑक्सीजन की उपस्थिति में पदार्थों के बीच होने वाली एक ऐसी रासायनिक प्रतिक्रिया जो एक लौ या लपट के रूप में गर्मी और प्रकाश के साथ दिखाई देती है। 

अब यह समझते हैं कि लपटें नीली और लाल या पीली क्यों दिखती है?

विभिन्न कारणों से लपटें अलग-अलग रंग लेती हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से है -तापमान और दहन के समय ईंधन की रासायनिक संरचना।
नीली लौ का मतलब है गैस का पूरा दहन और तनिक भी अपशिष्ट का न बचना। पूर्ण दहन के कारण ही एलपीजी एक नीली लौ के साथ जलता है। एलपीजी ही क्यों अन्य शुद्ध हाइड्रोकार्बन जैसे मीथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन और इथेन गैस भी एक नीली लौ के साथ जलते हैं। शुद्ध हाइड्रोकार्बन का ऊष्मीय मान अधिक होता है और पूर्ण दहन के कारण इनका तापमान 1400 - 1900 ° C तक जाता है।

अब आप अपने हाई स्कूल केमिस्ट्री की क्लास को याद करें। आपको बन्सन बर्नर का उपयोग करने का मौका ज़रूर मिला होगा। यदि आपने यह प्रयोग किया होगा तो आप जानते होंगे कि हवा (ऑक्सीजन) की आपूर्ति को समायोजित करने से लौ के रंग और तापमान पर क्या प्रभाव पड़ता है। 

जब आपने वायु की आपूर्ति बढ़ाने के लिए बन्सन बर्नर को एडजस्ट किया होगा तो आपको अधिक पूर्ण दहन, कम कालिख (यानि कार्बन), उच्च तापमान के साथ एक नीली लौ ज़रूर मिली होगी।

नारंगी, पीले या लाल रंग की लपटों का मतलब है गैस का अपूर्ण दहन

हाई स्कूल में अगर आपने बन्सन बर्नर में हवा कम की तो दहन प्रक्रिया अधूरी हो जाती थी और गैस की लौ का रंग पीले या लाल लपटों के रूप में दिखता था। पीले या लाल रंग की लपटें बहुत महीन कालिख कणों (कार्बन) के कारण ही होती हैं जो पूर्णतया जल नहीं पाते। इस प्रकार की लाल लपटें लगभग 1,000 °C पर ही जलती हैं और कम तापमान के कारण ही इनका रंग लाल होता है। 

सरल शब्दों में समझिए 
जब गैस पूरी तरह से अग्नि में परिवर्तित हो जाती है तो उसका रंग नीला होता है और यदि गैस में मिलावट हुई तो उसका रंग पीला, नारंगी या लाल हो जाता है। अब बात करते हैं भोजन के पकने की। तो सीधी बात यह है कि भोजन ऊष्मा यानी ताप अर्थात गर्मी से ही पकता है। भोजन के पकने में तापमान का महत्वपूर्ण रोल होता है। और धीमी आंच पर या तेज आंच पर भोजन पकाने का विकल्प तो रसोई गैस में भी होता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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