मध्य प्रदेश की राजनीति में 3 श्रापित शब्द, शिवराज के बाद कमलनाथ को खा गए | MP NEWS

उपदेश अवस्थी। गुरुवार तक पूर्ण बहुमत का दावा करने वाले कमलनाथ विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर भाग गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिया गया इस्तीफा सम्मानजनक तो कतई नहीं कहा जा सकता। कुछ ऐसी ही शर्मनाक हार 2018 के चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की भी हुई थी। आप इसे अंधविश्वास कहें या इत्तेफाक दोनों की दुर्गति का कारण केवल 'तीन श्रापित शब्द' का बयान है। 

तीन श्रापित शब्द से क्या तात्पर्य है 

2018 के विधानसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 3 शब्द का एक बयान दिया था। वह तीन शब्द थे 'माई का लाल'। इन 3 शब्दों में शिवराज सिंह चौहान की वह दुर्गति की जो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोची थी। उनकी तमाम कोशिशें विफल होती चली गई। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता गवानी पड़ी। सिर्फ इतना ही नहीं, जनता ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की जीत पर नहीं बल्कि शिवराज सिंह की हार पर जश्न मनाया। मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ भी ऐसा ही हुआ। पिछले दिनों उन्होंने 3 शब्द का एक बयान दिया था 'तो उतर जाएं'। इसका परिणाम यह हुआ कि कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरना पड़ा, और सत्ता परिवर्तन के बाद अब सड़कों पर उतरना पड़ेगा। 

मध्य प्रदेश की राजनीति में अहंकारी मुख्यमंत्री नहीं चलता 

2003 से लेकर 2020 तक का अध्ययन बताता है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में अहंकारी मुख्यमंत्री नहीं चलता। उसे कुर्सी से उतरना ही पड़ता है। 2003 के चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को अहंकार हो गया था। मध्यप्रदेश की बदहाली पर सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि चुनाव विकास कार्यों से नहीं मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। जनता को भगवान राम का दर्जा देकर मुख्यमंत्री बनी उमा भारती, सीएम हाउस में पहुंचते ही अहंकारी हो गई थी। एक अवसर आया, उन्होंने कुर्सी त्यागी लेकिन फिर वापस नहीं मिली। कोई कुछ भी कहे लेकिन सच है कि पार्टी नहीं चाहती थी, उमा भारती वापस कुर्सी पर बैठे। बाबूलाल गौर के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। शिवराज सिंह के अहंकारी बयान का जवाब तो जनता ने कुछ इस तरह दिया के इतिहास में दर्ज हो गया और मुख्यमंत्री कमलनाथ के अहंकारी वचनों के कारण मध्य प्रदेश की जमी जमाई कांग्रेस सरकार जमीन पर आ गई।

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