यदि कर्मचारी काम से, पुलिस FIR से और DOCTOR इलाज से मना करे तो किस धारा के तहत मामला दर्ज होगा

भ्रष्टाचार और सरकारी दफ्तरों की दीवारों पर महात्मा गांधी के चित्र को चिढ़ाता हुआ नजर आता है। भारत सरकार ने जनता को रिश्वतखोरी से बचाने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लागू तो कर दिया परंतु इसका पालन नहीं होता क्योंकि जिस व्यक्ति के हाथ में इस कानून के तहत कार्रवाई करने का अधिकार है वह खुद भी एक कर्मचारी होता है।

कर्मचारी खुलेआम बिना रिश्वत के काम करने से मना करते हैं। थानों में जाओ तो पुलिस रिपोर्ट लिखने से मना करती है। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर इलाज करने से मना कर देता है। आम आदमी मजबूर होकर रिश्वत देने के लिए बाध्य हो जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसे कर्मचारी एवं अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए भारतीय दंड संहिता में भी प्रावधान है। भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 9, की धारा 166 से 171 लोक सेवक द्वारा उनसे संबधित अपराधों के विषय में बताया है। न्यायालय में याचिका दाखिल करके अधिकारी एवं कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया जा सकता है।

धारा 166 से 169 तक के अपराध जो लोक सेवक द्वारा किये जाते हैं 

इन सभी अपराध को हम संक्षिप्त रूप में समझेगे , अगर कोई (लोकसेवक) सरकारी अधिकारी या कर्मचारी होते हुए निम्न तरह के कृत्य (कार्य) करेगा:-

भारतीय दण्ड संहिता की धारा,166:-

वह लोक-सेवक जो न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय, आदेश, डिग्री को नही मानेगा, या विधि के नियमों को जानबूझकर कर अनदेखा करेगा, जिससे किसी व्यक्ति को क्षति (नुकसान) होने की संभावना हो। तो वह धारा 166, के तहत दोषी पाया जाएगा।
दण्ड:- इस अपराध के लिए, ऐसे लोकसेवक को 1 वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोंनो से दण्डित किया जाएगा।

धारा 166 (क):- वह लोक-सेवक जो विधि के आदेश की अवज्ञा करता है:-

1. अगर किसी संबंधित लोक-सेवक को जाँच के लिए भेजा जाए और वह लोक-सेवक इस आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करे तो।
2. ऐसी कोई जांच जो रीति रिवाज संबधित है, जिससे कोई प्रतिकूल (गलत) प्रभाव पड़ता है, एवं लोक-सेवक उसे जानबूझकर करता हो।
3. अगर कोई थाना प्रभारी या संबंधित अधिकारी दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 के तहत एफआईआर या शिकायत दर्ज नहीं करेगा या जानबूझकर मना करेगा, या वह अपराध जो संज्ञये एवं गम्भीर हो उनकी FIR लिखने से जानबूझकर मना करेगा, FIR की निःशुल्क कॉपी देने से मना करेगा।
दण्ड:- संबंधित लोक-सेवक जो ऐसा कृत्य करेगा, छः माह या 2 वर्ष, तक की कठोर कारावास ओर जुर्माने से दण्डिनीय किया जाएगा।

धारा 166 (ख):-

कोई भी सरकारी या प्राइवेट हॉस्पिटल का डॉक्टर या संचालक किसी बीमारी व्यक्ति के इलाज से अगर मना करेगा, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
दण्ड:- कोई डॉक्टर या अस्पताल संचालक इस धारा के अंतर्गत दोषी पाया जाता हैं तो 1 वर्ष की कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डिनीय होगा।

धारा 167 :-

कोई भी लोक-सेवक कोई दस्तावेज की गलत संरचना जानबूझकर करेगा, उस दस्तावेज से किसी अन्य व्यक्ति को क्षति हो या नुकसान होगा। वह लोक सेवक इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। 
दण्ड:- इस धारा में दोषी को 3 वर्ष की कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

धारा 168:-

अगर कोई लोक- सेवक(कोई भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी) अपने सेवा काल में कोई व्यापार, व्यवसाय, धंधे, उधोग आदि करेगा तो वह कर्तव्य एवं ड्यूटी की अवज्ञा होगी। उस लोक सेवक को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 168 के अंतर्गत दण्डिनीय किया जाएगा।
दण्ड:-  1 वर्ष की सदा कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डिनीय होगा।

धारा 169:-

अगर को लोकसेवक ऐसी कोई अमुक संपत्ति जिसमें विधि द्वारा रोक लगी हैं, उसको क्रय करेगा या बोली लगाएगा या दूसरे व्यक्ति के नाम से उसे खरीदेगा। तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
दंड:- जो लोकसेवक धारा 169 के तहत दोषी होगा वह 2 वर्ष का सादा कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जाएगा।।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद( पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665

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