जबलपुर। मध्य प्रदेश के आने वाले नगरीय निकाय चुनाव में महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया मामले में हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें कमलनाथ सरकार की फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद नगरीय निकाय चुनाव प्रक्रिया में आने वाली एक बाधा खत्म हो गई है। अब मध्यप्रदेश में महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से यानी पार्षदों द्वारा किया जाएगा।
मामला क्या है
1997 में तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार है मध्यप्रदेश में महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का चुनाव सीधे जनता द्वारा कराने का फैसला लिया था। तब से लेकर अब तक प्रदेश में महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष होगा आज इलेक्शन डायरेक्ट जनता द्वारा किया जा रहा था। कमलनाथ सरकार में दिग्विजय सिंह सरकार के इस फैसले को बदल दिया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तय किया कि महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली यानी पार्षदों द्वारा किया जाएगा जैसा कि 1997 से पहले होता था।
हाई कोर्ट में सरकार के तर्क
सरकार द्वारा मध्य प्रदेश नगर पालिक विधि संशोधन अध्यादेश 2019 को सर्वसम्मति से पास कराया गया था, जिसे गवर्नर (Governor) ने भी आर्टिकल 213 की धारा 1 के तहत मंजूरी दी थी। इस मुहर के बाद मध्य प्रदेश म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट 1956 एवं मध्य प्रदेश म्युनिसिपालिटीज़ एक्ट 1961 में संशोधन किया गया था।
याचिकाकर्ता कमलनाथ के फैसले को असंवैधानिक साबित नहीं कर पाए
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अनवर हुसैन कमलनाथ सरकार के फैसले को असंवैधानिक साबित नहीं कर पाए। हटा हाईकोर्ट ने अनवर हुसैन की याचिका को खारिज कर दिया। बता दें कि भारत की निर्वाचन प्रक्रिया में राज्य सरकारों को प्रिया अधिकार प्राप्त है कि वह नगर पालिका अध्यक्ष या महापौर की चुनाव प्रणाली को अपने हिसाब से तय कर सकें। राज्य सरकार चाहे तो डायरेक्ट इलेक्शन सिस्टम और यदि चाहे तो इनडायरेक्ट इलेक्शन सिस्टम यूज कर सकती है।