भोपाल। मध्य प्रदेश के इतिहास में सबसे बड़ा दलित एजेंडा लागू करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एक बार फिर जातिवाद की राजनीति को हवा देते नजर आ रहे हैं। माखनलाल यूनिवर्सिटी में 2 संविदा शिक्षकों द्वारा जातिवाद की राजनीति की गई। जातिवाद का विरोध करने वाले 23 छात्रों को कुलपति ने निष्कासित कर दिया। पूरे देश में इस कार्रवाई की निंदा की गई लेकिन दिग्विजय सिंह ने खुला समर्थन किया है।
छात्रों का निष्कासन मामले में कुलपति को मेरा पूरा समर्थन है: दिग्विजय सिंह
कमलनाथ सरकार के ' सरसंघचालक' दिग्विजय सिंह ने ट्वीट करके बयान दिया है कि 'माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हाल का घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण है जिस तरह से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोगों ने प्रायोजित उत्पात मचाया उससे मेरी यह बात साबित हुई की आरएसएस शिक्षण संस्थाओं पर जबरन कब्जा जमाना चाहता है। शैक्षणिक संस्थाओ में अनुशासनहीनता का कोई स्थान नहीं हो सकता। नये कुलपति पिछले 15 साल के बिगड़े विश्वविद्यालय में अच्छा शैक्षणिक वातावरण तैयार कर रहे थे इस प्रायोजित उत्पात से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। विश्वविद्यालय को सुधारने के प्रयासों में कुलपति को मेरा पूरा समर्थन है।
विचारधारा के खिलाफ जातिवादी राजनीति
बता दें कि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के गठित होते ही राजनीति का अड्डा बनना शुरू हो गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारियों को यूनिवर्सिटी में नियुक्त किया गया। टारगेट क्लियर था। सरकारी वेतन पर विचारधारा के लिए काम करना। 15 साल तक किया सब कुछ चलता रहा। कांग्रेस सरकार के गठन के बाद उम्मीद थी कि माखनलाल यूनिवर्सिटी का पुराना वैभव वापस आएगा परंतु विचारधारा के खिलाफ जातिवाद की राजनीति शुरू कर दी गई। श्री दिग्विजय सिंह के इस बयान के बाद जोना संदेह जताया जाए कि जातिवाद की राजनीति के सूत्र संचालक श्री दिग्विजय सिंह ही है। उन्होंने ही अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों में असंतोष पैदा करने वाले दो व्यक्तियों को माखनलाल यूनिवर्सिटी में नौकरी दिलाई। बिलकुल वैसे ही जैसे 15 साल से होता आ रहा था। पहले सरकारी वेतन पर विचारधारा का प्रचार किया जाता था। अब सरकारी वेतन पर जातिवाद की राजनीति।