भोपाल। कमलनाथ सरकार पर तबादला उद्योग और तबादला माफिया के आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी भी दूध की धुली नहीं है। शिवराज सिंह शासनकाल में तबादले की पूरी प्रक्रिया को सेंट्रलाइज कर दिया गया था। नियम ऐसे बनाए गए थे कि चपरासी का तबादला भी मुख्यमंत्री के यहां से होता था। यदि इस आरोप पर विश्वास करें कि कांग्रेस के मंत्री रिश्वत लेकर तबादले कर रहे हैं तो फिर इस बात पर भी विश्वास करना पड़ेगा कि 2018 से पहले मुख्यमंत्री के कार्यालय में तबादलों के लिए रिश्वत ली जाती थी।
शिवराज सिंह ने अपने मंत्रियों का हक छीन लिया था
इस मामले में कहा जा सकता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों का हक छीन लिया था। किसी भी विभाग के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के व्यवस्थापन का अधिकार उस विभाग के प्रमुख सचिव एवं मंत्री का होता है। प्रमुख सचिव विभागीय जरूरतों एवं नियमों के अनुसार तबादले करते हैं। मंत्री या मुख्यमंत्री के पास तबादलों की आवश्यकता या तबादलों के खिलाफ सुनवाई की जिम्मेदारी होती है परंतु दिग्विजय सिंह शासनकाल के बाद से मध्यप्रदेश में व्यवस्था ही बदल गई। पहले मंत्रियों ने प्रमुख सचिव से तबादलों का अधिकार छीन लिया। उसके बाद मुख्यमंत्री ने मंत्रियों से अधिकार छीन लिया। सवाल यह है कि क्या करीब 10 करोड़ की आबादी वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास इतना समय होता है कि वह यह तय कर पाए किस कार्यालय में चपरासी की जरूरत है और किस चपरासी का कहां से कहां तक आयोजित होगा। यदि मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री के कार्यालय में पदस्थ अधिकारियों के पास इतना अधिक समय है तो फिर सभी विभागों को मुख्यमंत्री कार्यालय में मर्ज कर दिया जाना चाहिए।
मंत्री को चपरासी के तबादले के लिए मुख्यमंत्री के पास जाना पड़ा
मजेदार प्रसंग यह है कि जिस मंत्री के समय को बहुमूल्य मानते हुए उसे तमाम तरह की सुविधाएं सरकारी खर्चे पर उपलब्ध कराई जाती है उस मंत्री को एक चपरासी के तबादले के लिए मुख्यमंत्री के पास जाना पड़ा। कैबिनेट मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर अपने चपरासी के तबादले की फाइल लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ से मिलने पहुंचे। इस घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नियम बदल दिया। अब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तबादले के लिए सीएम समन्वय के पास फाइल भेजना अनिवार्य नहीं होगा।