जबलपुर। अंग्रेजों के जमाने से साउथ सिविल लाइंस स्थित जिस भवन को एसपी बंगला के नाम से जाना जाता रहा है उसकी रजिस्ट्री शहर के नामी बिल्डर के पास है। इतना ही नहीं जिस जमीन पर पुलिस के लिए क्वार्टर बनने वाले थे वह जमीन भी दूसरे बिल्डर के नाम रजिस्टर्ड नजर आ रही है। पुलिस अपने एसपी का घर बचाने के लिए कोर्ट में जाकर न्याय मांग रही है। सवाल यह है कि प्रशासन अब तक इस घोटाले की जांच क्यों नहीं कर रहा।
2003 में हो गई एसपी बंगले की रजिस्ट्री, किसी को पता तक नहीं चला
खबर आ रही है कि साउथ सिविल लाइंस स्थित पुलिस अधीक्षक निवास की रजिस्ट्री सन 2003 में एक नामी बिल्डर के नाम हो गई और किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी। बिल्डर यहां एक मल्टी स्टोरी बनाकर फ्लैट बेचने के मूड में था। जैसे ही पुलिस को इसकी जानकारी मिली पुलिस विभाग ने अपने एसपी का घर बचाने के लिए कोर्ट की शरण ली।
पुलिस क्वार्टर के लिए आरक्षित ढाई एकड़ जमीन पर दूसरे बिल्डर का कबजा
पुलिस की हालत इतनी दयनीय है कि नया गांव स्थित पुलिस की 67 एकड़ जमीन पर दूसरे बिल्डर ने कब्जा कर लिया है। पुलिस की ढाई एकड़ जमीन पर नया गांव हाउसिंग सोसायटी का कब्जा बताया जा रहा है। जबकि यहां पुलिस के क्वार्टर प्रस्तावित हैं। वहीं विजय नगर थाने की निर्माणाधीन बिल्डिंग के प्रकरण में भी पुलिस को कोर्ट में अवमानना का सामना करना पड़ रहा है।
कितने अधिकारी शामिल हैं खुलासा करो
पुलिस विभाग की जमीनों पर बिल्डर्स ने कब्जा कर लिया। पुलिस का कहना है कि एसपी ऑफिस की रजिस्ट्री फर्जी है। बावजूद इसके इस घोटाले की कोई जांच शुरू नहीं हुई है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि मामले की जांच क्यों शुरू नहीं की जा रही है। जितने भी अधिकारी इस घोटाले में लिप्त हैं उनके खिलाफ कार्यवाही करने में किसे डर लग रहा है। क्या एक बिल्डर इतना ताकतवर हो सकता है क्यों पुलिस अधीक्षक के घर की रजिस्ट्री करा ले।