अगर ये आंकड़े और भविष्यवाणी सही है तो तो आगे आने वला समय भारत के लिए दुष्काल होगा | २०५० तक भारत में बाढ़ का खतरा हर साल बढ़ेगा | यह जोखिम वर्तमान अंदाजे से कई गुना आंकी गई है | बेहतर होगा देश की सरकार और नागरिक अभी से इस विभीषिका को मद्दे नजर रख कर इसे चुनौती मान जुट जाएँ | देश की ७.५ हजार किलोमीटर की पट्टी जिसमे हमारे सारे महत्वपूर्ण बन्दरगाह है, इस विभीषिका से प्रभावित होने का अनुमान है |
वास्तव में अब जलवायु परिवर्तन और धरती के तापमान में बढ़ोतरी ऐसे मोड़ पर है, जिसके बाद तबाही के अलावा कुछ और नहीं होगा.| ग्लेशियरों के पिघलने और अत्यधिक बारिश से समुद्र का जल-स्तर बढ़ता जा रहा है| अमेरिकी संस्था ‘क्लाइमेट सेंट्रल’ के अध्ययन के मुताबिक, इस बढ़त की वजह से २०५० तक विश्व में समुद्र के किनार बसे तीस करोड़ लोगों के घर डूब सकते हैं| इस विषय पर पहले भी अध्ययन हुए हैं | इस बार का अध्ययन ज्यादा गंभीर है और इस बार बर्बादी का यह आंकड़ा पहले के अध्ययनों के आकलन से तीन गुने से भी ज्यादा है| इस रिपोर्ट का कहना है कि यदि कार्बन उत्सर्जन में ठोस कमी नहीं हुई और तटीय क्षेत्रों में सुरक्षा का मजबूत इंतजाम नहीं हुआ, तो वहां बसी आबादी को आगामी तीन दशकों के बाद कम-से-कम साल में एक बार बाढ़ का सामना करना होगा. अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो इस सदी के अंत तक प्रभावित लोगों की संख्या ६४ करोड़ तक पहुंच सकती है|
इस बार की शोध पद्धति अधिक उन्नत है |पहले के शोधों में आम तौर पर सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल होता था, जिनमें ऊंचे भवनों और पेड़ों के कारण जमीन समुद्र स्तर से अधिक ऊपर मालूम पड़ती थी| मौजूदा अध्ययन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये पूर्ववर्ती अनुमानों की गलतियों को ठीक किया गया है| इस शोध के प्रमुख स्कॉट कुल्प ने उचित ही रेखांकित किया है कि इस अध्ययन से हमारे जीवनकाल में ही जलवायु परिवर्तन से शहरों, अर्थव्यवस्थाओं, समुद्र तटों और पूरी दुनिया के क्षेत्रीय स्वरूप को बदल देने की संभावनाओं का पता चलता है| जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के मिजाज में तेज बदलाव तथा सूखे व बाढ़ की बारंबारता को कई शोधों में इंगित किया जा चुका है| इससे सबसे ज्यादा असर एशिया के बड़े हिस्से पर पड़ेगा, जिसमें भारत भी है| समुद्री बाढ़ का सबसे ज्यादा खतरा भी इन्हीं इलाकों पर है|
पूर्ववर्ती अध्ययनों की तुलना में इस शोध के अनुसार २०५० तक सालाना बाढ़ का जोखिम भारत में सात गुना से अधिक, बांग्लादेश में आठ गुना से अधिक, थाईलैंड में १२ गुना से अधिक तथा चीन में तीन गुना से अधिक बढ़ जायेगा| ध्यान रहे, इस त्रासदी का असर आबादी के अन्य हिस्सों पर भी पड़ेगा| निचले क्षेत्रों से पलायन और संसाधनों पर दबाव के अलावा समुद्री बाढ़ का आर्थिक नुकसान भी बहुत ज्यादा है|
स्मरण रहे कि पहले के शोधों के आधार पर विश्व बैंक ने आकलन किया था कि २०५० तक बाढ़ से हर रोज एक ट्रिलियन डॉलर की बर्बादी होगी| अब जब खतरे की आशंका तीन गुनी से अधिक बढ़ गयी है, तो बर्बादी भी बहुत हो सकती है| भारत के संदर्भ में देखें, तो सबसे अधिक अंदेशा वित्तीय राजधानी मुंबई और अन्य कई प्रमुख तटीय शहरों के अस्तित्व को लेकर है| हमारे देश की तटीय सीमा रेखा ७.५ हजार किमी से भी अधिक है. समुद्र के किनारे अनेक तरह की आर्थिक गतिविधियां होती हैं|देश के सबसे समृद्ध व विकसित क्षेत्र यहीं आबाद हैं| अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि भारत अपने स्तर पर तथा वैश्विक समुदाय के साथ आपात स्तर पर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझने की रणनीति बनाये|