भोपाल। विकास के नाम पर बड़े बड़े प्रोजेक्ट धूमधाम के साथ शुरू तो कर दिए जाते हैं परंतु ठेकेदार और सरकार के अपवित्र गठबंधन में दरार आ जाने के कारण निर्धारित समय पर पूरे नहीं होते। नतीजा जनता को परेशान होना पड़ता है। ऐसा ही कुछ भोपाल से मंडीदीप के बीच स्थित बेतवा पुल पर नजर आ रहा है। यहां जनता को विकास परेशान कर रहा है। भोपाल-जबलपुर कॉरिडोर के लिए यहां एक नए पुल का निर्माण किया जा रहा है, नए पुल के लिए पुराने पुल की मिट्टी खुद दी गई है। नया पुल तो बना नहीं, पुराने पुल की हालत खराब हो गई। यह कभी भी गिर सकता है। हादसे को बचाने के लिए प्रशासन ने ट्रैफिक जाम जैसे हालात बना दिए हैं।
रोजाना 35 हजार वाहन गुजरते हैं, कभी भी हादसा हो सकता है
एमपीआरडीसी द्वारा भोपाल-जबलपुर फोरलेन प्रोजेक्ट के तहत मिसरोद कॉरिडोर से बिनेका गौहरगंज तक 49 किलोमीटर के दायरे का कांट्रेक्ट दिल्ली की CDS COMPANY को दिया गया है। नेशनल हाईवे क्रमांक 12 पर बेतवा नदी पर पुराने पुल के पास नया पुल बनाया जा रहा हैं। नए पुल का निर्माण मप्र रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (MPRDC) कर रहा है। नए पुल के लिए पुराने पुल के नीचे की मिट्टी खोद दी गई है। यहां ट्रैफिक चलता रहता है। भोपाल से मंडीदीप के बीच स्थित इस पुल से रोजाना करीब 35 हजार वाहन गुजरते हैं। ऐसे में यह कभी भी धंस सकता है।
49 किमी में तीन बड़े पुलों का निर्माण शुरू कर दिया, चक्काजाम जैसे हालात
एमपीआरडीसी द्वारा भोपाल-जबलपुर फोरलेन प्रोजेक्ट के तहत मिसरोद कॉरिडोर से बिनेका गौहरगंज तक 49 किलोमीटर के दायरे का कांट्रेक्ट दिल्ली की सीडीएस कंपनी को दिया गया है। जो 49 किमी में 3 बड़े पुल कलियासोत, बेतवा एवं बारना का निर्माण कर रही है। इसके अलावा 26 मध्यम समेत कुल 80 छोटी-बड़ी पुल-पुलिया बना रही हैं। सभी काम शुरू तो कर दिए गए लेकिन पूर्ण नहीं किए जा रहे हैं। निर्माण में लापरवाही के कारण चक्काजाम जैसे हालात बने रहते हैं।
2010 में बनी योजना अब तक अधूरी
एसोसिएशन ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल का कहना है कि एमपीआरडीसी का टेनलेन प्रोजेक्ट बेहद सुस्त गति से आगे बढ़ रहा है। इसी के तहत नए पुल का निर्माण होना है। 2010 में बनाई गई यह योजना अब तक पूरी नहीं हो सकी है। जनता परेशान हो रही है, उसकी परेशानी दूर करने का कोई उपाय नहीं है। विकास के नाम पर और कितने दिन परेशानी झेलनी पड़ेगी, कोई बताने को तैयार नहीं। देरी के लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। करें भी कैसे, जिन्हें कार्रवाई करनी है वह भी देरी के लिए जिम्मेदार है।
मिट्टी निकालने से पुल कमजोर नहीं हुआ: कंपनी की बेतुकी दलील
केएस धामी, मैनेजर, सीडीएस कंपनी का दावा है कि मिट्टी खोदे जाने से पुल जर्जर नहीं हुआ है। हमने वहां मिट्टी भरवा दी है। ऐसे में पुल के कमजोर होने का सवाल ही नहीं उठता। यदि कंपनी की बात मान ली जाए तो फिर इस सवाल का जवाब कौन देगा की यदि पुल कमजोर नहीं हुआ है तो फिर उसको वनवे क्यों कर दिया गया।
हादसा रोकने के नाम पर एक और परेशानी दे दी
एसआर अहिरवार, प्रोजेक्ट मैनेजर, एमपीआरडीसी का कहना है कि कांट्रेक्टर को साइड भरने के लिए कहा है, इसमें करीब 15 दिन का समय लगेगा। हादसा ना हो इसके लिए पुल को वन वे कर दिया गया है। सवाल यह है कि कांट्रेक्टर जब पुराने पुल की मिट्टी खोद रहा था, तब प्रोजेक्ट मैनेजर कहां थे। वन-वे करके जनता को एक और परेशानी दे दी। इस लापरवाही के लिए प्रोजेक्ट मैनेजर खुद को सस्पेंड क्यों नहीं कर लेते।