कानून में संशोधन के बाद गर्भपात कब-कब अपराध की श्रेणी में आता है, जानिए / ABOUT IPC

माँ के गर्भ से जन्म लेने वाला शिशु बेटी भी हो सकती हैं और बेटा भी हो सकता है। उनको भी इस दुनिया में आने का अधिकार है, ज्यादातर माता-पिता अज्ञानता के कारण स्त्री के गर्भ में बेटी होती है तो बेटे की चाह मे बेटी को जन्म लेने से पहले ही मरवा देते हैं। कुछ स्त्रियों अपनी मर्जी से भी गर्भपात (अबोर्शन) करवाती है। इसे ही हम गर्भपात कहते हैं, जो भारतीय दण्ड संहिता में एक दण्डिनीय अपराध है। आज के लेख में हम आपको गर्भपात से सम्बंधित महत्वपूर्ण दो धाराओं के बारे में जानकारी देंगे।

भारतीय दण्ड संहिता ,1860 की धारा 312 की परिभाषा

अगर कोई स्त्री या महिला स्वयं की मर्जी (स्वेच्छा) से गर्भपात (अबोर्शन) कराती है और यह प्रमाणित हो जाता है कि गर्भपात महिला के जीवन की रक्षा के लिए पर्याप्त अनुमतियों एवं कानून के तहत नहीं था, तो वह स्त्री धारा 312, के अंतर्गत दोषी होगी एवं दंड की पात्र मानी जाएगी। 

आईपीसी की धारा 312 के तहत दण्ड का प्रावधान

आईपीसी संशोधन विधेयक, 2006 के अनुसार धारा 312, के अपराध में दो तरह के दण्ड का प्रावधान है।
1. अगर स्त्री के गर्भ में भ्रूण ठहर गया है (अर्थात प्राम्भिक स्तर में), तब वह गर्भपात करती है। तब तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
2.अगर कोई महिला 4-5 महीने बीत जाने के बाद (इसे हम स्पन्दनगर्भा कहते है) गर्भपात करती है तब सात वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दंडित किया जाएगा।
(इस धारा के अपराध असंज्ञेय अपराध एवं जमानतीय होते है एवं इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा होती हैं।)

यदि महिला की मर्जी के बिना गर्भपात कराया तब क्या होगा

अगर किसी महिला या स्त्री की इच्छा (सहमति) के बगैर कोई भी व्यक्ति उसका गर्भपात करता है वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। इस धारा में महिला जिसका गर्भपात हो रहा है वह दोषी नहीं होगी एवं इसके धारा के अंतर्गत प्रारम्भिक स्तर से स्पन्दनगर्भा के गर्भपात करना एक ही श्रेणी का अपराध होगा।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 313 के अनुसार दण्ड का प्रावधान:-

यह अपराध एक गंभीर एव अजमानतीय अपराध होते हैं। एवं इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय द्वारा की जाती हैं। सजा - आजीवन कारावास या दस वर्ष की कारावास और जुर्माने से दण्डिनीय होगा।

गर्भपात(अबोर्शन) करना कब अपराध नहीं है

चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के अनुसार किसी गर्भवती महिला के जीवन को खतरे से बचाने के लिए या उसे गम्भीर शारिरिक, मानसिक क्षति से बचाने के लिए, उसके गर्भ से उत्पन्न होने वाले शिशु की शारिरिक या मानसिक विकृति या पूर्ण विकास न होने की संभावना। इस  स्थिति में किया गया गर्भपात अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। अगर किसी स्त्री बलात्कार का शिकार हुई है, "वह स्त्री गर्भपात कराती है तब भी वह इस तरह के अपराध की दोषी में नहीं होगी।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665

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