अतिथि विद्वानों के आंदोलन का 26वां दिन: प्रथम महिला शिक्षक को याद किया | ATITHI VIDWAN NEWS

भोपाल। शाहजहांनी पार्क में चल रहे अतिथि विद्वानों के धरना प्रदर्शन एवं आंदोलन लगातार 26वें दिन भी जारी रहा। कमलनाथ सरकार से वचनपत्र अनुसार आप के नियमितीकरण की मांग कर रहे अतिथि विद्वानों ने आज समाज को नई दिशा प्रदान करने वाली, प्रथम महिला शिक्षक व समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उन्हें याद किया। कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजकद्वय डॉ देवराज सिंह एवं डॉ सुरजीत भदौरिया व मीडिया प्रभारी डॉ जेपीएस चौहान तथा डॉ आशीष पांडेय सहित सैकड़ों की संख्या में अतिथिविद्वान उपस्थित रहे। इस अवसर पर सभी ने एक सुर में मध्यप्रदेश शासन व मुख्यमंत्री कमलनाथ से जल्द नियमितीकरण का वादा पूरा करने की गुहार लगाई।

अतिथिविद्वान के पिता का देहावसान

अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रांतीय प्रवक्ता डॉ मंसूर अली के कहा है कि हम अभी अपनी साथी डॉ समी खरे के आकस्मिक निधन के दुख से उबर भी नही पाए थे कि आज फिर एक दुखदायी खबर ने हम सब को झकझोर दिया। शासकीय महाविद्यालय निवाड़ी में वाणिज्य विषय मे कार्यरत अतिथिविद्वान राजेश काड़ा के पिता श्री मुन्नालाल काड़ा का आज दुखद निधन हो गया। उल्लेखनीय है कि अतिथिविद्वान राजेश काड़ा पिछले कई दिनों से भोपाल में आंदोलन में सहभागिता कर रहा था। सबके दुखदायी पहलू यह रहा कि अतिथिविद्वान राजेश काड़ा अंतिम समय पर अपने पिता का बेहतर इलाज भी नही करा पाया। 

चूंकि लगभग 6 माह से अतिथिविद्वानों को मानदेय भी नही दिया गया है। परिणामस्वरूप वह घोर आर्थिक संकट से गुज़र रहा था तथा वह अंतिम समय मे अपने पिता के पास भी नही पहुच सका। डॉ मंसूर अली के अनुसार अतिथिविद्वान जैसी शोषणकारी व्यवस्था ने समय समय पर हमारे कई साथियों को असमय काल के गाल में पहुँचा दिया है। हमारा पारिवारिक जीवन इस नौकरी की उठापटक में बर्बाद हो गया है। हम न तो पूरे मन से बच्चों को अध्यापन कर पा रहे हैं न ही अपने परिवार को समय दे पा रहे हैं। हाल यह है कि आंदोलन के दौरान ही कई अतिथिविद्वान साथियों के घरों से निकट संबंधियों के निधन के समाचार प्राप्त हुए हैं।

दिवंगत अतिथिविद्वान को किया गया याद

अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के डॉ जेपीएस चौहान एवं डॉ आशीष पांडेय के अनुसार आज दिवंगत अतिथिविद्वान डॉ समी खरे को भी याद किया गया। इस व्यवस्था ने अभावग्रस्त हमारे कई साथियों का जीवन असमय ही समाप्त कर दिया है। कई साथी नियमितीकरण की लड़ाई लड़ते लड़ते अपने जीवन की ही लड़ाई हार गए। इस विषय पर सरकार की असंवेदनशीलता समझ से परे है। हम सरकार से पुनः अपने नियमितीकरण की मांग करते हैं।

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